वांछित मन्त्र चुनें

मां धु॒रिन्द्रं॒ नाम॑ दे॒वता॑ दि॒वश्च॒ ग्मश्चा॒पां च॑ ज॒न्तव॑: । अ॒हं हरी॒ वृष॑णा॒ विव्र॑ता र॒घू अ॒हं वज्रं॒ शव॑से धृ॒ष्ण्वा द॑दे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

māṁ dhur indraṁ nāma devatā divaś ca gmaś cāpāṁ ca jantavaḥ | ahaṁ harī vṛṣaṇā vivratā raghū ahaṁ vajraṁ śavase dhṛṣṇv ā dade ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

माम् । धुः॒ । इन्द्र॑म् । नाम॑ । दे॒वता॑ । दि॒वः । च॒ । ग्मः । च॒ । अ॒पाम् । च॒ । ज॒न्तवः॑ । अ॒हम् । हरी॒ इति॑ । वृष॑णा । विऽव्र॑ता । र॒घू इति॑ । अ॒हम् । वज्र॑म् । शव॑से । धृ॒ष्णु । आ । द॒दे॒ ॥ १०.४९.२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:49» मन्त्र:2 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:2


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः-ग्मः-अपां च जन्तवः) द्युलोक के पृथिवीलोक के अन्तरिक्षलोक के जाननेवाले मनुष्य (मां देवताम्-इन्द्रं नाम धुः) मुझ परमात्मा देवता को धारण करते हैं (अहं वृषणा हरी विव्रता रघू) मैं परमात्मा सुखवर्षक विविध-कर्मसम्पादक शीघ्रप्रभाववाले दुःखहारक और सुखाहारक अपने दया और प्रसाद को प्रेरित करता हूँ (अहम्) मैं परमात्मा (शवसे धृष्णु वज्रम्-आददे) जगत् संचालन बल के लिए धर्षक ओज को आत्मबल को ग्रहण कर रहा हूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - द्युलोक अन्तरिक्षलोक और पृथिवीलोक को जाननेवाले मनुष्य अर्थात् इन तीनों को जानकर इनके रचयिता परमात्मा को अपने अन्दर धारण करते हैं। परमात्मा इन्हें अपने दुःख नष्ट करनेवाले व सुख प्राप्त करानेवाले दयाप्रसाद को प्रदान करता है, जो कि अपने बल से जगत् का संचालन करता है ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु का धारण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रभु कहते हैं कि - (इन्द्रं नाम) = परमैश्वर्यवाला व परम शक्तिमान् [इदि परमैश्वर्ये, इन्द्र to be powerful] होने से 'इन्द्र' नामवाले (माम्) = मुझको (देवताः धुः) = देवलोग धारण करते हैं । वस्तुतः मुझे धारण करने के कारण ही वे देव बनते हैं। देव तो प्रभु का सदा स्मरण करते ही हैं, देवों के अतिरिक्त (दिवः च) द्युलोक के भी, (ग्मः च) = इस पृथ्वीलोक के भी (च) = तथा (अपाम्) = अन्तरिक्षलोक के (जन्तवः) = प्राणी भी मुझे धारण करते हैं। कष्ट आने पर सभी प्रभु का स्मरण करते हैं। [२] (अहम्) = मैं ही (हरी) = ज्ञान व कर्म के द्वारा दुःखों को दूर करने के कारणभूत [हरणात् हरेः ] इन्द्रियाश्वों को, जो (वृषणा) = शक्तिशाली हैं, (विव्रता) = विविध व्रतोंवाले हैं, प्रत्येक इन्द्रिय का अपना अलग-अलग कार्य है, (रघू) = जो लघुगतिवाले हैं, तीव्रगति से अपना-अपना कार्य करनेवाले हैं, इस प्रकार के इन्द्रियाश्वों को (आददे) = स्वीकार करता हूँ । प्रभु ही हमें इस प्रकार के इन इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करानेवाले हैं । [३] प्रभु कहते हैं कि (अहम्) = मैं ही (धृष्णु) = कामादि शत्रुओं का धर्षण करनेवाले (वज्रम्) = क्रियाशीलता रूप वज्र को (शवसे) = शक्ति के लिये (आददे) = स्वीकार करता हूँ। प्रभु हमें यह क्रियाशीलता रूप वज्र प्राप्त कराते हैं, इससे हम जहाँ शत्रुओं का धर्षण करने में समर्थ होते हैं वहाँ अपनी शक्ति का वर्धन करनेवाले होते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु का धारण करके ही देव देव बने हैं । दुःख में सभी प्रभु का धारण करनेवाले बनते हैं। प्रभु ही हमें उत्तम इन्द्रियाश्वों को प्राप्त कराते हैं । और क्रियाशीलता के द्वारा वे हमारी शक्ति का वर्धन करते हैं और हमें इस योग्य बनाते हैं कि हम कामादि शत्रुओं को कुचल सकें।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (दिवः-ग्मः-अपां च जन्तवः) द्युलोकस्य पृथिव्याः-अन्तरिक्षलोकस्य ज्ञातारो जन्तवः-मनुष्याः “मनुष्या वै जन्तवः” [श० ७।३।१।३२] (मां देवताम्-इन्द्रं नाम धुः) मां परमात्मानं देवतां नाम धारयन्ति (अहं वृषणा हरी विव्रता रघू) अहं परमात्मा सुखवर्षकौ दयाप्रसादौ विविधकर्मसम्पादकौ शीघ्रगामिनौ धारयामि (अहम्) अहं परमात्मा (शवसे धृष्णु वज्रम्-आददे) जगच्चालनबलाय धर्षकं वज्रमोज आत्मबलमाददे-गृह्णामि ॥२॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Living beings of land, waters, heaven and all spaces and all that move, they accept and adore me in faith as Indra, the omnipotent sustained I keep the twofold dynamic forces of high velocity constantly on the move in the cosmic process of evolution, and I, power supreme, wield the thunderbolt as my sceptre of omnipotent justice and dispensation.