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तृ॒ष्टमे॒तत्कटु॑कमे॒तद॑पा॒ष्ठव॑द्वि॒षव॒न्नैतदत्त॑वे । सू॒र्यां यो ब्र॒ह्मा वि॒द्यात्स इद्वाधू॑यमर्हति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tṛṣṭam etat kaṭukam etad apāṣṭhavad viṣavan naitad attave | sūryāṁ yo brahmā vidyāt sa id vādhūyam arhati ||

पद पाठ

तृ॒ष्टम् । ए॒तत् । कटु॑कम् । ए॒तत् । अ॒पा॒ष्ठऽव॑त् । वि॒षऽव॑त् । न । ए॒तत् । अत्त॑वे । सू॒र्याम् । यः । ब्र॒ह्मा । वि॒द्यात् । सः । इत् । वाधू॑ऽयम् । अ॒र्ह॒ति॒ ॥ १०.८५.३४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:34 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:34


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः-ब्रह्मा) जो ब्रह्मज्ञानी (सूर्यां विद्यात्) तेजस्विनी वधू को वेदविधि से विवाही हुई को प्राप्त करता है (सः-इत्) वह ही वोढा पति (वाधूयम्-अर्हति) वधूसम्पर्क को प्राप्त कर सकता है, अन्य नहीं। अन्य के लिये तो (एतत्-तृष्टं कटुकम्) कामवासनावर्धक दाहकर कटुपरिणाम लानेवाले, तथा (अपाष्ठवत्) निस्सार भुस के समान (एतत्-विषवत्) यह विष मिले अन्न की भाँति (न-अत्तवे) खाने भोगने के लिए नहीं है-हानिप्रद है ॥३४॥
भावार्थभाषाः - ज्ञानी मनुष्य ही विवाह को सफल करता है, वह ही वधूपन-भार्या के सम्बन्ध को प्राप्त करने योग्य है। अज्ञानी कामवश विवाह करनेवाले के लिये वह निस्सार भुस के समान दाहवर्धक विष मिले अन्न जैसा है ॥३४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पत्नी रसवती kitehen को संभाले तृ॒

पदार्थान्वयभाषाः - [१] घर में आने पर वधू का सर्वमहान् कर्त्तव्य घर को सम्हालना है, घर में भी रसोई का प्रबन्ध सुन्दरता से करना है। रसोई के प्रबन्ध पर ही घर के सब व्यक्तियों के स्वास्थ्य का निर्भर है । वह अन्नों के विषय में यह पूरा ध्यान करे कि - [क] (एतत् तृष्टम्) = यह गर्भ होने के कारण अत्यन्त प्यास को पैदा करनेवाला है, [ख] (एतत् कटुकम्) = यह कटु है, काटनेवाला है, [ग] (एतत् अपाष्ठवत्) = यह फोकवाला है, [घ] (विषवत्) = यह विषैले प्रभाव को पैदा करनेवाला है, सो (एतत् न अत्तवे) = यह खाने के लिये ठीक नहीं है। इस प्रकार यह वधू भोजन का पूरा ध्यान करे । [२] पति को भी चाहिए कि कुछ विशाल हृदयवाला हो, पत्नी की मनोवृत्ति को पूरी तरह समझे। समझकर इस प्रकार से वर्ते कि पत्नी का जी दुःखी न हो। इस सूर्याम् ज्ञानदीप्त क्रियाशील वधू को (यः) = जो (ब्रह्मा) = बड़े हृदयवाला ज्ञानी पुरुष (विद्यात्) = ठीक प्रकार से समझे (सः इत्) = वह ही (वाधूयं अर्हति) = इस वधू प्राप्ति के कर्म के योग्य है । नासमझ पति-पत्नी को कभी प्रसन्न नहीं रख सकता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-वधू पाक-स्थान की अध्यक्षता करती हुई न खाने योग्य अन्नों को घर से दूर रखे। पति भी पत्नी को समझता हुआ अपने व्यवहार से उसे सदा प्रसन्न रखे ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः ब्रह्मा सूर्यां विद्यात्) यो ब्रह्मज्ञानी तेजस्विनीं वधूं वेदविधिना विवाहितां जानाति-प्राप्नोति (सः इत्-वाधूयम्-अर्हति) स एव वोढा पतिर्वधूसम्पर्कं प्राप्तुमर्हति नान्यः, अन्यार्थे तु पापकृत्यं तत्खलु (एतत्-तृष्टं कटुकम्) कामवासनावर्धकं दाहकरं कटुपरिणामकरं (अपाष्ठवत्-एतद्विषवत्-न-अत्तवे) निःसारवत्-बुसवत् तथैतद्विषवद् विषसम्पृक्तान्नमिव भोक्तुं हानिप्रदमस्ति ॥३४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Matrimony? It is roughshod, it is thorny bitter, all barbs, all poison, it is dangerous to flirt with it. Only the wise youth of divine vision who knows and realises the light and sanctity of Surya, he deserves the prize he may carry away.