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नवो॑नवो भवति॒ जाय॑मा॒नोऽह्नां॑ के॒तुरु॒षसा॑मे॒त्यग्र॑म् । भा॒गं दे॒वेभ्यो॒ वि द॑धात्या॒यन्प्र च॒न्द्रमा॑स्तिरते दी॒र्घमायु॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

navo-navo bhavati jāyamāno hnāṁ ketur uṣasām ety agram | bhāgaṁ devebhyo vi dadhāty āyan pra candramās tirate dīrgham āyuḥ ||

पद पाठ

नवः॑ऽनवः । भ॒व॒ति॒ । जाय॑मानः । अह्ना॑म् । के॒तुः । उ॒षसा॑म् । ए॒ति॒ । अग्र॑म् । भा॒गम् । दे॒वेभ्यः॑ । वि । द॒धा॒ति॒ । आ॒ऽयन् । प्र । च॒न्द्रमाः॑ । ति॒र॒ते॒ । दी॒र्घम् । आयुः॑ ॥ १०.८५.१९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:85» मन्त्र:19 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:7» मन्त्र:19


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चन्द्रमाः) (नवः-नवः-जायमानः-भवति) प्रतिरात्रि नया-नया कलाओं से उदय होता है (अह्नाम्-उषसां केतुः) दिनों और उषाओं का प्रज्ञानभूत (अग्रम्-एति) कृष्णपक्ष में आगे चलता है (देवेभ्यः) देवों के लिए (भागं वि दधाति) हविर्भाग नियत करता है कालसूचना से, (दीर्घम्-आयुः-प्र तिरते) सदुपयोग से दीर्घ आयु को देता है। यह चन्द्र के पक्ष में निरुक्त के अनुसार आधिदैविक अर्थ है॥ प्रस्तुत गृहस्थपक्ष में तो−(जायमानः) पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ (नवः नवः भवति) नया-नया होता है (अह्नाम्-उषसां केतुः) प्रतिदिन और प्रति उषा वेला में साक्षात् हुआ (अग्रम्-एति) आगे जाता है (आयन्) गृहस्थाश्रम में आते हुए (देवेभ्यः) विद्वानों के लिए और अग्नि आदि के लिए (भागं विदधाति) भोजनभाग तथा हविर्भाग नियत करता है (चन्द्रमाः) स्वजीवन में आह्लादकारी होता हुआ (दीर्घम्-आयुः) दीर्घ आयु का (प्र तिरते) विस्तार करता है ॥१९॥
भावार्थभाषाः - चन्द्रमा प्रतिरात्रि कृष्णपक्ष में दिनों और उषावेलाओं से प्रथम आकाश में दृष्टिगोचर होता है, उसे देखकर यागों का निर्णय करते हैं देवताओं के प्रति हवि देने के लिए, चन्द्रमा के सदुपयोग से आयु बढ़ता है एवं गृहस्थाश्रम में वर पुत्ररूप से पुन:-पुन: जन्म पाता है। प्रतिदिन प्रति उषावेला में साक्षात् जागृत हो विद्वानों के लिए भोजन-भाग और अग्नि आदि के लिए हविर्भाग उसे देना चाहिए, ऐसा करते रहने से अपने जीवन में प्रसन्न रहते हुए आयु का विस्तार करे ॥१९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

पति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] मानव स्वभाव कुछ इस प्रकार का है कि वह एक चीज से कुछ देर बाद ऊब जाता है । 'गृहस्थ में पति-पत्नी परस्पर ऊब न जाएँ' इस दृष्टिकोण से (जायमानः) = अपनी शक्तियों का विकास करता हुआ पति (नवः नवः भवति) = सदा नवीन बना रहता है, उसका जीवन पुराणा- सा हुआ नहीं प्रतीत होता । उसका ज्ञान प्रतिदिन बढ़ता चलता है, स्वभाव को वह अधिकाधिक परिष्कृत बनाता है। कार्यक्षेत्र को कुछ व्यापक बनाने का प्रयत्न करता है। [२] यह (अह्नां केतुः) = दिनों का प्रकाशक होता है। अर्थात् दिनों को प्रकाशमय बनाता है। अधिक से अधिक स्वाध्याय के द्वारा प्रकाशमय जीवनवाला होता है। [३] (उषसां अग्रं एति) = उषाओं के अग्रभाग में आता है, अर्थात् बहुत सवेरे उठकर क्रियामय जीवनवाला बनता है। और (आयन्) = गतिशील होता हुआ (देवेभ्यः) = देवों के लिये (भागम्) = हिस्से को विदधाति विशेषरूप से धारण करनेवाला होता है । अर्थात् यज्ञों को करके यज्ञशेष का सेवन करनेवाला होता है। [५] (चन्द्रमा:) = आह्लादमय मनोवृत्तिवाला होता हुआ (दीर्घं आयुः) = दीर्घ जीवन को प्रतिरते खूब विस्तृत करता है । मन की प्रसन्नता उसे दीर्घ जीवनवाला बनाती है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- स्व- शक्तियों का विकास करता हुआ अपनी नवीनता बनाए रखता है, [ख] स्वाध्याय द्वारा अपने दिनों का प्रकाशमय बनाता है, [ग] बहुत सवेरे उठकर क्रियाओं में प्रवृत्त हो जाता है, [घ] यज्ञों को करके यज्ञशेष का ही सेवन करता है, [ङ] प्रसन्न मनोवृत्तिवाला होता हुआ दीर्घजीवनवाला होता है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चन्द्रमाः-नवः-नवः-जायमानः-भवति) चन्द्रमाः खलु प्रतिरात्रि नवो नवः कलाश उद्यन् भवति (अह्नां केतुः-उषसाम्-अग्रम्-एति) दिवसानामुषसां च प्रज्ञानभूतोऽग्रमेति कृष्णपक्षे (देवेभ्यः-भागं विदधाति) उद्यन् देवेभ्यो यागकालसूचनया हविर्भागं समर्पयति (दीर्घम्-आयुः प्रतिरते) एवमुपयोगेन दीर्घमायुर्वर्धयति इति चन्द्रपक्षे निरुक्तमनुसृत्याधिदैविकोऽर्थः॥ प्रस्तुतगृहस्थपक्षे तु−(जायमानः) पुत्ररूपेणोत्पद्यमानः (नवः-नवः-भवति) नवो नवः पुत्ररूपो भवति (अह्नाम्-उषसां-केतुः-अग्रम्-एति) प्रतिदिनं प्रत्युषोवेलं च साक्षाद्भूतोऽग्रमेव गच्छति (आयन्) गृहाश्रममागच्छन्नेव (देवेभ्यः-भागं विदधाति) विद्वद्भ्योऽग्निप्रभृतिभ्यश्च भोजनभागं हविर्भागं च नियतं करोति (चन्द्रमाः-दीर्घम्-आयुः प्रतिरते) स्वजीवने खल्वाह्लादकारी सन् दीर्घमायुर्वर्धयति ॥१९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The moon rising again and again ever anew, proclaiming days and lunar dates, comes ahead of the dawn in the dark fortnight. While coming it brings its share of the havi for divinities and gives long life to biological and human life.