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आ॒दि॒त्यानां॒ वसू॑नां रु॒द्रिया॑णां दे॒वो दे॒वानां॒ न मि॑नामि॒ धाम॑ । ते मा॑ भ॒द्राय॒ शव॑से ततक्षु॒रप॑राजित॒मस्तृ॑त॒मषा॑ळ्हम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ādityānāṁ vasūnāṁ rudriyāṇāṁ devo devānāṁ na mināmi dhāma | te mā bhadrāya śavase tatakṣur aparājitam astṛtam aṣāḻham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒दि॒त्याना॑म् । वसू॑नाम् । रु॒द्रिया॑णाम् । दे॒वः । दे॒वाना॑म् । न । मि॒ना॒मि॒ । धाम॑ । ते । मा॒ । भ॒द्राय॑ । शव॑से । त॒त॒क्षुः॒ । अप॑राऽजितम् । अस्तृ॑तम् । अषा॑ळ्हम् ॥ १०.४८.११

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:48» मन्त्र:11 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:11


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यानां वसूनां रुद्रियाणां देवानां धाम) सूर्य के समान तेजस्वी अड़तालीस वर्षपर्यन्त ब्रह्मचर्य सेवन करनेवालों के, भूमिसमान बसाने के स्वभाववाले चौबीस वर्षपर्यन्त ब्रह्मचर्यव्रतवालों के, अग्नि के समान गतिकर्मवाले चवालीस वर्षपर्यन्त ब्रह्मचर्यसेवन करनेवालों के, उनके अध्यापक विद्वानों के पद या स्थान को (देवः-न मिनामि) मैं उन-उनके गुणों का दाता हिंसित नहीं करता हूँ (ते) वे आदित्य आदि ब्रह्मचारी (भद्राय शवसे) कल्याण के लिए और अपने आत्मबल के लिए (अपराजितम्-अस्तृतम्-अषाढं मा ततक्षुः) पराजयरहित हिंसावर्जित न सहने योग्य मुझ परमात्मा को अपने अन्दर साक्षात् करें ॥११॥
भावार्थभाषाः - अड़तालीस वर्ष के ब्रह्मचारियों, चवालीस वर्ष के ब्रह्मचारियों और चौबीस वर्ष के ब्रह्मचारियों के पद को वह परमात्मा क्षीण नहीं करता, अपितु वे अपने कल्याण और स्वात्मबल के लिए उसे अपने अन्दर साक्षात् करते हैं। वह उन्हें कल्याण और आत्मबल देनेवाला है ॥११॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अपराजित-अहिंसित-अनाभिभूत

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (देवानां देवः) = देवों का देव, देवाधिदेव प्रभु (आदित्यानाम्) = सब वेदों के विद्वान् आदित्य ब्रह्मचारियों के (वसूनाम्) = विज्ञानवेद के अध्ययन से उत्तम निवासवाले ब्रह्मचारियों के तथा (रुद्रियाणाम्) = ज्ञान प्राप्ति के द्वारा कामादि शत्रुओं के लिये भयंकर रुद्र ब्रह्मचारियों के धाम तेज को (न मिनाति) = नष्ट नहीं करता। [२] प्रभु कहते हैं कि (ते) = वे 'आदित्य, वसु व रुद्र' (मा) = मुझे (भद्राय शवसे) = कल्याणकर शक्ति के लिये ततक्षुः- अपने अन्दर निर्मित करते हैं । जो मैं (अपराजितम्) = अपराजित हूँ (अस्तृतम्) = अहिंसित हूँ तथा (अषाढम्) = कामादि से अनभिभूत हूँ । अपने हृदयों में मेरा निर्माण करते हुए, अर्थात् मुझे स्थापित करते हुए ये लोग 'भद्र शवस्' को प्राप्त करते हैं, ये शक्तिशाली होते हैं [शवस् ] परन्तु शक्ति का प्रयोग ये सदा दूसरों के कल्याण के लिये ही करते हैं। ये भी मेरी तरह 'अपराजित, अस्तृत व अषाढ' बनते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम हृदयों में प्रभु को स्थापित करें, जिससे हम 'अपराजित अहिंसित व वासनाओं से न दबे हुए' हो पायें। सूक्त के प्रारम्भ में कहते हैं कि प्रभु ही धनपति हैं, [१] प्रभु ही हमें, वासनाओं को नष्ट करके, अजीर्ण शक्तिवाला बनाते हैं, [२] प्रभु का पूजन कर्मों से ही होता है, [३] प्रभु-पूजन हमें पशु से देव बना देता है, [४] हम प्रभु मित्र बनें, नकि धन मित्र, [५] प्रभु स्मरण से कामादि शत्रुओं की प्रबलता समाप्त हो जाती है, [६] प्रभु भक्त बनकर मैं कामादि को जीत लेता हूँ, [७] हम क्रियाशील हों और प्रभु उपासकों के संग में रहें, [८] हम प्रभु के प्रति नमन व प्रभु का आश्रयण करनेवाले हों, [९] जिनमें प्रभु स्थित होते हैं, वे आविर्भूत शक्तिवाले होते हैं, [१०] हम भी प्रभु की तरह 'अपराजित, अहिंसित व वासनाओं से अनभिभूत' होंगे, [११] प्रभु ही भक्तों को धन देते हैं-
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यानां वसूनां रुद्रियाणां देवानां धाम) सूर्यसदृशतेजस्काना-मष्टाचत्वारिंशवर्षपर्यन्तकृतब्रह्मचर्याणां भूमिवद्वासस्वभावानां चतुर्विंशतिवर्षपर्यन्तकृतब्रह्मचर्याणां वा, अग्निवद्गतिकर्मवतां चतुश्चत्वारिंशवर्षपर्यन्तचरितब्रह्मचर्याणां ब्रह्मचारिणां वा तदध्यापकानां विदुषां च धाम प्रतिष्ठापदम् (देवः-न मिनामि) अहं तत्तद्गुणानां दाता परमात्मा न हिनस्मि (ते) आदित्यादयः (भद्राय शवसे) कल्याणाय स्वात्मबलाय च (अपराजितम्-अस्तृतम्-अषाढं मा ततक्षुः) पराजयरहितं हिंसावर्जितमषोढव्यं मां परमात्मानं स्वाभ्यन्तरे साक्षात्कुर्वन्तु ॥११॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Light of lights, generous and potent, I never violate, frustrate or transgress the identity, function and power of the Adityas, zodiacs of the sun, of Vasus, natural spheres of life sustenance, or Rudras, forces such as winds and pranic energies. Nor do I ever disturb the aditya, rudra and vasu scholars of knowledge and divine service. Let them all realise me and manifest my spirit and presence for their good and fulfilment of their prowess: me, Indra, undaunted, unviolated and unopposed.