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उदी॒र्ष्वात॒: पति॑वती॒ ह्ये॒३॒॑षा वि॒श्वाव॑सुं॒ नम॑सा गी॒र्भिरी॑ळे । अ॒न्यामि॑च्छ पितृ॒षदं॒ व्य॑क्तां॒ स ते॑ भा॒गो ज॒नुषा॒ तस्य॑ विद्धि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud īrṣvātaḥ pativatī hy eṣā viśvāvasuṁ namasā gīrbhir īḻe | anyām iccha pitṛṣadaṁ vyaktāṁ sa te bhāgo januṣā tasya viddhi ||

पद पाठ

उत् । ई॒र्ष्व॒ । अतः॑ । पति॑ऽवती । हि । ए॒षा । वि॒श्वऽव॑सुम् । नम॑सा । गीः॒ऽभिः । ई॒ळे॒ । अ॒न्याम् । इ॒च्छ॒ । पि॒तृ॒ऽसद॑म् । विऽअ॑क्ताम् । सः । ते॒ । भा॒गः । ज॒नुषा॑ । तस्य॑ । वि॒द्धि॒ ॥ १०.८५.२१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:21 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:21


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वावसुम्) मेरे सब मन आदि में बसनेवाले पति की ‘नमसा’ (गीर्भिः) नमस्कार तथा मधुर वाणियों द्वारा (ईडे) मैं वधू प्रशंसा करती हूँ (अतः) इस स्थान से (उत् ईर्ष्व) उठ अपने घर को ले चल मुझे (एषा हि पतिमती) यह मैं पतिवाली तेरे साथ हो गई (पितृषदं व्यक्ताम्) पितृकुल की सभा में घोषित की गई हुई को (अन्याम्-इच्छ) अपने गोत्र से भिन्न मुझे चाह (ते सः-भागः)तेरा भाग वह है (तस्य जनुषा विद्धि) उस पत्नीरूप भाग का दूसरे जन्म-निज जन्मरूप पुत्र हेतु से मुझे स्वीकार कर ॥२१॥
भावार्थभाषाः - भिन्न गोत्र की कन्या से विवाह करना चाहिए, पति के घर में वधू रहेगी, अपने रूप में पुत्र को उत्पन्न करना है ॥२१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पति व पिता का कर्त्तव्य-विभाग

पदार्थान्वयभाषाः - [१] जब कन्या विवाहित होकर चली जाती है तो कन्या के पिता के लिये कहते हैं कि अब अतः इस कन्या की ओर से (उत् ईर्ष्या) = बाहर [out = उत्] गतिवाले होइये । अर्थात् इस कन्या के विषय में बहुत न सोचते रहिये । (एषा) = यह (हि) = निश्चय से पतिवती अब प्रशस्त पतिवाली है । वह पति ही इसकी रक्षा आदि के लिये उत्तरदायी है । [२] पिता तो सदा यही निश्चय करें कि (विश्वावसुम्) = उस सबके बसानेवाले प्रभु को (नमसा) = नम्रतापूर्वक (गीर्भिः) = स्तुति-वाणियों से (ईडे) = स्तुति करता हूँ । प्रभु को सबका बसानेवाला समझें, प्रभु इस कन्या के निवास को भी उत्तम बनाएँगे। [३] पिता के लिये कहते हैं कि अब आप (अन्याम्) = दूसरी कन्या के (इच्छ) = रक्षणादि की इच्छा करिये। जो कन्या (पितृषदम्) = पितृकुल में ही विराजमान है, पर (व्यक्ताम्) = प्रादुर्भूत यौवन के चिह्नोंवाली है। [४] (जनुषा) = आपके यहाँ जन्म लेने के कारण (स) = वह (ते भाग:) = आपका कर्त्तव्य भाग है । विवाहित कन्या का रक्षण तो पति करेगा। इस अविवाहित का रक्षण आपने करना है । तस्य विद्धि उस अपने कर्त्तव्य भाग को समझिये ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - विवाहित कन्या का हर समय ध्यान न करके पिता को उसकी दूसरी बहिन का ही ध्यान करना चाहिए। विवाहित कन्या के लिये प्रभु से प्रार्थना करनी ही उचित है कि वे उसके जीवन को सुन्दर बनाये ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वावसुं नमसा गीर्भिः-ईडे) अहं वधूः विश्वस्मिन् मनसि वसितारं त्वां पतिं सत्कारेण प्रशस्तवाग्भिश्च स्तौमि-प्रशंसामि (अतः) अस्मात् स्थानात् (उत् ईर्ष्व) उद्गच्छ स्वगृहे नय माम् (एषा हि पतिवती) एषां ह्यहं पतिवती जाता त्वया सह (अन्याम्-इच्छ) स्वगोत्रभिन्नां मामिच्छ प्रीणीहि (पितृषदं व्यक्ताम्) पितृकुलसभायां व्यक्तां कृत्वा तुभ्यं दत्तास्मि (ते सः-भागः) तव भागः सः (तस्य जनुषा विद्धि) तस्य पत्नीरूपस्य भागस्य द्वितीयेन जन्मना “जनुषा द्वितीयेन जन्मना” [ऋ० ५।१९।१४ दयानन्दः] निजद्वितीय-जन्मरूपपुत्रेण हेतुना जानीहि मां स्वीकुरु ॥२१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Rise from here. This girl is now married as wife to a husband. Thanks and salutations I offer to the master of the world’s wealth with homage and words of reverence and adoration. Love this girl, your other self, born, bred and raised to fullness in the parental home. She is now a part of your life. Know her, accept and take her as a complement of your self from the very birth by nature, culture and future growth of your life.