'ऐश्वर्य के साथ उत्पन्न होनेवाला' ज्ञान
पदार्थान्वयभाषाः - [१] (आ-भूत्या) = सब कोशों में व्याप्त होनेवाली भूति, अर्थात् ऐश्वर्य के (सहजाः) = साथ उत्पन्न होनेवाले ज्ञान से अन्नमयकोश तेज: पूर्ण बनता है, प्राणमय वीर्य पूर्ण होता है, मनोमय ओज व बल से भर जाता है, विज्ञानमय तो मन्यु युक्त होता ही है, आनन्दमय सहस् से परिपूर्ण बनता है। वज्र [वजगतौ] गति को उत्पन्न करनेवाले, ज्ञान से जीवन गतिमय होता है, ज्ञानी पुरुष कभी अकर्मण्य नहीं होता (सायक) = ' षोऽन्तकर्मणि' सब बुराइयों का अन्त करनेवाले, ज्ञान से सब मलिनताएँ नष्ट होती ही हैं। (अभिभूते) = कामादि शत्रुओं का अभिभव करनेवाले ज्ञान ! तू (उत्तरम्) = उत्कृष्ट (सहः) = बल को (बिभर्ष्य) = धारण करता है। ज्ञान से मनुष्य को वह शक्ति प्राप्त होती है, जिससे कि वह सब काम-क्रोधादि शत्रुओं का पराभव करता है। [२] हे (मन्यो) = ज्ञान ! तू (क्रत्वा सह) = यज्ञादि उत्तम कर्मों के साथ (नः मेदी एधि) = हमारे साथ स्नेह करनेवाला हो। हम ज्ञान को प्राप्त करके यज्ञादि उत्तम कर्मों को करनेवाले बनें। हे (पुरुहूत) = [ पुरुहूतं यस्य] पालक व पूरक है पुकार जिसकी ऐसे ज्ञान ! तू (महाधनस्य) = उत्कृष्ट ऐश्वर्य के (संसृजि) = निर्माण में हमारा [मेदी एधि] स्नेह करनेवाला हो। तुझे मित्र के रूप में पाकर हम उत्कृष्ट ऐश्वर्य का उत्पादन करनेवाले हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ज्ञान ही सब ऐश्वर्यों का मूल है, यह उत्कृष्ट बल को देता है, हमें क्रियाशील बनाकर हमारा सच्चा मित्र होता है ।