वांछित मन्त्र चुनें

स्व॒स्ति न॑: प॒थ्या॑सु॒ धन्व॑सु स्व॒स्त्य१॒॑प्सु वृ॒जने॒ स्व॑र्वति । स्व॒स्ति न॑: पुत्रकृ॒थेषु॒ योनि॑षु स्व॒स्ति रा॒ये म॑रुतो दधातन ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svasti naḥ pathyāsu dhanvasu svasty apsu vṛjane svarvati | svasti naḥ putrakṛtheṣu yoniṣu svasti rāye maruto dadhātana ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्व॒स्ति । नः॒ । प॒थ्या॑सु । धन्व॑ऽसु । स्व॒स्ति । अ॒प्ऽसु । वृ॒जने॑ । स्वः॑ऽवति । स्व॒स्ति । नः॒ । पु॒त्र॒ऽकृ॒थेषु॑ । योनि॑षु । स्व॒स्ति । रा॒ये । म॒रु॒तः॒ । द॒धा॒त॒न॒ ॥ १०.६३.१५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:63» मन्त्र:15 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:15


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे जीवन्मुक्त विद्वानों ! (नः स्वस्ति पथ्यासु धन्वसु) हमारे लिए स्वस्ति-कल्याण हो मार्ग में आनेवाले मरुप्रदेशों में (स्वस्ति अप्सु) जलप्रदेशों में कल्याण हो (स्वर्वति वृजने) सुखवाले दुःखवर्जित मोक्ष में कल्याण हो (पुत्रकृथेषु योनिषु नः स्वस्ति) सन्तानकर्मों में और गृहों में कल्याण हो (स्वस्ति राये दधातन) धन प्राप्त करने में कल्याण हो ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जीवन्मुक्त विद्वानों के शिक्षण से अपने मार्गों में आये मरुस्थलों, जलस्थलों, सन्तानोत्पत्तिवाले गृहस्थलों, धनप्रसङ्गों, दुःखरहित मोक्षों को सुखमय बनाना चाहिए ॥१५॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

उत्तम घर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र के अनुसार हमारा शरीर-रथ ठीक होगा तो (नः) = हमारे लिये (पथ्यासु) = पथ के योग्य समतल भूभागों में (स्वस्ति) = कल्याण हो । धन्वसु मरु प्रदेशों में हमारे लिये कल्याण हो । तथा (अप्सु) = जलमय प्रदेशों में भी (स्वस्ति) = कल्याण हो । वस्तुतः प्राणसाधना के ठीक प्रकार से होने पर सब स्थानों का जलवायु हमारे अनुकूल होता है। पूर्ण स्वस्थता में हमें बल प्राप्त होता है, बल हमें सुखमय स्थिति में रखता है। (स्वर्वति) = स्वर्गवाले वृजने शत्रुओं के पराभूत करनेवाले बल के होने पर हमारा कल्याण हो। [२] इस प्रकार स्वस्थ व सबल होकर हम घरों में कल्याणपूर्वक रहें । (नः) = हमारे (योनिषु) = उन घरों में, जिनमें कि पुत्रकृथेषु पुत्रों का निर्माण होता है, (स्वस्ति) = कल्याण हो । मनुष्य गृहस्थ बनता है, सन्तान के लिये । सो घर में सर्वमहान् कर्त्तव्य यही होता है कि सन्तान का उत्तम निर्माण किया जाए। हे (मरुतः) = प्राणो ! इन घरों में हमें (राये) = ऐश्वर्य के लिये (दधातन) = धारण करो जिससे (स्वस्ति) = हमारा कल्याण हो । निर्धनता भी घर के लिये दुर्गति का कारण बनती है। प्राणसाधक पुरुष उचित मात्रा में धन का संग्रह कर ही पाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणसाधना के होने पर हमें सर्वत्र जलवायु की अनुकूलता रहती है। हमें शत्रुओं को पराभूत करनेवाली शक्ति प्राप्त होती है। हमारे सन्तान उत्तम होते हैं और निर्धनता हमारे से दूर रहती है ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे जीवन्मुक्ता विद्वांसः ! (नः स्वस्ति पथ्यासु धन्वसु) अस्मभ्यं स्वस्ति पथि भवासु मरुप्रदेशेषु भवतु (स्वस्ति-अप्सु) जलप्रदेशेषु  जलेषु वा स्वस्ति भवतु (स्वर्वति वृजने) सुखवति सर्वं दुःखवर्जिते मोक्षे स्वस्ति भवतु (स्वस्ति नः पुत्रकृथेषु योनिषु) कल्याणं सन्तानकर्मसु गृहेषु भवतु (स्वस्ति राये दधातन) कल्याणं धनाय धारयत ॥१५॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O winds, O vibrant scientists and engineers, let there be peace, security and well being on the highways and desert lands, all well over the waterways, rivers and seas, all good and well being in our programmes of enlightened advancement for general happiness. Let there be general good and universal well being among our women’s lives and in family development programmes. O Maruts, bring us auspiciousness in our programmes of economic development for the growth of national wealth.