वांछित मन्त्र चुनें

इ॒हैव स्तं॒ मा वि यौ॑ष्टं॒ विश्व॒मायु॒र्व्य॑श्नुतम् । क्रीळ॑न्तौ पु॒त्रैर्नप्तृ॑भि॒र्मोद॑मानौ॒ स्वे गृ॒हे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ihaiva stam mā vi yauṣṭaṁ viśvam āyur vy aśnutam | krīḻantau putrair naptṛbhir modamānau sve gṛhe ||

पद पाठ

इ॒ह । ए॒व । स्त॒म् । मा । वि । यौ॒ष्ट॒म् । विश्व॑म् । आयुः॑ । वि । अ॒श्नु॒त॒म् । क्रीळ॑न्तौ । पु॒त्रैः । नप्तृ॑ऽभिः । मोद॑मानौ । स्वे । गृ॒हे ॥ १०.८५.४२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:42 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:42


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इह-एव स्तम्) हे वधू और वर ! तुम दोनों इस गृहाश्रम में स्थिर रहो (मा वियौष्टम्) मत वियुक्त होओ (विश्वम्-आयुः) समग्र आयु को प्राप्त करो-भोगो (पुत्रैः-नप्तृभिः क्रीडन्तौ) पुत्र-पुत्रियों पौत्र-दौहित्रों के साथ खेलते हुए (स्वे गृहे मोदमानौ) अपने घर में हर्ष करते हुए रहो ॥४२॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ को परस्पर गृहस्थ का पालन करते हुए परस्पर मेल से रहते हुए पुत्र-पौत्रादि आदि के साथ आनन्द करते हुए अपने घर में रहना चहिये ॥४२॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

गृह में ही आनन्द का अनुभव

पदार्थान्वयभाषाः - [१] पति-पत्नी को आशीर्वाद देते हुए प्रभु कहते हैं कि (इह एव स्तम्) = तुम दोनों इस घर में ही निवास करनेवाले बनो । (मा वियौष्टम्) = तुम वियुक्त मत हो जाओ। तुम्हारा परस्पर का प्रेम सदा बना रहे । (विश्वं आयुः) = पूर्ण जीवन को (व्यश्नुतम्) = तुम प्राप्त करो। [२] (पुत्रैः) = पुत्रों के साथ (नप्तृभिः) = पौत्रों के साथ (क्रीडन्तौ) = खेलते हुए तुम (स्वे गृहे) = अपने घर में (मोदमानौ) = आनन्दपूर्वक निवास करो। क्रीड़क की मनोवृत्ति बनाकर वर्तने से मनुष्य उलझता तो नहीं पर आनन्द में कमी नहीं आती। इससे विपरीत अवस्था में उलझ जाता है और अपने आनन्द को खो बैठता है । [३] यह भी सम्भव है कि एक व्यक्ति परिस्थितिवश वानप्रस्थ बनने की क्षमता नहीं रखता । वह घर में ही रहे। पर घर में पुत्र-पौत्रों में रहता हुआ उनके साथ क्रीडन करनेवाला हो, आसक्तिवाला नहीं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पति-पत्नी का सम्बन्ध अटूट है। ये सदा मिलकर चलें, इनका वियोग न हो। पुत्र- पौत्रों के साथ खेलते हुए ये उनमें उलझें नहीं ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इह-एव स्तम्) हे वधूवरौ युवामिह गृहाश्रमे स्थिरौ भवतं (मा वियौष्टम्) न वियुक्तौ भवतं (विश्वम्-आयुः-व्यश्नुतम्) सर्वमायुः प्राप्नुतं (पुत्रैः नप्तृभिः क्रीडन्तौ) पुत्रदुहितृभिः पौत्रैर्दौहित्रैः सह क्रीडां कुर्वन्तौ (स्वे गृहे मोदमानौ) स्वे गृहे हृष्यन्तौ भवेतम् ॥४२॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O man and wife, live here itself in the family joined together, never separate, live and enjoy a full life in your own home playing and celebrating life with children and grand children.