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दे॒वानां॒ नु व॒यं जाना॒ प्र वो॑चाम विप॒न्यया॑ । उ॒क्थेषु॑ श॒स्यमा॑नेषु॒ यः पश्या॒दुत्त॑रे यु॒गे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

devānāṁ nu vayaṁ jānā pra vocāma vipanyayā | uktheṣu śasyamāneṣu yaḥ paśyād uttare yuge ||

पद पाठ

दे॒वाना॑म् । नु । व॒यम् । जाना॑ । प्र । वो॒चा॒म॒ । वि॒प॒न्यया॑ । उ॒क्थेषु॑ । श॒स्यमा॑नेषु । यः । पश्या॑त् । उत्ऽत॑रे । यु॒गे ॥ १०.७२.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:72» मन्त्र:1 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:1» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में परमात्मा द्वारा क्रमशः सृष्टिरचन तथा सृष्टि के पदार्थों का लाभ कैसे ग्रहण करना चाहिए इत्यादि उपदेश है।

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) मैं (देवानां जाना) दिव्य पदार्थों के प्रादुर्भावों-उत्पत्तिक्रमों को (विपन्यया) विशेष स्तुति बुद्धि या क्रिया से (नु प्रवोचाम) अवश्य प्रवचन करता हूँ (शस्यमानेषु-उक्थेषु) उच्चारणयोग्य वेदवचनों में जो वर्णित हैं (यः पश्यात्) जो बृहस्पति परमात्मा दर्शाता है (उत्तरे युगे) अगले समय में ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा दिव्य पदार्थों के उत्पत्तिक्रमों को वेदों में उत्तरोत्तर क्रम से जो वर्णन करता है, उनका विद्वान् उपदेश करें ॥१॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सृष्ट्युत्पत्ति

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (वयम्) = हम (नु) = अब (विपन्यया)[विस्पष्टया वाचा ] = वेदवाणी रूप प्रशस्त वाणी से (देवानाम्) = सूर्य, चन्द्र, तारे और पृथिवी आदि देवों के (जाना) = जन्मों को (प्रवोचाम) = प्रतिपादित करते हैं। वेद-मन्त्रों में सृष्टि की उत्पत्ति का विषय वर्णित हुआ है । [२] इसलिए (उक्थेषु शस्यमानेषु) = इन वेद- मन्त्रों के, स्तोत्रों के उच्चरित होने पर (यः) = जो उपस्थित होता है वह (उत्तरे युगे) = आनेवाले युगों में (पश्यात्) = इस सृष्टि की उत्पत्ति को देखता है । वेद मन्त्रों में वर्णित उस सृष्ट्युत्पत्ति को समझनेवाला वह बनता है । वेद-मन्त्रों में प्रभु के द्वारा इस सृष्ट्युत्पत्ति का वर्णन पढ़नेवाले के हृदय में प्रभु-भक्ति की भावना को जगाता है, ये वर्णन ही प्रभु के स्तवन बन जाते हैं। इनका शंसन हमें प्रभु-प्रवण बनाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वेद-मन्त्रों में वर्णित सृष्ट्युत्पत्ति को हम समझें और प्रभु की महिमा का अनुभव करें ।
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ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते परमात्मा क्रमशः सृष्टिरचनं कृतमित्युपदिश्यते सृष्टिपदार्थानां लाभः कथं ग्राह्य इत्यपि चोपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (वयम्) अहं खलु (देवानां जाना) दिव्यपदार्थानां प्रादुर्भावान् “जनी प्रादुर्भावे” [दिवा०] ततो घञ्प्रत्ययः शसः स्थाने “सुपां सुलुक्पूर्वसवर्णा०” [अष्टा० ७।१।३९] आकारादेशः (विपन्यया) विशेषेण पण्यया प्रज्ञया क्रियया वा “विपन्यया विशेषेण स्तुत्या प्रशंसितया प्रज्ञया क्रिया वा” [ऋ० ३।२८।५ दयानन्दः] (नु प्रवोचाम) प्रवच्मि प्रकाशयामि ‘उभयत्र बहुवचनमेकमस्मिन्’ ‘अस्मदो द्वयोश्च’ [अष्टा० १।२।५९] (शस्यमानेषु-उक्थेषु) वर्ण्यमानेषु वेदवचनेषु मन्त्रेषु ये वर्णिताः सन्ति (यः पश्यात्-उत्तरे युगे) यो बृहस्पतिः-वेदविद्यास्वामी परमात्मा पश्यति दर्शयति ‘अन्तर्गतो णिजर्थः’-उत्तरे युगे क्रमशः पश्चात् काले च प्रादुर्भावाद्ये भवन्ति तानपि दर्शयति ॥१॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Let us proclaim in clear words of grateful adoration the birth and evolution of nature’s divine manifestations which, when the verses are chanted, one may see and appreciate in later ages to come.