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ए॒ता विश्वा॒ सव॑ना तूतु॒मा कृ॑षे स्व॒यं सू॑नो सहसो॒ यानि॑ दधि॒षे । वरा॑य ते॒ पात्रं॒ धर्म॑णे॒ तना॑ य॒ज्ञो मन्त्रो॒ ब्रह्मोद्य॑तं॒ वच॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etā viśvā savanā tūtumā kṛṣe svayaṁ sūno sahaso yāni dadhiṣe | varāya te pātraṁ dharmaṇe tanā yajño mantro brahmodyataṁ vacaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒ता । विश्वा॑ । सव॑ना । तू॒तु॒मा । कृ॒षे॒ । स्व॒यम् । सू॒नो॒ इति॑ । स॒ह॒सः॒ । यानि॑ । द॒धि॒षे । वरा॑य । ते॒ । पात्र॑म् । धर्म॑णे । तना॑ । य॒ज्ञः । मन्त्रः॒ । ब्रह्म॑ । उ॒त्ऽय॑तम् । वचः॑ ॥ १०.५०.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:50» मन्त्र:6 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:9» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एता विश्वा सवना तूतुमा कृषे) हे परमात्मन् ! इन सब निष्पादन योग्य स्तुति-प्रार्थना-उपासना कर्मों को तू शीघ्र स्वीकार करता है (सहसः सूनो) अध्यात्मबल के उत्पादक परमात्मा ! (यानि स्वयं दधिषे) जिनको तू स्वयं विधान करता है, वेदों में उपदेश देता है, (ते पात्रं धर्मणे वराय तना) तेरे पात्रभूत तुझको वरनेवाले-ध्यान करनेवाले के लिए अध्यात्मधन होवें (यज्ञः-मन्त्रः-ब्रह्मोद्यतं वचः) उस पात्रभूत के-स्तोता के यज्ञ-श्रेष्ठकर्म, मनन, ज्ञान, प्रकट हुए-हुए स्तुतिवचन तेरे लिए होवें ॥६॥
भावार्थभाषाः - वेदों में कहें स्तुति, प्रार्थना, उपासना आदि कर्म परमात्मा को स्वीकार होते हैं। उस पात्रभूत स्तुतिकर्ता के लिए परमात्मा आध्यात्मिक धन प्रदान करता है, इसलिए स्तुतिकर्ता अपने श्रेष्ठकर्म, मनन, ज्ञान आदि परमात्मा के प्रति समर्पित करे ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शरीर व मन के स्वास्थ्य के द्वारा प्रभु का वरण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (एता विश्वा सवना) = इन सब यज्ञों को (तूतुमा) = शीघ्रता से पूर्ण होनेवाला (कृषे) = आप करते हैं। प्रभु कृपा से ही यज्ञ पूर्ण होते हैं । [२] हे (सहसः) = सूनो शक्ति के पुत्र शक्ति के पुञ्ज प्रभो! ये यज्ञ वे हैं (यानि) = जिनको (स्वयम्) = आप स्वयं (दधिषे) = धारण करते हैं, प्रभु यज्ञों का धारण करनेवाले हैं, वे ही इन्हें शीघ्रता से पूर्ण करते हैं । [३] हे प्रभो ! (ते वराय) = आपके वरण के लिये (पात्रम्) = रक्षण है । अर्थात् आपका वरण वही व्यक्ति कर पाता है जो अपना रक्षण करता है । जो शरीर को रोगों से बचाता है और मन को ईर्ष्या-द्वेष आदि से आक्रान्त नहीं होने देता । स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मन हमें प्रभु प्राप्ति के योग्य बनाते हैं। [४] (धर्मणे) = धारण के लिये (तना) = धन है, (यज्ञः) = यज्ञ है, (मन्त्रः) = मन्त्र है और (ब्रह्मोद्यतं) = ब्रह्म से दिया हुआ [उद्यम् = to offer, give ] (वचः) = वचन है। संसार में जीवनयात्रा को ठीक से चलाने के लिये तथा शरीर व मन के स्वास्थ्य के लिये धन की आवश्यकता तो होती ही है [तना], उन धनों का यज्ञों में विनियोग और यज्ञशेष का सेवन ही अमृतत्व का साधक है [यज्ञः] । यज्ञमय जीवन बनाने के लिये विचार व मनन आवश्यक है [मंत्र:] इस विचार व मनन के लिये सृष्टि के प्रारम्भ में प्रभु से दी गई वेदवाणी आधार बनती है [ब्रह्मोद्यतं वचः] । एवं ये 'धन, यज्ञ, मन्त्र व ब्रह्मोद्यत वाणी' सब हमारे धारण के साधन बनते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम यज्ञशील बनें, प्रभु हमारे यज्ञों का रक्षण करेंगे। प्रभु के वरण के लिये शरीर व मन का स्वस्थ बनाना आवश्यक है । इनके धारण के लिये धन तो आवश्यक है ही, पर उस धन का यज्ञों में विनियोग नितान्त आवश्यक है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एता विश्वा सवना तूतुमा कृषे) हे परमात्मन् ! इमानि विश्वानि निष्पाद्यानि स्तुतिप्रार्थनोपासनानि कर्माणि शीघ्रं स्वीकरोषि (सहसः सूनो) अध्यात्मबलस्य उत्पादक परमात्मन् ! (यानि स्वयं दधिषे) यानि खलु स्वयं विदधिषे विदधासि वेदेषूपदिशसि (ते पात्रं धर्मणे वराय तना) तव पात्राय पात्रभूताय ‘चतुर्थीस्थाने द्वितीया’ त्वां वरयित्रे धारकाय ध्यानशीलाय-अध्यात्मधनानि भवन्तु “तना धननाम” [निघ० २।१०] (यज्ञः-मन्त्रः ब्रह्मोद्यतं वचः) तस्य पात्रभूतस्य स्तोतुः-यज्ञम् श्रेष्ठकर्मयजनं मननं ज्ञानं प्रकटितं स्तुतिवचनं तुभ्यमस्तु ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - You perform all these acts of holiness, O inspirer of force and power, which you hold and sustain. May your protection be for safety and peace, wealth for Dharma mantra, for communion, and the song be for Divinity.