संसार को सुन्दर बनानेवाले
पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्राणसाधक पुरुष वे होते हैं (ये) = जो (अश्वासः न) = मार्ग का व्यापन करनेवाले घोड़ों के समान (आशवः) = शीघ्रता से कार्य करनेवाले और अतएव (ज्येष्ठासः) = प्रशस्त जीवनवाले बनते हैं । प्राणसाधना स्फूर्ति को देकर हमारे जीवनों को प्रशस्त बनाती है । [२] ये साधक (दिधिषवः न) = वसुओं के जीवन के धारक तत्त्वों को धारण करनेवालों के समान (रथ्यः) = उत्तम शरीररूप रथवाले तथा (सुदानवः) = [दाप् लवने] शरीर में आ जानेवाली कमियों का खण्डन करनेवाले होते हैं कमियों को दूर करके ये इस रथ को सदा यात्रा के लिये उपयुक्त बनाये रखते हैं । [३] (आपः निम्नैः न) = जल जैसे निम्न मार्गों से गति करते हैं, उसी प्रकार ये साधक (निम्नैः उदभिः जिगत्लवः) = नम्रता की भावना को जगानेवाले रेतःकणों के साथ गतिशील होते हैं। ये अपने में रेत: कणों का रक्षण करते हैं और रक्षित रेतःकण इन्हें नम्र जीवनवाला बनाते हैं । [४] ये साधक (सामभिः) = उपासनाओं के द्वारा (अंगिरसः न) = अंगिरसों के समान, अंगारों की तरह देदीप्यमान पुरुषों के समान, (विश्वरूपा:) = [विश्वं रूपयन्ति] इस विश्व को उत्तम रूप देनेवाले हैं। उपासना से इन्हें शक्ति प्राप्त होती है, ये अग्निरूप प्रभु के समान ही चमक उठते हैं और संसार को उत्तम बनानेवाले होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-प्राणसाधक 'शीघ्रता से कार्य करनेवाले, बुराइयों का खण्डन करनेवाले, नम्रतापूर्वक गतिशील तथा उपासना से संसार को उत्तम रूप देनेवाले बनते हैं ।