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सोमो॑ ददद्गन्ध॒र्वाय॑ गन्ध॒र्वो द॑दद॒ग्नये॑ । र॒यिं च॑ पु॒त्राँश्चा॑दाद॒ग्निर्मह्य॒मथो॑ इ॒माम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somo dadad gandharvāya gandharvo dadad agnaye | rayiṁ ca putrām̐ś cādād agnir mahyam atho imām ||

पद पाठ

सोमः॑ । द॒द॒त् । ग॒न्ध॒र्वाय॑ । ग॒न्ध॒र्वः । द॒द॒त् । अ॒ग्नये॑ । र॒यिम् । च॒ । पु॒त्रान् । च॒ । अ॒दा॒त् । अ॒ग्निः । मह्य॑म् । अथो॒ इति॑ । इ॒माम् ॥ १०.८५.४१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:41 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:41


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः गन्धर्वाय ददत्) सोम-रजोधर्म रश्मिधर्मवाले सूर्य के लिये देता है (गन्धर्वः-अग्नये) रशिमधर्मवाला सूर्य वैवाहिक अग्नि के लिये देता है (अग्निः-रयिं च पुत्रान् च) वैवाहिक अग्नि पुत्रों को, जो कि पिता के धन हैं और (इमां मह्यम्-अदात्) इस पत्नी को मेरे लिये देता है ॥४१॥
भावार्थभाषाः - चन्द्र सूर्य अग्नि देवताओं के गुण एक-दूसरे के उत्तरोत्तर करने में आते हैं, पुनः उन गुणों से सम्पन्न कन्या और पुत्रधन पति के लिये नियत हो जाता है ॥४१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पत्नी के साथ मिलकर धन व पुत्रों की प्राप्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सोमः) = सोम, जिसके लिये कन्या के माता-पिता ने अपनी कन्या को देने का निश्चय किया हुआ था, (गन्धर्वाय) = गन्धर्व के लिये (ददत्) = देनेवाला होता है । अर्थात् यदि सौम्यता के साथ ज्ञानयुक्त पति प्राप्त हो जाता है तो फिर सोम के साथ सम्बन्ध न करके इसी गन्धर्व के साथ सम्बन्ध करते हैं । गतमन्त्र के शब्दों में यह 'उत्तर' होता है। [२] (गन्धर्वः) = यह ज्ञानी (अग्नये) = प्रगतिशील मनोवृत्तिवाले के लिये (ददत्) = देनेवाला होता है। अर्थात् यदि सौम्यता और ज्ञान के साथ 'प्रगतिशीलता' का गुण भी मिल जाये तो वह पति 'उत्तम' होता है । यह (अग्निः) = प्रगतिशीलता के गुणवाला व्यक्ति भी अथो = अब इमाम् इसको मह्यं अदात् मुझ मानव के लिये देनेवाला होता है और वह मेरे लिये (रयिं च) = धन को प्राप्त कराता है (च) = और इस पत्नी के द्वारा (पुत्रान) = पुत्रों को वह मुझे प्राप्त करानेवाला होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- 'सौम्य' पति ठीक है, सौम्य से अधिक उत्कृष्ट 'ज्ञानी' है, उससे भी उत्कृष्ट 'प्रगतिशील स्वभाववाला' है। इसमें मानवता - दयालुता हो तो वह इसकी शोभा को और अधिक बढ़ा देती है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः-गन्धर्वाय ददत्) सोमो रजोधर्मः सूर्याय रश्मिधर्माय तेजोधर्माय प्रयच्छति (गन्धर्वः-अग्नये) सूर्यो रश्मिधर्मोऽग्नये वैवाहिकाग्नये ददाति (अग्निः-रयिं च पुत्रान् च-इमां च मह्यम्-अदात्) वैवाहिकाग्निर्मह्यं पत्नीमिमां पुत्रान् तत्पितृधनं ददाति ॥४१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Soma gives you to Gandharva, Gandharva gives you to Agni, and O dear bride, Agni then gives this wife to me, the husband, and with her gives me progeny and wealth, honour and excellence of family life.