पत्नी रसवती kitehen को संभाले तृ॒
पदार्थान्वयभाषाः - [१] घर में आने पर वधू का सर्वमहान् कर्त्तव्य घर को सम्हालना है, घर में भी रसोई का प्रबन्ध सुन्दरता से करना है। रसोई के प्रबन्ध पर ही घर के सब व्यक्तियों के स्वास्थ्य का निर्भर है । वह अन्नों के विषय में यह पूरा ध्यान करे कि - [क] (एतत् तृष्टम्) = यह गर्भ होने के कारण अत्यन्त प्यास को पैदा करनेवाला है, [ख] (एतत् कटुकम्) = यह कटु है, काटनेवाला है, [ग] (एतत् अपाष्ठवत्) = यह फोकवाला है, [घ] (विषवत्) = यह विषैले प्रभाव को पैदा करनेवाला है, सो (एतत् न अत्तवे) = यह खाने के लिये ठीक नहीं है। इस प्रकार यह वधू भोजन का पूरा ध्यान करे । [२] पति को भी चाहिए कि कुछ विशाल हृदयवाला हो, पत्नी की मनोवृत्ति को पूरी तरह समझे। समझकर इस प्रकार से वर्ते कि पत्नी का जी दुःखी न हो। इस सूर्याम् ज्ञानदीप्त क्रियाशील वधू को (यः) = जो (ब्रह्मा) = बड़े हृदयवाला ज्ञानी पुरुष (विद्यात्) = ठीक प्रकार से समझे (सः इत्) = वह ही (वाधूयं अर्हति) = इस वधू प्राप्ति के कर्म के योग्य है । नासमझ पति-पत्नी को कभी प्रसन्न नहीं रख सकता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-वधू पाक-स्थान की अध्यक्षता करती हुई न खाने योग्य अन्नों को घर से दूर रखे। पति भी पत्नी को समझता हुआ अपने व्यवहार से उसे सदा प्रसन्न रखे ।