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ये ते॑ विप्र ब्रह्म॒कृत॑: सु॒ते सचा॒ वसू॑नां च॒ वसु॑नश्च दा॒वने॑ । प्र ते सु॒म्नस्य॒ मन॑सा प॒था भु॑व॒न्मदे॑ सु॒तस्य॑ सो॒म्यस्यान्ध॑सः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye te vipra brahmakṛtaḥ sute sacā vasūnāṁ ca vasunaś ca dāvane | pra te sumnasya manasā pathā bhuvan made sutasya somyasyāndhasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये । ते॒ । वि॒प्र॒ । ब्र॒ह्म॒ऽकृतः॑ । सु॒ते । सचा॑ । वसू॑नाम् । च॒ । वसु॑नः । च॒ । दा॒वने॑ । प्र । ते । सु॒म्नस्य॑ । मन॑सा । प॒था । भु॒व॒न् । मदे॑ । सु॒तस्य॑ । सो॒म्यस्य॑ । अन्ध॑सः ॥ १०.५०.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:50» मन्त्र:7 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:9» मन्त्र:7 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विप्र) हे विशेषरूप से तृप्त करनेवाले ! (ते) तेरे (ये ब्रह्मकृतः) स्तोत्र-स्तुति करनेवाले (सुते सचा) उपासनाप्रसङ्ग में सम्मिलित (वसूनां च वसुनः-च दावने) सांसारिक धनों का भी जो श्रेष्ठ बसानेवाला मोक्षधन है, उसके प्रदान करने के लिए उपासक लोग स्तुति करते हैं (मनसा पथा) मनोभाव के सत्यपथ-सदाचण द्वारा (ते मदे) तेरे हर्ष के निमित्त (सुम्नस्य सुतस्य सोम्यस्य प्रभुवन्) निष्पादित साधुभाव उपासनारस के समर्पण में समर्थ होते हैं, उन्हें तू अनुगृहीत कर ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा, स्तुति करनेवालों को सब धनों से ऊँचें धन मोक्ष को प्रदान करता है। जो मन से और सदाचरण से तथा साधुभाव से परमात्मा की उपासना करने में समर्थ होते हैं, उन पर वह कृपा बनाये रखता है ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु-भक्त के लक्षण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (विप्र) = [वि- प्रा पूरणे] विशेषरूप से सबका पूरण करनेवाले प्रभो ! (ये) = जो व्यक्ति (ते) = आपके हैं वे (सुते) = सोमयज्ञों के होने पर (सचा) = मिलकर (ब्रह्मकृतः) = मन्त्रों का उच्चारण करनेवाले व ज्ञान का सम्पादन करनेवाले होते हैं । [२] इसके अतिरिक्त वे (वसूनां च) = सांसारिक धनों के, निवास के लिये आवश्यक अन्न-वस्त्र आदि वस्तुओं के (च) = और (वसुनः) = निवास को उत्तम बनाने के लिये आवश्यक ज्ञानरूप धन के दावने [दानाय ] दान के लिये होते हैं । प्रभु के भक्त जहाँ यज्ञमय जीवन बिताते हुए ज्ञान का साधन करते हैं, वहाँ वे भौतिक धनों के व ज्ञान धन के देनेवाले होते हैं। [३] (ते) = आपके व्यक्ति (सुम्नस्य) = स्तोत्रों के (पथा) = मार्ग से (मनसा) = मनन के साथ (प्र भुवन्) = प्रकर्षेण होते हैं। प्रभु-प्रवण व्यक्ति सदा विचारपूर्वक प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं, ये प्रभु के नाम का जप करते हैं और उसके अर्थ का चिन्तन करते हैं । [४] ये प्रभु- भक्त लोग (सोम्यस्य अन्धसः) = सोम्य अन्न के तथा (सुतस्य) = उस अन्न से उत्पन्न सोम के [semen = वीर्य के] मदे हर्ष में निवास करते हैं। ये लोग आग्नेय भोजनों को न करके सोम्य भोजनों को करनेवाले बनते हैं और उन भोजनों से उत्पन्न सोम शक्ति के रक्षण से उल्लासमय जीवनवाले होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु के व्यक्ति वे हैं जो - [क] मिलकर यज्ञों में मन्त्रोच्चारण करते हैं, [ख] भौतिक धनों व ज्ञानधन के देनेवाले होते हैं, [ग] मनन के साथ प्रभु के नाम का जप करते हैं, [घ] सोम्य भोजनों से उत्पन्न शक्ति के रक्षण से उल्लासमय जीवनवाले होते हैं । सूक्त के प्रारम्भ में कहा है कि प्रभु हमें 'ज्ञान, बल व ऐश्वर्य' प्राप्त कराते हैं, [१] वे हमारा सब प्रकार से हित करते हैं, [२] आनन्द में वे ही हैं जो प्रभु प्रेरणा को सुनते हैं, [३] प्रभु ही सर्वमहान् मन्त्र हैं, [४] वे ही सर्वरक्षक हैं, [५] प्रभु का वरण शरीर व मन के स्वास्थ्य के द्वारा होता है, [६] प्रभु-भक्त सोम्य भोजन ही करते हैं, [७] सोम्य भोजन से देववृत्ति का बनकर ही व्यक्ति प्रभु का दर्शन करता है-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विप्र) हे विशिष्टतया प्रीणयितः परमात्मन् ! (ते) तव (ब्रह्मकृतः) ये खलु स्तोत्रकृतः स्तुतिकर्तारः (सुते सचा) उपासनाप्रसङ्गे सम्मिलिताः (वसूनां च वसुनः-च दावने) सांसारिकधनानां वासकधनस्य मोक्षस्य च दानाय दाननिमित्तं स्तुवन्तीति शेषः, तथा (मनसा पथा) मनोभावेन पथा सत्पथा सदाचरणेन च (ते मदे) तव हर्षनिमित्तम् (सुम्नस्य-सुतस्य सोम्यस्य प्रभुवन्) साधुभावस्य निष्पादितस्योपासनारसस्य समर्पणे प्रभवन्ति तान् त्वमनुगृहाण ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Lord of vibrant generosity, the celebrants of divinity in song together in this assembly wait for your gift of the highest wealth of wealths. May they, with their heart and soul and by the path of rectitude, abide in the peace and joy of the soma gift of your grace of spiritual food they pray for.