वांछित मन्त्र चुनें

स॒ह॒स्र॒दा ग्रा॑म॒णीर्मा रि॑ष॒न्मनु॒: सूर्ये॑णास्य॒ यत॑मानैतु॒ दक्षि॑णा । साव॑र्णेर्दे॒वाः प्र ति॑र॒न्त्वायु॒र्यस्मि॒न्नश्रा॑न्ता॒ अस॑नाम॒ वाज॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sahasradā grāmaṇīr mā riṣan manuḥ sūryeṇāsya yatamānaitu dakṣiṇā | sāvarṇer devāḥ pra tirantv āyur yasminn aśrāntā asanāma vājam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒ह॒स्र॒ऽदाः । ग्रा॒म॒ऽनीः । मा । रि॒ष॒त् । मनुः॑ । सूर्ये॑ण । अ॒स्य॒ । यत॑माना । ए॒तु॒ । दक्षि॑णा । साव॑र्णेः । दे॒वाः । प्र । ति॒र॒न्तु॒ । आयुः॑ । यस्मि॑न् । अस्रा॑न्ताः । अस॑नाम । वाज॑म् ॥ १०.६२.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:62» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:2» वर्ग:2» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:5» मन्त्र:11


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्रदाः-ग्रामणीः-मनुः) बहुत धन आदि के दाता ग्राम के नेता रक्षक और मननशील ज्ञान का दाता (मा रिषत) हमें हिंसित नहीं करता है, यह सत्य है, परन्तु (अस्य) इस ज्ञानदाता की (दक्षिणा यतमाना) दानक्रिया आगे-आगे प्रवर्तमान होती हुई (सूर्येण-एतु) सूर्य के समान होती हुई प्रकाशित हो-प्रसिद्धि को प्राप्त हो (देवाः सावर्णेः-आयुः प्रतिरन्तु) देवसमान ज्ञानभरण करने में कुशल के जीवन को बढ़ावें (यस्मिन्-अश्रान्ताः-वाजम् असनाम) जिस आश्रय में न थकते हुए ज्ञान का सम्भजन हम करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - अन्नादि का दाता मनुष्यों की रक्षा करता है, परन्तु ज्ञान के दाता की दानक्रिया बढ़ती हुई सूर्य की दीप्ति के समान प्रसिद्ध हो जाती है, आयु को बढ़ाती है, उसके आश्रय ज्ञानी बन जाते हैं ॥११॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'अश्रान्ता असनाम वाजाम्'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (सहस्रदा) = [स+हस्+दा] आनन्दपूर्वक देनेवाला, देने में आनन्द को अनुभव करनेवाला अथवा खूब दान करनेवाला, हजारों के देनेवाला (ग्रामणीः) = इन्द्रिय समूह का प्रणयन करनेवाला (मनुः) = ज्ञानी पुरुष (मा रिषत्) = हिंसित न हो । हिंसित न होने का मार्ग यही है कि हम [क] दानशील हों, [ख] इन्द्रिय समूह को यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रखें, [ग] ज्ञानी विचारशील बनें। [२] (अस्य) = इस मनु की दक्षिणा दानवृत्ति (सूर्येण) = सूर्योदय के साथ ही (यतमाना) = लोकहित के लिये उद्योग करती हुई एतु गतिमय हो, प्रवृत्त हो । अर्थात् यह ज्ञानी पुरुष दिन के प्रारम्भ से ही दान की वृत्तिवाला बने, प्रातः काल को दान से ही प्रारम्भ करे। इसका यह दान ' देशकालपात्र' का विचार करके दिया जाए जिससे वह सबके हितकारी कारण बने, अहित का नहीं। अपात्र में दिया गया दान उसके जीवन को और अधिक विकृत करनेवाला ही हो जाता है। [३] जो दान की वृत्ति के द्वारा अपने जीवन को उस सब कुछ देनेवाले प्रभु के समान ही बनाने के लिये बलशील होता है उस (सावर्णे:) = प्रभु के समान वर्णवाले की (आयुः) = आयु को (देवा:) = सब देव (प्रतिरन्तु) = बढ़ानेवाले हों। देवों की अनुकूलता से हम (वाजम्) = अन्न, बल का (असनाम) = उपभोग करें ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- दानी की अन्न, धन का अभाव नहीं हो सकता ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्रदाः-प्रामणीः-मनुः) सहस्रस्य बहुनो धनादिकस्य दाता ग्रामस्य नेता रक्षको मननशीलो ज्ञानदाता च (मा रिषत्) अस्मान्-न हिनस्तीति तु सत्यम्, परन्तु (अस्य) मनोज्ञानदातुः (दक्षिणा यतमाना) ज्ञानदान-क्रिया गच्छन्ती-अग्रेऽग्रे प्रवर्तमाना “यतो गतिकर्मा” [निघ० २।१४] (सूर्येण-एतु) सूर्येण समाना सती प्रकाशते प्रसिद्धिमेतु प्राप्नोतु (देवाः सावर्णेः-आयुः-प्रतिरन्तु) विद्वांसः समानज्ञानवरणे कुशलस्य जीवनं प्रवर्धयन्तु वर्धयन्ति हि (यस्मिन्-अश्रान्ताः-वाजम्-असनाम) यस्मिन्नाश्रयमाणे भ्रान्ति-रहिताः सन्तो वयं ज्ञानं सम्भजेमहि सम्भजामहे ॥११॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - The giver of thousands, leader of the community, must not be hurt, nor would he hurt anyone. May this generosity, active and advancing, rise with the sun day by day. May the divinities prolong and elevate the health and age of the man of versatile generosity and competence, and may we, under his guidance and leadership, relentlessly advancing, win the goal and victory of our aspirations.