देववीति - देवहूति [दिव्यगुणों की प्राप्ति व यज्ञ]
पदार्थान्वयभाषाः - [१] अद्य-आज इस प्रभु ने नः = हमारे लिये साध्वीम् = अत्यन्त उत्तम देववीतिम्-दिव्यगुणों की प्राप्ति को अक: = किया है। प्रभु की कृपा से हम दिव्यगुणों को प्राप्त कर पाये हैं । प्रभु ने हमें यज्ञस्य जिह्वाम् = उस उपासनीय यज्ञरूप प्रभु की वाणी को प्राप्त कराया है, अर्थात् हमें उस जिह्वा को प्राप्त कराया है जो प्रभु के ही नामों का उच्चारण करती है । हमने गुह्याम् = अत्यन्त रहस्यमय इस वेदवाणी को अविदाम-जाना है। 'गुहा' शब्द हृदयदेश के लिये भी प्रयुक्त होता है । हमने इस हृदय में जिसका प्रभु से ज्ञान दिया जाता है उस 'गुह्या' वेदवाणी को प्राप्त किया है । [२] वे प्रभु अद्य=आज नः- हमारी भद्राम्-कल्याणकारिणी देवहूतिम् = यज्ञक्रिया को [देवा: हूयन्ते यस्याम्] अकः=करते हैं, अर्थात् हमारे जीवन को वे प्रभु यज्ञमय बनाते हैं और सुरभिः = सुगन्धमय वे प्रभु आयुः वसानः - हमारे जीवनों को आच्छादित करते हुए आगात्-आते हैं, प्राप्त होते हैं । वस्तुतः यज्ञों की प्रेरणा देकर, हमारे से यज्ञों को कराते हुए वे प्रभु सारे वातावरण को सुगन्धमय बना देते हैं। इस से हमारा जीवन सुरक्षित होता है और हम रोगादि से आक्रान्त नहीं होते ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमें दिव्यगुणों को प्राप्त कराएँ । हमारी वाणी यज्ञरूप प्रभु का स्तवन करें। हम वेदज्ञान को प्राप्त करें। यज्ञमय जीवनवाले बनकर नीरोग व दीर्घजीवी हों।