वांछित मन्त्र चुनें

इ॒मां त्वमि॑न्द्र मीढ्वः सुपु॒त्रां सु॒भगां॑ कृणु । दशा॑स्यां पु॒त्राना धे॑हि॒ पति॑मेकाद॒शं कृ॑धि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imāṁ tvam indra mīḍhvaḥ suputrāṁ subhagāṁ kṛṇu | daśāsyām putrān ā dhehi patim ekādaśaṁ kṛdhi ||

पद पाठ

इ॒माम् । त्वम् । इ॒न्द्र॒ । मी॒ढ्वः॒ । सु॒ऽपु॒त्राम् । सु॒ऽभगा॑म् । कृ॒णु॒ । दश॑ । अ॒स्या॒म् । पु॒त्रान् । आ । धे॒हि॒ । पति॑म् । ए॒का॒द॒शम् । कृ॒धि॒ ॥ १०.८५.४५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:45 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:45


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मीढ्वः-इन्द्र त्वम्) हे वीर्यसेचक ! ऐश्वर्यवन् ! तू (इमां सुपुत्रां सुभगां कृणु) इस वधू को शोभन पुत्रोंवाली अच्छी सोभाग्यवती कर (अस्यां दश पुत्रान्-आ धेहि) इस में दस पुत्रों का आधान कर (एकादशं पतिं कृधि) दश के ऊपर अपने को-पति को समझ ॥४५॥
भावार्थभाषाः - पति को चाहिए कि पत्नी को सौभाग्यपूर्ण प्रशस्त पुत्रोंवाली बनावे, दस पुत्रों को उत्पन्न करे, अधिक नहीं, अथवा दस बार गर्भाधान करे, अपने को ग्यारहवाँ पालक समझे ॥४५॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वर के प्रति माता-पिता का कथन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = इन्द्रियों को वश में करनेवाले जितेन्द्रिय पुरुष ! (मीढ्वः) = हे सब सुखों के सेचन करनेवाले पुरुष ! (त्वम्) = तू (इमाम्) = इसको (सुपुत्राम्) = उत्तम पुत्रोंवाली और उनके द्वारा (सुभगम्) = उत्तम भाग्यवाली (कृणु) = कर । सामान्यतः अपुत्रा को अभाग्यवाली ही कहा जाता है । पत्नी का सौभाग्य माता बनने में ही है । सन्तान सफलता का प्रतीक है, सन्तान का अभाव असफलता का । [२] (अस्याम्) = इस पत्नी में तू (दश) = दस (पुत्रान्) = पुत्रों को (आधेहि) = स्थापित कर और (पतिम्) = पति को अर्थात् अपने को (एकादशं कृधि) = ग्यारहवाँ कर । दस पुत्र, ग्यारहवाँ पति एवं वैदिक मर्यादा में अधिक से अधिक दस सन्तानों का विधान है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पति को इन्द्रजितेन्द्रिय होना चाहिए। वह पत्नी पर सुखों का वर्षण करता हुआ उसे सुपुत्रा - सुभगा बनाए ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मीढ्वः-इन्द्र त्वम्) हे वीर्यसेचक ! ऐश्वर्यवन् पते ! त्वम् (इमां सुपुत्रां सुभगां कृणु) एतां वधूं शोभनपुत्रयुक्तां शोभनभाग्यवतीं कुरु (अस्यां दश पुत्रान्-आ धेहि) अस्यां वध्वां दशसङ्ख्यापर्यन्तं पुत्रान्-आधत्स्व (एकादशं पतिं कृधि) दशोपरि स्वात्मानं पतिं जानीहि ॥४५॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Lord of glory and fertility, Indra, bountiful ruler of the world and the home, bless this bride for noble progeny, honour and glory. Give her ten children, and let the husband be the eleventh, as guardian over all.