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देवता: इन्द्र: ऋषि: रेणुः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ । शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śunaṁ huvema maghavānam indram asmin bhare nṛtamaṁ vājasātau | śṛṇvantam ugram ūtaye samatsu ghnantaṁ vṛtrāṇi saṁjitaṁ dhanānām ||

पद पाठ

शु॒नम् । हु॒वे॒म॒ । म॒घऽवा॑नम् । इन्द्र॑म् । अ॒स्मिन् । भरे॑ । नृऽत॑मम् । वाज॑ऽसातौ । शृ॒ण्वन्त॑म् । उ॒ग्रम् । ऊ॒तये॑ । स॒मत्ऽसु॑ । घ्नन्त॑म् । वृ॒त्राणि॑ । स॒म्ऽजित॑म् । धना॑नाम् ॥ १०.८९.१८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:89» मन्त्र:18 | अष्टक:8» अध्याय:4» वर्ग:16» मन्त्र:8 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:18


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन् भरे) इस जीवनसंग्राम में (वाजसातौ) अन्नभोगप्राप्ति के निमित्त (शुनं मघवानं नृतमम्) सुखकर धनवाले सर्वोपरि नायक को तथा (शृण्वन्तम्-उग्रम्) सुननेवाले-प्रतापी (समत्सु) संकटस्थलों में (वृत्राणि घ्नन्तम्) पापों को नष्ट करते हुए (धनानां सञ्जितम्) धनों के सम्यक् जय के निमित्त (इन्द्रम्) परमात्मा को (ऊतये हुवेम) रक्षा के लिये आमन्त्रित करते हैं ॥१८॥
भावार्थभाषाः - जीवनसंग्राम में अन्नभोगप्राप्ति की आवश्यकता को पूरी करनेवाले प्रसिद्ध नायक प्रतापी तापनाशक परमात्मा का स्मरण करना चाहिए ॥१८॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शत्रुसंहार व धन प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (शुनम्) = उस आनन्दस्वरूप प्रभु को (हुवेम) = पुकारते हैं जो (मघवानम्) = सब ऐश्वर्यों व यज्ञोंवाले हैं (इन्द्रम्) = परमैश्वर्यवाले हैं । (अस्मिन्) भरे इस जीवन संग्राम में नृतमम्-हमारा उत्तम नेतृत्व करनेवाले हैं। वाजसातौ शक्ति प्राप्ति के निमित्त की जानेवाली हमारी प्रार्थनाओं को (शृण्वन्तम्) = जो सुनते हैं । [२] उस परमात्मा को जो (ऊतये) = हमारे रक्षण के लिए (उग्रम्) = हमारे शत्रुओं के लिए उग्र हैं, अत्यन्त तेजस्वी हैं। और (समत्सु) = संग्रामों में (वृत्राणि प्रन्तम्) = ज्ञान के आवरणभूत काम आदि शत्रुओं को नष्ट कर रहे हैं। तथा जो हमारे लिये इन शत्रुओं को नष्ट करके (धनानाम्) = धनों के सञ्जितम् सम्यक् विजेता हैं । इन धनों के द्वारा हम उत्तम जीवन को बितानेवाले होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के नेतृत्व में हम शत्रुओं को जीतकर उत्कृष्ट ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं । इस सूक्त के प्रारम्भ में भी प्रभु को 'नृतम' शब्द से स्मरण किया है । [१] अन्तिम मन्त्र में भी इसी 'नृतम' शब्द का प्रयोग हुआ है। [२] इस प्रभु के नेतृत्व में चलने के कारण ही तो इसका ऋषि 'रेणु' कहलाया है [री गतौ] प्रभु के नेतृत्व में चलता हुआ यह प्रभु का आलिंगन करता है। [री श्लेषणे] यह प्रभु की तरह ही 'नारायण' बन जाता है, यही 'नारायण' अगले सूक्त का ऋषि है। प्रभु की तरह ही यह 'सर्वभूतहिते रत' होता है, नर-समूह का अयन [ शरण-स्थान ] बनता है । यह प्रभु का स्मरण करता हुआ कहता है-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मिन् भरे वाजसातौ) अस्मिन् जीवनसंग्रामे अन्नभोगप्राप्तये (शुनं मघवानं नृतमम्) सुखकरं धनवन्तं सर्वोपरिनायकं तथा (शृण्वन्तम्-उग्रम्) श्रोतारं प्रतापिनं (समत्सु वृत्राणि घ्नन्तम्) संकटस्थलेषु पापानि नाशयन्तं (धनानां-संजितम्) धनानां सम्यग् जयनिमित्तं (इन्द्रम्-ऊतये हुवेम) परमात्मानं रक्षणायाह्वामहे ॥१८॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We invoke and adore Indra, lord of bliss, omnipotent, highest leader and guide of humanity in this our battle of life for protection, victory and further advancement. Indra is listening, blazing in battles, destroying demons of darkness, negativity and obstructions, and winning the honours, wealth and excellences of the world for humanity.