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मां दे॒वा द॑धिरे हव्य॒वाह॒मप॑म्लुक्तं ब॒हु कृ॒च्छ्रा चर॑न्तम् । अ॒ग्निर्वि॒द्वान्य॒ज्ञं न॑: कल्पयाति॒ पञ्च॑यामं त्रि॒वृतं॑ स॒प्तत॑न्तुम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

māṁ devā dadhire havyavāham apamluktam bahu kṛcchrā carantam | agnir vidvān yajñaṁ naḥ kalpayāti pañcayāmaṁ trivṛtaṁ saptatantum ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

माम् । दे॒वाः । द॒धि॒रे॒ । ह॒व्य॒ऽवाह॑म् । अप॑ऽम्लुक्तम् । ब॒हु । कृ॒च्छ्रा । चर॑न्तम् । अ॒ग्निः । वि॒द्वान् । य॒ज्ञम् । नः॒ । क॒ल्प॒या॒ति॒ । पञ्च॑ऽयामम् । त्रि॒ऽवृत॑म् । स॒प्तऽत॑न्तुम् ॥ १०.५२.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:52» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हव्यवाहम्-अपम्लुक्तं बहु कृच्छ्रा चरन्तं माम्) ग्रहण करने योग्य ज्ञान के वहनकर्त्ता तथा ज्ञान से रहित बहुत कृच्छ्र-कठिन ब्रह्मचर्यव्रतों के आचरण करते हुए मुझ ब्रह्मचारी को (देवाः-दधिरे) विद्वान् धारण करते हैं-स्वीकार करते हैं (अग्निः-विद्वान्) यह आत्मा विद्वान् होता हुआ (नः) हमारे या हमारे लिए (पञ्चयामं त्रिवृतं सप्ततन्तुं यज्ञं कल्पयाति) पाँच मार्गों-पाँच गतियोंवाले-पाँच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सिद्ध हुए तथा मन वचन कर्म से चरितार्थ हुए, सात गायत्री आदि छन्दों से युक्त ज्ञानयज्ञ-वेदरूप ज्ञान को समर्थ करेगा-सफल करेगा ॥४॥
भावार्थभाषाः - ब्रह्मचारी अज्ञान अवस्था में पड़ा हुआ ज्ञान ग्रहण करने का पात्र होकर ब्रह्मचर्य जैसे कठिन व्रतों का आचरण करता हुआ विद्वानों से सात गायत्री आदि छन्दोंवाले वेदज्ञान को ग्रहण करता है। उस ज्ञान को, जो इन्द्रियों के द्वारा यथार्थ आचरण करने में मन वचन और कर्म से जीवन में घटाने योग्य तथा जीवन को सफल बनानेवाला है ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु स्मरण व यज्ञ-साधन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] अग्नि प्रभु कहते हैं कि (देवा:) = देववृत्ति के पुरुष (हव्यावाहम्) = सब हव्य पदार्थों के देनेवाले (माम्) = मुझे (दधिरे) = धारण करते हैं। उस मुझे जो कि (अपम्लुक्तम्) = [अपक्रम्य आगतम्] प्रतिक्षण इस देने के काम से भयभीत होकर दूर आ गया हूँ 'होत्रादहं वरुण विभ्यदाय', अथवा अज्ञानियों की दृष्टि से ओझल हूँ । परन्तु फिर भी (कृच्छ्रा) = कष्टों में (बहु चरन्तम्) = खूब विचरण करता हूँ। लोग मुझे भूले रहते हैं, परन्तु कष्टों के आने पर मेरा खूब ही स्मरण करते हैं। feast [फ़ीस्ट] में मैं उन्हें भूला रहता हूँ पर fast [फ़ास्ट] में तो वे मेरा भरपूर स्मरण करते ही हैं। इस मुझको देव सदा स्मरण करते हैं। [२] मेरा स्मरण करता हुआ (अग्निः) = प्रगतिशील (विद्वान्) = ज्ञानी पुरुष (नः) = हमारे, मेरे द्वारा वेदवाणी में प्रतिपादित (यज्ञम्) = यज्ञ को (कल्पयाति) = सिद्ध करता है । उस यज्ञ को सिद्ध करता है जो (पञ्चयामम्) = पाँच मार्गांवाला है, 'ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ और बलिवैश्वदेवयज्ञ' इन पाँच रूपों में चलता है (त्रिवृतम्) = [त्रिषु वर्तते] २४ वर्ष के प्रातः सवन में, ४४ वर्ष के माध्यन्दिन सवन में तथा ४८ वर्ष के तृतीय सवन में सदा रहता है इसीलिए 'जरामर्य' कहलाता है 'जरया ह्येवैतस्मान्मुच्यते मृत्युनावा' इस यज्ञ से तो तभी छुटकारा होता है यदि अत्यन्त जीर्णत, आजाय या मृत्यु ही हो जाए। (सप्ततन्तुम्) = यह यज्ञ वेद के सात छन्दों में विभक्त मन्त्रों से विस्तृत किया जाता है। यज्ञों में बोले जानेवाले मन्त्र सात छन्दों में हैं, सो वह यज्ञ भी 'सप्त तन्तु' है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - देव हव्यवाह प्रभु का धारण करते हैं । अज्ञानियों से प्रभु दूर हैं, वे तो कष्ट पड़ने पर ही प्रभु का स्मरण करते हैं। ज्ञानी देव तो सदा प्रभु-प्रतिपादित यज्ञों को अपनाते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (हव्यवाहम्-अपम्लुक्तं बहु कृच्छ्रा चरन्तं माम्) ग्राह्यज्ञानस्य वहनकर्त्तारं तथा ज्ञानादपगतं ज्ञानरहितम् “अप् पूर्वात् ‘म्लुचु गतौ” [भ्वादिः] तत्र क्तः ककारस्य मकारश्छान्दसः” बहूनि कृच्छ्राणि ब्रह्मचर्यव्रतानि खल्वाचरन्तं माम् (देवाः-दधिरे) विद्वांसो धारयन्ति स्वीकुर्वन्ति (अग्निः-विद्वान्) एष आत्मा विद्वान् सन् (नः) अस्माकम्-अस्मभ्यं वा (पञ्चयामं त्रिवृतं सप्ततन्तुं यज्ञं कल्पयाति) पञ्चमार्गं पञ्चगतिकं वा पञ्चज्ञानेन्द्रियैः सिद्धं मनसा वाचा कर्मणा च वृतं चरितार्थं सप्ततन्तुं सप्तछन्दोभिर्युक्तं ज्ञानयज्ञं समर्थयति-समर्थयिष्यति ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Me the devas, divines, honour and uphold while I conduct the powers and obligations of the yajnic system for them and face the many difficult and most laborious situations even in the minutest details with perfect discipline. Hence they all say: This Agni, the light and fire of the system, well aware of life and its conduct, accomplishes the yajna, threefold, five ways and seven stages.