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तृ॒ष्टाम॑या प्रथ॒मं यात॑वे स॒जूः सु॒सर्त्वा॑ र॒सया॑ श्वे॒त्या त्या । त्वं सि॑न्धो॒ कुभ॑या गोम॒तीं क्रुमुं॑ मेह॒त्न्वा स॒रथं॒ याभि॒रीय॑से ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tṛṣṭāmayā prathamaṁ yātave sajūḥ susartvā rasayā śvetyā tyā | tvaṁ sindho kubhayā gomatīṁ krumum mehatnvā sarathaṁ yābhir īyase ||

पद पाठ

तृ॒ष्टऽअ॑मया । प्र॒थ॒मम् । यात॑वे । स॒ऽजूः । सु॒ऽसर्त्वा॑ । र॒सया॑ । श्वे॒त्या । त्या । त्वम् । सि॒न्धो॒ इति॑ । कुभ॑या । गो॒ऽम॒तीम् । क्रुमु॑म् । मे॒ह॒त्न्वा । स॒ऽरथ॑म् । याभिः॑ । ईय॑से ॥ १०.७५.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:75» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रथमं यातवे) प्रबलरूप से गति करने को (तृष्टामया) तृष्णा को प्राप्त थोड़े जलवाला घर-स्थान जिसका है, ऐसे अत्यन्त थोड़े जलवाली नदी से (सुसर्त्वा रसया सजूः) अच्छी सरणशील साथ जानेवाली नदी के द्वारा (त्या श्वेत्या) उस श्वेतरङ्ग के जलवाली नदी के द्वारा (कुभया) कुत्सित भय देनेवाली के साथ (गोमतीम्) बहुत पृथिवीवाली अर्थात् विस्तारवाली (क्रुमुम्) दूर गई हुई नदी को  (मेहत्न्वा) सींचनेवाली के साथ (सिन्धो) हे स्यन्दनशील जलाशय ! (त्वं याभिः सरथम्-ईयसे) जिन पूर्व नदियों के साथ रमणस्थान को प्राप्त होता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - थोड़े जलवाली नदी बहुत जलवाली नदी के साथ मिल जाती है, तीव्र गति से बहनेवाली नदी निर्मल-श्वेत जलवाली होती है। वह भयङ्कर गहरी होती है तथा फैलनेवाली नदी और दूर तक जानेवाली नदी भूमि को सींचती हुई बहती हैं, इन सब का आश्रय पार्थिव समुद्र है ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

तृष्टामा से मेहत्नु तक

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सिन्धो) = [आप] स्पन्दनशील रेतःकण ! (त्व) = तू (प्रथमम्) = सर्वप्रथम (यातवे) = जीवन यात्रा की पूर्ति के लिये (तृष्टामया) = [तृष्टं=harsh, pungent, rugged, hoarse ] तृष्टामा के साथ, कटुता व अभद्रता पर आक्रमण Attack करने की वृत्ति के साथ (सजू:) = संगत हो । संसार में हम भद्र बनकर चलें । [२] तू (सुसर्त्वा) = [सु + सृ गतौ ] उत्तम गति के साथ संगत हो, (रसया) = रसा- रसवती वाणी के साथ संगत हो तथा (त्या श्वेत्या) = उन शुभ कलंकशून्य चित्तवृत्तियों के साथ संगत हो । [३] तू (कु-भया) = कुभा के साथ (गोमतीं कुमुम्) = गोमती क्रुमु को अपने साथ संगत कर । (कु) = पृथिवी, अर्थात् शरीर, (भा) = दीप्ति । शरीर की दीप्ति, अर्थात् तेजस्विता के साथ उत्तम ज्ञान की वाणीवाली [गौ-वाणी] गति [क्रम्] को प्राप्त हो। तेरा शरीर तेजस्वी हो, वाणी प्रशस्त हो और जीवन क्रियामय हो । [४] तू (मेहत्न्वा) [मिह सेचने ] = लोगों पर सुखों के वर्षण की भावना से संगत हो। ये 'तृष्टामा' आदि वृत्तियाँ वे हैं (याभिः) = जिनके साथ (सरथम्) = इस समान शरीर-रथ पर (ईयसे) = आरूढ़ होकर गतिवाला होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ -[क] शरीर में वीर्य के रक्षण होने पर हमें [ख] भद्रता प्राप्त होती है, हमारे कार्यों में कठोरता नहीं होती, [ग] हमारी क्रियाएँ उत्तम होती हैं, [घ] वाणी रसवती और [ङ] चरित्र अकलंक हमें शरीर की तेजस्विता प्राप्त होती है, [छ] प्रशस्त ज्ञानवाणीवाले हम होते हैं, [ज] इस ज्ञानवाणी के अनुसार क्रियाओं को करते हैं, [झ] हमारी ये क्रियाएँ सभी पर सुखों का वर्षण करनेवाली होती हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रथमं यातवे) प्रथमं गन्तुं (तृष्टामया) तृष्टं तृष्णागतमल्पं गृहं यस्या साऽत्यन्ताल्पजलाशयया “अमा गृहनाम” [निघ० ३।४] (सुसर्त्वा रसया सजूः) सुष्ठुसरणशीलया नद्या सह गमनया (त्या श्वेत्या) तथा श्वेतपूर्णभूतया नद्या (कुभया) कुत्सितभया-अस्पृश्ययेव “कुभा कुत्सितप्रकाशा” [ऋ० ५।५३।९ दयानन्दः] (गोमतीम्) बहुपृथिवीमतीं नदीम् (क्रुमुम्) दूरङ्गताम् “क्रुमुः क्रामिता” [ऋ० ५।५३।९ दयानन्दः] (मेहत्न्वा) सिञ्चत्या नद्या सह (सिन्धो) हे सिन्धो स्यन्दनशीलजलाशय ! (त्वं याभिः सरथम्-ईयसे) याभिः पूर्वोक्ताभिर्नदीभिः सह रमणस्थानं प्राप्नोषि ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Sindhu, flood and ocean of the dynamics of life, the streams which you first join and go on by the body chariot of existence are: Trshtama, the nadi with which food is first digested in the stomach, Susartu by which the energy produced is distributed over parts of the body system, Rasa by which energy vibrates across the whole system, Shveti by which food energy joins the blood stream, Kubha by which the skin cover is formed and sustained, Gomati by which speech and other senses are controlled, Krumu which controls and coordinates body movements, and Mehatnu which controls the urinary function.