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आ॒च्छद्वि॑धानैर्गुपि॒तो बार्ह॑तैः सोम रक्षि॒तः । ग्राव्णा॒मिच्छृ॒ण्वन्ति॑ष्ठसि॒ न ते॑ अश्नाति॒ पार्थि॑वः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ācchadvidhānair gupito bārhataiḥ soma rakṣitaḥ | grāvṇām ic chṛṇvan tiṣṭhasi na te aśnāti pārthivaḥ ||

पद पाठ

आ॒च्छत्ऽवि॑धानैः । गु॒पि॒तः । बार्ह॑तैः । सो॒म॒ । र॒क्षि॒तः । ग्राव्णा॑म् । इत् । शृ॒ण्वन् । ति॒ष्ठ॒सि॒ । न । ते॒ । अ॒श्ना॒ति॒ । पार्थि॑वः ॥ १०.८५.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आच्छद्विधानैः-गुपितः) रक्षण करनेवाले विधानों-संयमाचरणों द्वारा रक्षित तथा (बार्हतैः-रक्षितः) बृहती-वेदवाणी से सम्पन्न आचार्य आदि महानुभावों द्वारा संरक्षित पालित (सोम) हे वीर्य ! तथा वीर्यवान् ब्रह्मचारी (ग्राव्णां शृण्वन्) विद्वानों के उपदेश को सुनता हुआ (इत् तिष्ठसि) निरन्तर विराजता है-विराजमान रह (ते पार्थिवः-न-अश्नाति) तेरी समानता को राजा भी नहीं प्राप्त कर सकता या नहीं खा सकता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - तीसरा सोम वीर्य तथा वीर्यवान् ब्रह्मचारी है, जो संयम सदाचरणों द्वारा रक्षित और वेदविद्या से सम्पन्न गुरुओं द्वारा पालित होता है, जिसकी समानता राजा भी नहीं कर सकता। ब्रह्मचारी को देख कर राजा को मार्ग छोड़ देना चाहिए, यह शास्त्र में विधान है तथा उसका अन्यथा भक्षण भी नहीं कर सकता ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सोम का रक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (आच्छद्विधानैः) = समन्तात् अपवारण के तरीकों से, अर्थात् हमारे पर सब ओर से जो वासनाएँ आक्रमण कर रही हैं, उनको दूर रखने के उपायों से (गुपित:) = यह सोम रक्षित होता है । यदि वासनाओं का आक्रमण चलता रहे, तो सोम के रक्षण का सम्भव नहीं होता। [२] (सोमः) = यह सोम [= वीर्य] (बार्हतैः) = वासनाओं के उद्धर्हण के द्वारा (रक्षितः) = रक्षित होता है। जैसे खेत में से एक किसान घास-फूस का उद्बर्हण कर देता है, इसी प्रकार जो व्यक्ति हृदयक्षेत्र में से वासनारूप घास का उद्बर्हण करता है, वही शरीर में सोम का रक्षण करनेवाला होता है । [३] हे सोम ! तू (इत्) = निश्चय से (ग्राव्णाम्) = ज्ञानी स्तोताओं की ज्ञान चर्चाओं को (शृण्वन्) = सुनता हुआ (तिष्ठति) = शरीर में स्थित होता है। जो मनुष्य ज्ञानप्रधान जीवन बिताता है, यह सोम उसकी ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर उसकी ज्ञानाग्नि को दीस करता है । इस प्रकार उपयुक्त हुआ हुआ सोम नष्ट नहीं होता । [४] (पार्थिवः) = पार्थिव भोगों में फँसा हुआ व्यक्ति (ते न अश्नाति) = तेरा सेवन नहीं करता । भोगासक्ति सोम के रक्षण की विरोधिनी है । ये पार्थिव वृत्तिवाले व्यक्ति तो सोमलता के रस के पान को ही सोम-पान समझते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण के लिये वासनाओं को दूर करना आवश्यक है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आच्छद्विधानैः-गुपितः) आच्छदन्ति यानि विधानानि तथाविधैः संयमरूपैः खलु यस्त्रातः (बार्हतैः-रक्षितः) बृहती वाक्-वेदवाक्सम्पन्नैराचार्यप्रभृतिभिः संरक्षितः (सोम) हे सोम-वीर्य ! “रेतो वै सोमः” [श० १।९।२।९] “सोमः वीर्यवत्तमः” [ऋ० १।९१ दयानन्दः] (ग्राव्णां  शृण्वन्-इत् तिष्ठसि) विदुषामुपदेशं शृण्वन्नेव विराजसे (न ते पार्थिवः-अश्नाति) तव साम्यं राजापि न प्राप्नोति यद्वा त्वां न भक्षयितुं शक्नोति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Preserved by divine ordinances, protected by the measures of Brhat Samans, Soma is guarded safely by somapalas. O Soma, you abide somewhere in divinity hearing the roar of thunder and clouds, no one earthly can drink or experience the ecstasy of your celestial nature and identity.