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ब्रह्म॑ण॒स्पति॑रे॒ता सं क॒र्मार॑ इवाधमत् । दे॒वानां॑ पू॒र्व्ये यु॒गेऽस॑त॒: सद॑जायत ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

brahmaṇas patir etā saṁ karmāra ivādhamat | devānām pūrvye yuge sataḥ sad ajāyata ||

पद पाठ

ब्रह्म॑णः । पतिः॑ । ए॒ता । सम् । क॒र्मारः॑ऽइव । अ॒ध॒म॒त् । दे॒वाना॑म् । पू॒र्व्ये । यु॒गे । अस॑तः । सत् । अ॒जा॒य॒त॒ ॥ १०.७२.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:72» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:1» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:2


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणः-पतिः) ब्रह्माण्ड का पालक तथा स्वामी परमात्मा (कर्मारः-इव) लोहकार शिल्पी के समान (एता समधमत्) इन प्रादुर्भावरूप अङ्कुरों को सन्तापित करता है (देवानां पूर्व्ये युगे) दिव्यगुणवाले सूर्यादि के पूर्व होनेवाले काल में (असतः-सत्-अजायत) अव्यक्त उपादान से व्यक्त विकृतरूप जगत् उत्पन्न होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्माण्ड का स्वामी परमात्मा अव्यक्त प्रकृति से व्यक्त जगत् को उत्पन्न करता है। प्रथम प्रादुर्भूत होनेवाले परमाणुरूप अङ्कुरों को तपाता है, पुनः दिव्यगुणवाले सूर्यादि पदार्थों को उत्पन्न करता है ॥२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'असत्' का 'सत्' रूप में आना [देव युग ]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ब्रह्मणः पतिः) = ज्ञान का पति प्रभु कर्मार इव एक लोहार की तरह (एता) = इन सूर्यादि देवों की आकृतियों को (अधमत्) = प्रकृति पिण्ड को संतप्त करके ढालता था । प्रकृति के द्वारा प्रभु ने सूर्यादि को बनाया । एक लोहार लोहपिण्ड को संतप्त कर के आहत करता है और विविध आकृतियों में उसे परिणत करता है, इसी प्रकार प्रभु ने प्रकृति पिण्ड को संतप्त करके सूर्यादि देवों की आकृति में परिणत किया। [२] (देवानां पूर्व्यं युगे) = इस देवों के निर्माणवाले प्रथम युग में (असतः) = आकृतिशून्य अव्यक्त, असत् प्राय - प्रकृति से सत्-यह आकृतिवाला व्यक्त जगत् (अजायत) = प्रादुर्भूत हो गया । सृष्ट्युत्पत्ति का प्रथम युग वही है जिसमें कि 'असत् प्रकृति' 'सत् सृष्टि' का रूप लेती है, इसमें सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रों का निर्माण हो जाता है और यह 'देव-युग' कहलाता है। इन देवों का निर्माण ज्ञान के पति प्रभु से हुआ है, सो उसके ज्ञान की पूर्णता के कारण इनके निर्माण में भी किसी प्रकार की कमी नहीं। 'पूर्णमदः पूर्णमिदं'- प्रभु पूर्ण हैं, सो सृष्टि भी पूर्ण है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ने अव्यक्त प्रकृति को व्यक्त सृष्टि का रूप दिया। प्रभु पूर्ण ज्ञानी हैं सो उनकी रचना में भी न्यूनता नहीं है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ब्रह्मणः-पतिः) ब्रह्माण्डस्य पालकः पतिश्च (कर्मारः-इव-एता समधमत्) शिल्पी लोहकार इव एतान् ‘आकारादेशः’ प्रादुर्भावरूपानङ्कुरान् सन्तापयति (देवानां पूर्व्ये युगे) दिव्यगुणानामादित्यादीनां पूर्वभवे काले ततः (असतः-सत्-अजायत) अव्यक्तादुपादानाद् व्यक्तं सदात्मकं विकृतरूपं जायते ॥२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Brahmanaspati, lord, master and ordainer of the cycle of existence, sets these devas in motion like an artisan in the earliest age of evolution and they awake from the unmanifest state of Being into the manifest state of Becoming in existence. (The Avyakta, intangible, becomes the Vyakta, tangible, mode of Prakrti or Nature.)