'सूर्य, विद्युत वायु, तथा अग्नि' से भी अधिक महत्त्वपूर्ण सोम
पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे जीव ! (अर्च) = इन सोम कणों की अर्चना कर, इनको पूजनेवाला बन ! इसकी पूजा यही है कि इन के महत्त्व को समझकर इनका तू रक्षण करनेवाला हो। ये सोमकण (वा) = तुम्हारे लिये (दिवः चित्) = द्युलोकस्थ सूर्य देवता से भी (अमवत्तरेभ्यः) = अधिक प्राणशक्तिवाले हैं। 'प्राणः प्रजानामुदयत्येष सूर्य: ' यह सूर्य भी प्रजाओं का प्राण ही उदित होता है। पर सोमकण तो सूर्य से भी अधिक प्राणशक्ति को देनेवाले हैं । [२] ये सोमकण (विभ्वना चित्) = [विभु = ether सर्वत्र व्याप्त विद्युत्तत्व, etheric to light up] आकाश में सर्वत्र व्याप्त विद्युत्तत्व से भी आशु (अपस्तरेभ्यः) = शीघ्रता से कार्य करनेवाले हैं। विद्युत् कार्यों को अत्यन्त शीघ्रता से करनेवाली है, पर ये सोमकण मनुष्य को इससे भी अधिक स्फूर्ति के देनेवाले हैं । [३] (वायोः चित्) = आकाश में निरन्तर गतिशील वायु से भी (सोमरभस्तरेभ्यः) = अधिक सौम्यता से युक्त वेगशक्ति को देनेवाले हैं। वायु में वेग है, सोमकणों में उससे भी अधिक वेगशक्ति है। ये सोमकण इस वेगशक्ति को प्राप्त कराते हुए अपने साधक को सौम्य भी बनाते हैं । [४] (अग्नेः चित्) = पृथिवी के मुख्य देवता अग्नि से भी (पितुकृत्तरेभ्यः) = अधिक रक्षण को करनेवाले हैं। अग्नि तत्त्व शरीर का रक्षक है यह बात इस वाक्य से ही स्पष्ट है कि 'ठण्डा पड़ गया, अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो गया' । अग्नि तत्त्व है, तभी तक जीवन है । सोम इस अग्नितत्त्व का साधक होने से अग्नि से भी अधिक महत्त्व रखता ही है । जब तक सोम सुरक्षित रहता है तब तक शरीर में अग्नितत्त्व बना रहता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'सूर्य, विद्युत्, वायु तथा अग्नि' से भी जीवन के लिये अधिक महत्त्वपूर्ण है ।