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उदी॒र्ष्वातो॑ विश्वावसो॒ नम॑सेळा महे त्वा । अ॒न्यामि॑च्छ प्रफ॒र्व्यं१॒॑ सं जा॒यां पत्या॑ सृज ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud īrṣvāto viśvāvaso namaseḻā mahe tvā | anyām iccha prapharvyaṁ saṁ jāyām patyā sṛja ||

पद पाठ

उत् । ई॒र्ष्व॒ । अतः॑ । वि॒श्व॒व॒सो॒ इति॑ विश्वऽवसो । नम॑सा । ई॒ळा॒म॒हे॒ । त्वा । अ॒न्याम् । इ॒च्छ॒ । प्र॒ऽफ॒र्व्य॑म् । सम् । जा॒याम् । पत्या॑ । सृ॒ज॒ ॥ १०.८५.२२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:22 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:22


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वावसो) हे मेरे सब मन आदि में बसनेवाले पतिदेव ! (त्वा नमसा-ईळामहे) तेरी सत्कार से प्रशंसा करती हूँ (अतः-उत् ईर्ष्व) इस मेरे पितृगृह से उठ (अन्यां प्रफर्व्यम्) भिन्नगोत्रवाली फर-फर करती हुई सुकुमारी (जायाम्-इच्छ) मुझ जाया को चाह (पत्या सं सृज) तुझ पति के साथ मैं अपने को संयुक्त करती हूँ ॥२२॥
भावार्थभाषाः - वधू के साथ विवाह करके पति अपने घर में ले जाए, पतिगृह में पहुँच कर वधू पुत्रोत्पत्ति के लिये पति के साथ समागम करने के लिये उससे प्रार्थना करे ॥२२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

विवाहित के लिये प्रार्थना, अविवाहित का ध्यान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (अतः) = इस विवाहित कन्या को चिन्ता से (उत् ईर्ष्व) = तू ऊपर उठ । तू तो यही प्रार्थना कर कि हे (विश्वावसो) = सबके बसानेवाले प्रभो ! (त्वा) = आपको (नमसा) = नम्रता के साथ (ईडामहे) = स्तुत करते हैं । [२] अब इस विवाहित कन्या के भार को पति की सुबुद्धि पर छोड़कर आप (अन्याम्) = दूसरी (प्रफर्व्यम्) = [प्रफर्वी = a woman having excellent hips or going in a graceful wey] बृहन्नितम्ब-हंसवारणगामिनी युवति कन्या को (इच्छ) = रक्षित करने की इच्छा करिये और उसे (जायाम्) = पत्नी के रूप में पत्ये पति के लिये (सं सृज) = संसृष्ट करिए, पिता को चाहिए कि विवाहित कन्या के विषय में बहुत दखल न देते रहें, प्रभु पर विश्वास रखें कि वे उसके पति को सुबुद्धि देंगे और सब कार्य ठीक से चलेगा। पिता अधिक हस्ताक्षेप करते रहें तो पतिगृहवालों को यह ठीक नहीं लगता और वह युवति भी वस्तु-स्थिति को न समझती हुई छोटी-छोटी बातों से रुष्ट हो पितृमुखापेक्षी बनी रहती है। पति-पत्नी के प्रेम में कमी आ जाती है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- 'विवाहित कन्या के लिये केवल प्रार्थना करना और अविवाहित की पूरी चिन्ता करना' यह माता-पिता का कर्त्तव्य है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वावसो) हे विश्वस्मिन् वसितः ! वर ! (त्वा नमसा-ईळामहे) त्वां सत्कारेण प्रशंसामः-प्रशंसामि (अतः-उत् ईर्ष्व) त्वमतः-उद्गच्छ (अन्यां-प्रफर्व्यं जायाम्-इच्छ) भिन्नगोत्रां सुकुमारीं फरफरं कुर्वतीं मां जायां वाञ्छ (पत्या संसृज) त्वया पत्या सह संसृजामि सङ्गच्छे ‘पुरुषव्यत्ययेन मध्यमः’ ॥२२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Rise from here and now, O master of the wealth of a new world, we honour and adore you with reverence and homage. Love this bride, this other self of yours, fully mature and cultured, accept, take and join her in the role of husband.