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सोमं॑ मन्यते पपि॒वान्यत्स॑म्पिं॒षन्त्योष॑धिम् । सोमं॒ यं ब्र॒ह्माणो॑ वि॒दुर्न तस्या॑श्नाति॒ कश्च॒न ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somam manyate papivān yat sampiṁṣanty oṣadhim | somaṁ yam brahmāṇo vidur na tasyāśnāti kaś cana ||

पद पाठ

सोम॑म् । म॒न्य॒ते॒ । प॒पि॒ऽवान् । यत् । स॒म्ऽपिं॒षन्ति॑ । ओष॑धिम् । सोम॑म् । यम् । ब्र॒ह्माणः॑ । वि॒दुः । न । तस्य॑ । अ॒श्ना॒ति॒ । कः । च॒न ॥ १०.८५.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पपिवान्) पीनेवाला (सोमं मन्यते) उसे सोम समझता है (यत्) कि (ओषधिं सम्पिषन्ति) जिस ओषधि को सम्यक् पीसते हैं-उसका रस निकालते हैं (यं सोमम्) जिस सोम-चन्द्रमा को (ब्रह्माणः-विदुः) ज्योतिषी लोग जानते हैं (तस्य) उसको (कश्चन न अश्नाति) कोई भी नहीं खाता है, नहीं पीता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - सोम एक ओषधि है, जो पृथिवी पर होती है, जिसे पीस कर पीते हैं। दूसरे सोम चन्द्रमा को कहते हैं,  ज्योतिषी-खगोलशास्त्री जानते हैं, जो आकाशीय सोम है, वह चन्द्रमा है, उसे कोई मनुष्य नहीं पी सकता ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वास्तविक सोमपान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] 'सोम ओषधीनामधिराजः ' गो० उ० १ । १७, 'सोम वीरुधां पते' तै० ३ । ११ । ४ । १, 'गिरिषु हि सोमः ' श० ३ । ३ । ४ । ७ इन ब्राह्मण ग्रन्थों के वाक्यों से यह स्पष्ट है कि सोम एक लता है जो पर्वतों पर उत्पन्न होती है, यह अत्यन्त गुणकारी है, परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में सोम का भाव इस वानस्पतिक ओषधि से नहीं है। यहाँ तो 'रेतः सोमः ' कौ० १३ । ७ के अनुसार वीर्यशक्ति ही सोम है । मन्त्र में कहते हैं कि (यत्) = जो (ओषधिम्) = ओषधि को (संपिंषन्ति) = सम्यक् पीसते हैं और उसका रस निकालकर (मन्यते) = मानते हैं कि (सोमं पपिवान्) = हमने सोम पी लिया है, यह उनकी धारणा ठीक नहीं। [२] (यं सोमम्) = जिस सोम को (ब्रह्माण:) = ज्ञानी पुरुष ही (विदुः) = जानते हैं तस्य उस सोम का कश्चन इन ओषधि रस पीनेवालों में से कोई भी (अश्वाति) = ग्रहण नहीं करता है। सोम तो शरीर में उत्पन्न होनेवाला वीर्य है। उसका रक्षण ज्ञानी पुरुष ही करते हैं, यही सच्चा सोमपान है। ज्ञान संचय में प्रवृत्त पुरुष इस सोम को अपनी ज्ञानाग्नि का ईंधन बनाता है और इसकी ऊर्ध्वगति के द्वारा ब्रह्म साक्षात्कार के योग्य बनता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमलता के रस का पान सोमपान नहीं है। वीर्य का रक्षण ही सोमपान है। इस सोमपान को भौतिक प्रवृत्तिवाला पुरुष नहीं कर पाता । इस सोमपान को करनेवाला ज्ञानी ही होता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पपिवान् सोमं मन्यते) पानकर्ता सोमं तं मन्यते (यत् ओषधिं संपिंषन्ति) यतो ह्योषधिं सम्यक् पिष्ट्वा पिबन्ति (यं सोमं ब्रह्माणः-विदुः) यं सोमं चन्द्रमसं ब्रह्माणो ज्योतिर्विदो जानन्ति (तस्य कश्चन न अश्नाति) तं कोपि न भुङ्क्ते न पिबति “अथैषापरा भवति चन्द्रमसो वै तस्य वा” [नि० ११।४] ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The person who drinks the soma juice feels that the herb which they crush and squeeze for the juice is soma. But the Soma which the divine sages know and realise no one can drink like that.