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आभू॑त्या सह॒जा व॑ज्र सायक॒ सहो॑ बिभर्ष्यभिभूत॒ उत्त॑रम् । क्रत्वा॑ नो मन्यो स॒ह मे॒द्ये॑धि महाध॒नस्य॑ पुरुहूत सं॒सृजि॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ābhūtyā sahajā vajra sāyaka saho bibharṣy abhibhūta uttaram | kratvā no manyo saha medy edhi mahādhanasya puruhūta saṁsṛji ||

पद पाठ

आऽभू॑त्या । स॒ह॒ऽजाः । व॒ज्र॒ । सा॒य॒क॒ । सहः॑ । बि॒भ॒र्षि॒ । अ॒भि॒ऽभू॒ते॒ । उत्ऽत॑रम् । क्रत्वा॑ । नः॒ । म॒न्यो॒ इति॑ । स॒ह । मे॒दी । ए॒धि॒ । म॒हा॒ऽध॒नस्य॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । स॒म्ऽसृजि॑ ॥ १०.८४.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:84» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्र) हे ओजरूप (सायक) विरोधियों के अन्त करनेवाले (अभिभूते) शत्रुओं के दबानेवाले (मन्यो) आत्मप्रभाव या स्वाभिमान ! (आभूत्या) समन्ताद् ऐश्वर्य से युक्त आत्मा के (सहजाः) साथ उत्पन्न (उत्तरं सह बिभर्षि) उच्चतर बल को धारण करता है (नः क्रत्वा सह) हमारे कर्म या प्रज्ञान के साथ (पुरुहूत) हे बहुत निमन्त्रणीय ! (महाधनस्य संसृजि) महैश्वर्यवाले संग्राम के संसर्ग में (मेदी) स्नेही-स्नेहसाधक प्रियकारी (एधि) हो ॥६॥
भावार्थभाषाः - आत्मप्रभाव या स्वाभिमान आत्मा के साथ जन्मा है, उसका प्रिय करनेवाला है, संग्राम में ऐश्वर्य को जितानेवाला है ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'ऐश्वर्य के साथ उत्पन्न होनेवाला' ज्ञान

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (आ-भूत्या) = सब कोशों में व्याप्त होनेवाली भूति, अर्थात् ऐश्वर्य के (सहजाः) = साथ उत्पन्न होनेवाले ज्ञान से अन्नमयकोश तेज: पूर्ण बनता है, प्राणमय वीर्य पूर्ण होता है, मनोमय ओज व बल से भर जाता है, विज्ञानमय तो मन्यु युक्त होता ही है, आनन्दमय सहस् से परिपूर्ण बनता है। वज्र [वजगतौ] गति को उत्पन्न करनेवाले, ज्ञान से जीवन गतिमय होता है, ज्ञानी पुरुष कभी अकर्मण्य नहीं होता (सायक) = ' षोऽन्तकर्मणि' सब बुराइयों का अन्त करनेवाले, ज्ञान से सब मलिनताएँ नष्ट होती ही हैं। (अभिभूते) = कामादि शत्रुओं का अभिभव करनेवाले ज्ञान ! तू (उत्तरम्) = उत्कृष्ट (सहः) = बल को (बिभर्ष्य) = धारण करता है। ज्ञान से मनुष्य को वह शक्ति प्राप्त होती है, जिससे कि वह सब काम-क्रोधादि शत्रुओं का पराभव करता है। [२] हे (मन्यो) = ज्ञान ! तू (क्रत्वा सह) = यज्ञादि उत्तम कर्मों के साथ (नः मेदी एधि) = हमारे साथ स्नेह करनेवाला हो। हम ज्ञान को प्राप्त करके यज्ञादि उत्तम कर्मों को करनेवाले बनें। हे (पुरुहूत) = [ पुरुहूतं यस्य] पालक व पूरक है पुकार जिसकी ऐसे ज्ञान ! तू (महाधनस्य) = उत्कृष्ट ऐश्वर्य के (संसृजि) = निर्माण में हमारा [मेदी एधि] स्नेह करनेवाला हो। तुझे मित्र के रूप में पाकर हम उत्कृष्ट ऐश्वर्य का उत्पादन करनेवाले हों ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - ज्ञान ही सब ऐश्वर्यों का मूल है, यह उत्कृष्ट बल को देता है, हमें क्रियाशील बनाकर हमारा सच्चा मित्र होता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्र सायक-अभिभूते मन्यो) हे ओजोरूप ! “वज्रो वा ओजः” [श० ८।४।१।२०] विरोधिनामन्तकर शत्रूणाभिसेवितः ! आत्मभाव स्वाभिमान ! (आभूत्या सहजाः) समन्तादैश्वर्येण युक्त आत्मना सहोत्पन्नः (उत्तरं सहः-बिभर्षि) उच्चतरं बलं धारयसि (नः-क्रत्वा सह) अस्माकं कर्मणा प्रज्ञया वा सह (पुरुहूत) बहुह्वातव्य ! (महाधनस्य संसृजि) महैश्वर्यवतः सङ्ग्रामस्य संसर्गे (मेदी-एधि) अस्माकं स्नेही-स्नेहसाधकः प्रियकारी भव ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Twin brother of the ardour and glory of life, thunderbolt of divine humanity, unfailing pointed arrow, you bear the higher ardour of human love and passion for life. O Manyu, sweetest companion of living splendour universally invoked and adored, come to us with the force of unfailing yajnic action in the heat of the grand battle scene of life.