वांछित मन्त्र चुनें

तदु॒ श्रेष्ठं॒ सव॑नं सुनोत॒नात्यो॒ न हस्त॑यतो॒ अद्रि॑: सो॒तरि॑ । वि॒दद्ध्य१॒॑र्यो अ॒भिभू॑ति॒ पौंस्यं॑ म॒हो रा॒ये चि॑त्तरुते॒ यदर्व॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tad u śreṣṭhaṁ savanaṁ sunotanātyo na hastayato adriḥ sotari | vidad dhy aryo abhibhūti pauṁsyam maho rāye cit tarute yad arvataḥ ||

पद पाठ

तत् । ऊँ॒ इति॑ । श्रेष्ठ॑म् । सव॑नम् । सु॒नो॒त॒न॒ । अत्यः॑ । न । हस्त॑ऽयतः । अद्रिः॑ । सो॒तरि॑ । वि॒दत् । हि । अ॒र्यः । अ॒भिऽभू॑ति । पौंस्य॑म् । म॒हः । रा॒ये । चि॒त् । त॒रु॒ते॒ । यत् । अर्व॑तः ॥ १०.७६.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:76» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:2


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्-उ) उस (श्रेष्ठं सवनम्) श्रेष्ठ अवसर को (सुनोतन) सम्पन्न करो, (हस्तयतः) हाथों में नियन्त्रित (अत्यः-न) घोड़े के समान-जैसे घोड़ा होता है (सोतरि) प्रेरयिता परमात्मा में (अद्रिः) मैं प्रशंसक होऊँ (अर्यः) वह स्वामी परमात्मा (अभिभूति पौंस्यम्) अभिभवकारी पौरुष-आत्मबल को (विदत्) प्राप्त करावे (यत्-अर्वतः) प्राप्तव्य या प्राप्त पदार्थों को (तरुते) प्रदान करता है-बढ़ाता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा की स्तुति में इतना बँध जाऊँ, जैसे घोड़ा बँध जाता है, इस ऐसे श्रेष्ठ अवसर को हम बनावें, वह स्वामी परमात्मा आत्मबल प्रदान करे, जिससे कि प्राप्तव्य पदार्थों को हम प्राप्त कर सकें ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रेष्ठ सवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे प्राणो ! (उ) = निश्चय से (तद्) = उस (श्रेष्ठं सवनम्) = सर्वोत्तम सवन को (सुनोतन) = करनेवाले बनो । श्रेष्ठ सवन 'सोम' का सवन है। आहार से रस रुधिरादि के क्रम से सोम को उत्पन्न करना ही ' श्रेष्ठ सवन' है। यह सोम (हस्तयतः) = ग्रहण करनेवाला का (अद्रि:) = न विदारण करनेवाला है, (सोतरि) = अपने उत्पन्न करनेवाले में यह (अतयः न) = सतत अतन [= गमन] शील अश्व के समान है, अर्थात् यह सोम अपने रक्षक पुरुष को सतत क्रियाशील बनाता है । [२] (अर्य:) = [स्वामी] जितेन्द्रिय पुरुष इस सोमरक्षण के द्वारा (हि) = निश्चय से (अभिभूति) = शत्रुओं के पराभूत करनेवाले (पौंस्यम्) = बल को (विदत्) = प्राप्त करता है । (यत्) = जब यह सोम (महो राये) = महान् ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (चित्) = ही (अर्वतः) = इन इन्द्रियरूप अश्वों को (तरुते) = [प्रयच्छति] देता है । सोमरक्षण से ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ अपने-अपने कार्यों को करने में सशक्त बनती हैं, उस समय ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञानरूप ऐश्वर्य को प्राप्त कराती हैं और कर्मेन्द्रियाँ यज्ञादि उत्तम कर्मों के साधन से पुण्यैश्वर्य को सिद्ध करनेवाली होती हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - श्रेष्ठतम सवन 'सोम का सवन' है । जितेन्द्रिय पुरुष के लिये यह सोम शत्रुओं को अभिभूत करनेवाले बल को प्राप्त कराता है । उस समय ज्ञानेन्द्रियाँ हमें ज्ञानैश्वर्य को तथा कर्मेन्द्रियाँ सुकृतैश्वर्य को प्राप्त करानेवाली होती हैं ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्-उ श्रेष्ठं सवनं सुनोतन) तत् खलु श्रेष्ठमवसरं सम्पादयत (हस्तयतः-अत्यः-न) हस्तयोर्यतो नियन्त्रितोऽश्वो यथा भवति तथा “अत्योऽश्वनाम” [निघ० १।१४] (सोतरि-अद्रिः) प्रेरयितरि परमात्मनि श्लोककर्त्ता प्रशंसको भूयासम् “अद्रिरसि श्लोककृत्” [कठ० १।५] (अर्यः-अभिभूति पौंस्यं विदत्) स्वामी परमात्मा अभिभूतिकरं पौरुषमात्मबलं प्रापयेत् (महः-राये चित्) महते मोक्षैश्वर्याय खल्वपि (यत्-अर्वतः-तरुते) प्राप्तव्यान् प्राप्तान् वा पदार्थान् प्रयच्छति प्रवर्धयति तथाभूतं पौरुषं प्रापयेत् ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Enact and accomplish that highest plan of yajnic action which like a goal-oriented programme of cloud showers in the hands of the creative maker of soma wins strength and power, progress and victory for the yajamana so that for the achievement of great wealth and progress he overcomes the worst hurdles and goes forward with quick mile stones of success.