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ऋ॒चां त्व॒: पोष॑मास्ते पुपु॒ष्वान्गा॑य॒त्रं त्वो॑ गायति॒ शक्व॑रीषु । ब्र॒ह्मा त्वो॒ वद॑ति जातवि॒द्यां य॒ज्ञस्य॒ मात्रां॒ वि मि॑मीत उ त्वः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛcāṁ tvaḥ poṣam āste pupuṣvān gāyatraṁ tvo gāyati śakvarīṣu | brahmā tvo vadati jātavidyāṁ yajñasya mātrāṁ vi mimīta u tvaḥ ||

पद पाठ

ऋ॒चाम् । त्वः॒ । पोष॑म् । आ॒स्ते॒ । पु॒पु॒ष्वान् । गा॒य॒त्रम् । त्वः॒ । गा॒य॒ति॒ । शक्व॑रीषु । ब्र॒ह्मा । त्वः॒ । वद॑ति । जा॒त॒ऽवि॒द्याम् । य॒ज्ञस्य॑ । मात्रा॑म् । वि । मि॒मी॒ते॒ । ऊँ॒ इति॑ । त्वः॒ ॥ १०.७१.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:71» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:24» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वः) एक विद्वान् (ऋचां पोषं पुपुष्वान्-अस्ते) ऋङ्मन्त्रों के पोष-ज्ञान को लेकर विराजता है (त्वः) कोई एक (शक्वरीषु गायत्रं गायति) शक्तिवाली ऋचाओं में गातव्य स्तोतव्य परमात्मा को गाता है स्तुति में लाता है (त्वः-उ) कोई एक विद्वान् (यज्ञस्य मात्रां विमिमीते) यजनीय के भाग-अवयव सरणि को विशेषरूप से निर्धारित करता है (त्वः) एक विद्वान् (ब्रह्मा जातविद्यां वदति) चतुर्वेदवेत्ता वेदों में प्रसिद्ध विद्या का प्रवचन करता है ॥११॥
भावार्थभाषाः - वेदों में निष्णात विद्वान् कोई ऋङ्मन्त्रों के ज्ञान का प्रवचन करता है, कोई गाने योग्य मन्त्रों से परमात्मा का गुणगान करता है, कोई मन्त्रों से यज्ञ की सरणि का विधान करता है और कोई चारों वेदों का वेत्ता वेदों की प्रसिद्ध विद्या का व्याख्यान करता है ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

चार ऋत्विन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्रों में वर्णित ज्ञानियों में चार ज्ञानी ऋत्विज ही सब यज्ञादि कार्यों को सम्पन्न कराते हैं । उनमें से (त्वः) = एक 'होता' (ऋचां पोषं पुपुष्वान्) = ऋचाओं के यथाविधि कर्मों में प्रयोग का पोषण करता हुआ (आस्ते) = यज्ञवेदि में आसीन होता है । [२] (त्वः) = एक उद्गाता (शक्करीषु) = प्रभु के सम्पर्क के द्वारा शक्ति को उत्पन्न करनेवाली 'शक्वरी' नामक ऋचाओं में (गायत्रम्) = प्राणों का रक्षण करनेवाले 'गायत्र' नामक साम का (गायति) = गायन करता है। साम के द्वारा प्रभु के गुणों का गायन होता है, प्रभु के इस उपासन से उपासक के जीवन में शक्ति का संचार होता है। [३] (त्वः) = एक (ब्रह्मा) = सर्ववेदवेत्ता-विशेषतः अथर्व के द्वारा दोषों को दूर करनेवाला (जातविद्यां वदति) = [जातेरवेदयित्रीं] उस-उस उत्पन्न कर्म में दोष दूरीकरण की विधि की ज्ञापक वाणी को बोलता है। [४] (उ) = और (त्वः) = एक अध्वर्यु, यजुर्वेद का विशेष ज्ञाता बनकर (यज्ञस्य मात्राम्) = यज्ञ की मात्रा को (विमिमीते) = मापता है। आहुति के परिमाणादि का निर्णय करता है। इस प्रकार 'होता' ऋग्वेद से, 'उद्गाता' सामवेद से, 'ब्रह्मा' अथर्व से और 'अध्वर्यु' यजुर्वेद से कार्य करता है। और ये चारों मिलकर यज्ञ को पूर्ण करते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम वेदों को पढ़ें, वेदज्ञान को यज्ञों में विनियुक्त करते हुए यज्ञशील हों । इस सूक्त में 'बृहस्पति' वेदज्ञानी बनकर किस प्रकार जीवन को सुन्दर बनाता है, इस बात का प्रतिपादन हुआ है । अगले सूक्त में 'बृहस्पति' सृष्ट्युत्पत्ति का प्रतिपादन करेगा तो उसका नाम ही 'लौक्य बृहस्पति' हो गया है। वह कहता है-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वः) एको विद्वान् (ऋचां पोषं पुपुष्वान्-आस्ते) ऋङ्मन्त्राणां पोषं ज्ञानं प्रवर्धनमनूपतिष्ठते (त्वः) एकः (शक्वरीषु गायत्रं गायति) शक्तिमतीषु गीतिष्वृक्षु “शक्वर्यः शक्तिमत्यः” [यजु० १०।४ दयानन्दः] गातव्यं स्तोतव्यं परमात्मानं गायति स्तौति (त्वः-उ यज्ञस्य मात्रां विमिमीते) एकः खलु विद्वान् यजनीयस्य देवपूजासङ्गतिकरणदानस्य भागमवयवं सरणिं वा विशिष्टतया धारयति (त्वः) एकः (ब्रह्मा जातविद्यां वदति) ब्रह्मा चतुर्वेदवेत्ता “ब्रह्मा चतुर्वेदविज्जनः” [ऋ० १।१६४।३५ दयानन्दः] वेदेषु प्रसिद्धां विद्यां प्रवदति ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Of the devotees of the divine voice of the Veda, one chants, celebrates and maintains the energy and enthusiasm of life vibrating in the Rks, one, the udgata, sings the gayatri verses in the Shakvari hymns of power, the Brahma, presiding high priest, proclaims the verses of universal knowledge from all the Vedas, and another, the adhvaryu, orders and organises the entire programme of the yajna in all details.