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सोमे॑नादि॒त्या ब॒लिन॒: सोमे॑न पृथि॒वी म॒ही । अथो॒ नक्ष॑त्राणामे॒षामु॒पस्थे॒ सोम॒ आहि॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

somenādityā balinaḥ somena pṛthivī mahī | atho nakṣatrāṇām eṣām upasthe soma āhitaḥ ||

पद पाठ

सोमे॑न । आ॒दि॒त्याः । ब॒लिनः॑ । सोमे॑न । पृ॒थि॒वी । म॒ही । अथो॒ इति॑ । नक्ष॑त्राणाम् । ए॒षाम् । उ॒पऽस्थे॑ । सोमः॑ । आऽहि॑तः ॥ १०.८५.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमेन) परमात्मा के रचे सोमधर्मवाले उत्पादक पदार्थ से (आदित्याः) किरणें (बलिनः) बलवान् होती हैं, सोम आदि ओषधि से पृथिवी जीवननिर्वाह के लिये महत्त्वयुक्त (अथ-उ) और (नक्षत्राणाम्-उपस्थे) रेवती आदि के मध्य में (सोमः-आहितः) चन्द्रमा स्थित हुआ शोभित होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - उत्पादक धर्मवाले पदार्थ से किरणें बलवान् होती हैं, सोम आदि ओषधियों द्वारा पृथिवी जीवन देती है, रेवती आदि नक्षत्रों में गति करता हुआ चन्द्रमा चमकता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देवत्व, शक्ति व विज्ञान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सोमेन) = गत मन्त्र की समाप्ति पर कहे गये सोम के रक्षण से (आदित्याः) = अदीना देवमाता के पुत्र, अर्थात् देवता (बलिनः) = बलवाले होते हैं । वस्तुतः सोमरक्षण से ही वे देव बनते हैं। देवताओं का सोमपान प्रसिद्ध है। यह कोई बाह्य रस नहीं है। शरीर में उत्पन्न होनेवाला ओषधियों का सारभूत सोम यह वीर्य ही है। इसका रक्षण देवों को शक्ति देता है। [२] (सोमेन)= सोम से ही (पृथिवी) = यह शरीररूप पृथिवी (मही) = महनीय व महत्त्वपूर्ण बनती है। शरीर में सब वसुओं निवास के लिए आवश्यक तत्त्वों का स्थापन इस सोम के द्वारा ही होता है [३] (उ) = और (अथ) = अब (एषां नक्षत्राणां उपस्थे) = इन विविध विज्ञान के नक्षत्रों की उपासना के निमित्त (सोमः) = यह सोम [= वीर्य] (आहितः) = शरीर में स्थापित किया गया है। इस सोम के द्वारा ज्ञानाग्नि तीव्र होती है और मनुष्य अपने मस्तिष्क रूप गगन में ज्ञान के नक्षत्रों का उदय कर पाता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सोमरक्षण के तीन लाभ हैं- [क] हृदय में देववृत्ति का उदय, [ख] शरीर में शक्ति का स्थापन, [ग] मस्तिष्क में विज्ञान नक्षत्रों का उदय ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोमेन-आदित्याः-बलिनः) परमात्मरचितेन सोमवता खलूत्पादक-पदार्थेन किरणाः-बलवन्तो भवन्ति (सोमेन-पृथिवी मही) पृथिवीस्थेन सोमाद्योषधिना पृथिवी जीवननिर्वाहाय महत्त्वयुक्ता भवति (अथ-उ) अथ च (नक्षत्राणाम्-उपस्थे) रेवत्यादीनां नक्षत्राणां मध्ये (सोमः-आहितः) चन्द्रमाः स्थितः शोभते ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The Adityas are mighty by Soma, divine energy and law of existence. By Soma, the earth is great and adorable. And in the closest environment of these stars Soma is abiding in concentrations as sustaining energy.