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सा॒ध्वीम॑कर्दे॒ववी॑तिं नो अ॒द्य य॒ज्ञस्य॑ जि॒ह्वाम॑विदाम॒ गुह्या॑म् । स आयु॒रागा॑त्सुर॒भिर्वसा॑नो भ॒द्राम॑कर्दे॒वहू॑तिं नो अ॒द्य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sādhvīm akar devavītiṁ no adya yajñasya jihvām avidāma guhyām | sa āyur āgāt surabhir vasāno bhadrām akar devahūtiṁ no adya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा॒ध्वीम् । अ॒कः॒ । दे॒वऽवी॑तिम् । नः॒ । अ॒द्य । य॒ज्ञस्य॑ । जि॒ह्वाम् । अ॒वि॒दा॒म॒ । गुह्या॑म् । सः । आयुः॑ । आ । अ॒गा॒त् । सु॒र॒भिः । वसा॑नः । भ॒द्राम् । अ॒कः॒ । दे॒वऽहू॑तिम् । नः॒ । अ॒द्य ॥ १०.५३.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:53» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्य) इस जन्म अवसर पर या विद्वत्सम्मेलनावसर पर (नः) हमारे लिए (साध्वीं देववीतिम्-अकः) अच्छी इन्द्रिय भोगप्राप्ति या विद्वान् की ज्ञानप्राप्ति को करता है (यज्ञस्य गुह्यां जिह्वाम्-अविदाम) उसके द्वारा शरीरयज्ञ की या ज्ञानयज्ञ की रहस्यभूत वाणी तथा विद्या को (सः-आयुः सुरभिः-वसानः-आगात्) वह आत्मा या विद्वान् आयु का निमित्त, जीवनप्रद, ज्ञान का निमित्त ज्ञाता, निजगुणसुगन्धरूप हमें संरक्षण देता हुआ-हमारी रक्षा करता हुआ (अद्य) इस जन्मावसर पर या सत्सङ्गावसर पर (नः) हमारे लिए (भद्रां देवहूतिम्-अकः) कल्याणकारी या दिव्यगुणवाले विद्वानों की संगृहिति-सहप्राप्ति को करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जन्म के अवसर पर बालक पारिवारिक जनों की प्रसन्नता का कारण बनता है। बड़ा होकर इन्द्रियों के भोगों को संयम से भोगता हुआ पारिवारिक जनों के सुख का निमित्त बनता है तथा घर में विद्वानों की संगति कराकर उसके विद्यामृत का लाभ भी पहुँचाता है, अतः बालकों को विद्याप्राप्ति करानी चाहिए ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देववीति - देवहूति [दिव्यगुणों की प्राप्ति व यज्ञ]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] अद्य-आज इस प्रभु ने नः = हमारे लिये साध्वीम् = अत्यन्त उत्तम देववीतिम्-दिव्यगुणों की प्राप्ति को अक: = किया है। प्रभु की कृपा से हम दिव्यगुणों को प्राप्त कर पाये हैं । प्रभु ने हमें यज्ञस्य जिह्वाम् = उस उपासनीय यज्ञरूप प्रभु की वाणी को प्राप्त कराया है, अर्थात् हमें उस जिह्वा को प्राप्त कराया है जो प्रभु के ही नामों का उच्चारण करती है । हमने गुह्याम् = अत्यन्त रहस्यमय इस वेदवाणी को अविदाम-जाना है। 'गुहा' शब्द हृदयदेश के लिये भी प्रयुक्त होता है । हमने इस हृदय में जिसका प्रभु से ज्ञान दिया जाता है उस 'गुह्या' वेदवाणी को प्राप्त किया है । [२] वे प्रभु अद्य=आज नः- हमारी भद्राम्-कल्याणकारिणी देवहूतिम् = यज्ञक्रिया को [देवा: हूयन्ते यस्याम्] अकः=करते हैं, अर्थात् हमारे जीवन को वे प्रभु यज्ञमय बनाते हैं और सुरभिः = सुगन्धमय वे प्रभु आयुः वसानः - हमारे जीवनों को आच्छादित करते हुए आगात्-आते हैं, प्राप्त होते हैं । वस्तुतः यज्ञों की प्रेरणा देकर, हमारे से यज्ञों को कराते हुए वे प्रभु सारे वातावरण को सुगन्धमय बना देते हैं। इस से हमारा जीवन सुरक्षित होता है और हम रोगादि से आक्रान्त नहीं होते ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु हमें दिव्यगुणों को प्राप्त कराएँ । हमारी वाणी यज्ञरूप प्रभु का स्तवन करें। हम वेदज्ञान को प्राप्त करें। यज्ञमय जीवनवाले बनकर नीरोग व दीर्घजीवी हों।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्य) अस्मिन् जन्मावसरे विद्वत्सम्मेलनावसरे वा (नः) अस्मभ्यम् (साध्वीं देववीतिम्-अकः) समीचीनां देवानामिन्द्रियाणां भोगप्राप्तिं “देववीतिं देवानां दिव्यानां गुणानां भोगानां प्राप्तये” [यजु० ५।९ दयानन्दः] विदुषां ज्ञानप्राप्तिं वा करोति (यज्ञस्य गुह्यां जिह्वाम्-अविदाम) तद्द्वारा शरीरयज्ञस्य ज्ञानयज्ञस्य रहस्यभूतां वाचं विद्यामिति यावत् “जिह्वा वाङ्नाम” [निघ० १।११] (सः-आयुः सुरभिर्वसानः-आगात्) स आत्मा विद्वान् वा आयुर्निमित्तो जीवनप्रदः ज्ञाननिमित्तो ज्ञाता “ज्ञाता” [ऋ० १।१६२।१ दयानन्दः] निजगुणसुगन्धरूपोऽस्मानाच्छादयन् संरक्षयन् (अद्य) अस्मिन् जन्मावसरे सत्सङ्गावसरे वा (नः) अस्मभ्यम् (भद्रां देवहूतिम्-अकः) कल्याणकरीं दिव्यगुणानां विदुषां वा सङ्गृहितिम् “देवहूतौ दिव्यगुणां विदुषां वा सङ्ग्रहणे” [ऋ० ६।५२।४ दयानन्दः] करोति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - May Agni beatify our yajnic service to the assemblage of divinities on the vedi today so that we may have their blessings and hear the secret voice of divinity by the flames. May the life spirit, harbinger of health and happiness, come today bearing the fragrance of life and render our divine worship full of blessings and all round well being.