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विश्वे॑ यजत्रा॒ अधि॑ वोचतो॒तये॒ त्राय॑ध्वं नो दु॒रेवा॑या अभि॒ह्रुत॑: । स॒त्यया॑ वो दे॒वहू॑त्या हुवेम शृण्व॒तो दे॑वा॒ अव॑से स्व॒स्तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve yajatrā adhi vocatotaye trāyadhvaṁ no durevāyā abhihrutaḥ | satyayā vo devahūtyā huvema śṛṇvato devā avase svastaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वे॑ । य॒ज॒त्राः॒ । अधि॑ । वो॒च॒त॒ । ऊ॒तये॑ । त्राय॑ध्वम् । नः॒ । दुः॒ऽएवा॑याः । अ॒भि॒ऽह्रुतः॑ । स॒त्यया॑ । वः॒ । दे॒वऽहू॑त्या । हु॒वे॒म॒ । शृ॒ण्व॒तः । दे॒वाः॒ । अव॑से । स्व॒स्तये॑ ॥ १०.६३.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:63» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे यजत्राः) हे सब विद्याओं में प्रविष्ट सङ्गमनीय विद्वानो ! (ऊतये) रक्षा के लिए (अधि वोचत) शिष्यरूप से अधिकार में लेकर हमें उपदेश करो (दुरेवायाः (अभिह्रुतः-नः-त्रायध्वम्) दुःख को प्राप्त करानेवाली कुटिल मनोभावना से हमें-हमारी रक्षा करो (देवाः) हे विद्वानों ! (शृण्वतः-वः) तुम प्रार्थना सुननेवालों को (देवहूत्या सत्यया) देवों को प्रार्थित करते हैं जिससे, उस शुद्ध स्तुति के द्वारा (अवसे स्वस्तये हुवेम) रक्षा के लिए कल्याण के लिए प्रार्थित करते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - विद्याओं में निष्णात विद्वानों के पास शिष्यभाव से उपस्थित होकर विद्या ग्रहण करनी चाहिए। अपनी दुर्वासनाओं या दुष्प्रवृत्तियों को उनकी सङ्गति द्वारा दूर करना चाहिए। उनकी प्रशंसा अपने कल्याण के लिए-सद्भाव से करनी चाहिए ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'अवसे स्वस्तये' [कुटिलता व हिंसा से दूर]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (विश्वे) = सब (यजत्राः) = संगतिकरण योग्य (देवाः) = देवो! आप (ऊतये) = रक्षण के लिये (अधिवोचत) = हमें अधिक्येन उपदेश दीजिये और (नः) = हमें (दुरेवायाः) = दुर्गति-दुराचरण से तथा (अभिह्रुतः) = कुटिलता से व हिंसा से (त्रायध्वम्) = बचाइये । हम दुरितों व हिंसा के मार्ग से बचकर ही चलें। हमारा जीवन आपके दिये गये ज्ञान से पवित्र बने और उस पवित्र जीवन में दुरितों व हिंसा का कोई स्थान न हो। इस प्रकार आपका दिया हुआ ज्ञान हमारे रक्षण के लिये हो जाता है। [२] हे शृण्वतो (देवाः) = हमारी प्रार्थना को सुननेवाले देवो ! हम (वः) = आपको (सत्यया) = सत्य (देवहूत्या) = देवहूति से, देवों को पुकारने के ढंग से, (हुवेम) = पुकारें। देवों को पुकारने का सत्य प्रकार यही होता है कि हम नम्रता व जिज्ञासा की भावनावाले होकर उनके समीप जाएँ। इस प्रकार उनके समीप हम जाएँगे तो वे हमें वह सत्य ज्ञान प्राप्त करायेंगे जो हमारे अवसे रक्षण के लिये होगा और (स्वस्तये) = उत्तम स्थिति के लिये होगा। यह ज्ञान हमें वासनाओं से बचानेवाला होगा और नीरोगता व ऐश्वर्य के द्वारा हमारे जीवन की उत्तम स्थिति का कारण बनेगा।
भावार्थभाषाः - भावार्थ-हम ज्ञानियों के समीप नम्रता से पहुँचे और उस ज्ञान को प्राप्त करें जो हमारे रक्षण व कल्याण के लिये हो ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वे यजत्राः) हे सर्वविद्यासु प्रविष्टाः-सङ्गमनीया विद्वांसः ! (ऊतये) रक्षायै (अधि वोचत) शिष्यत्वेनाधिकृत्यास्मानुपदिशत (दुरेवायाः-अभिह्रुतः-नः-त्रायध्वम्) दुर्दुःखं प्रापयति या सा दुरेवा तस्याः कुटिलगतिकाया मनोभावनायाः-अस्मान् रक्षत (देवाः) हे विद्वांसः ! (शृण्वतः-वः) प्रार्थनां शृण्वतो युष्मान् (देवहूत्या सत्यया) देवान् यया ह्वयन्ते प्रार्थयन्ते तया शुद्ध्या स्तुत्या (अवसे स्वस्तये हुवेम) रक्षणाय कल्याणाय च प्रार्थयामहे ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Devas, brilliant and venerable sagely scholars of the science and vision of yajna, pray enlighten us on our defence and protection. Protect us from chronic evils and strengthen us with safe-guards against sudden calamities. In earnest truth we call upon you with words of divinity, pray listen and come for our protection so that we may live the good life with all round well being and happiness.