पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत सूक्तों की ऋषिका 'घोषा काक्षीवती' थी, प्रभु के नाम का उच्चारण करनेवाली तथा शत्रुसंहार के लिये कटिबद्ध । इस घोषा का पुत्र 'घौषेय' है। खूब ही प्रभु के नाम का उच्चारण करनेवाला । यह 'सुहस्त्य' है, उत्तम हाथोंवाला है, कार्यकुशल है । 'प्रभु स्मरण करनेवाला कार्यकुशल' व्यक्ति उत्तम शरीर-रथ की कामना करता है। कहता है कि (वयम्) = हम (उषसो व्युष्टौ) = प्रातः काल के होते ही (त्यं उ) = उस ही (रथम्) = रथ को (हवामहे) = पुकारते हैं, उस शरीररथ के लिये प्रार्थना करते हैं जो कि [क] (समानम्) = सार आनयति हमें सम्यक् उत्साहयुक्त करता है, जीवन वही ठीक है जो कि उत्साह - सम्पन्न हो । [ख] (पुरुहूतम्) = जो बहुतों से पुकारा जाता है अथवा जिसका पुकारना, पालन व पूरण करनेवाला है। जिस शरीर को प्राप्त करके हम अपनी न्यूनताओं को दूर करके उन्नतिपथ पर आगे बढ़ सकें। [ग] (उक्थ्यम्) = जो रथ उक्थों में उत्तम है, स्तोत्रों में उत्तम है । जीवन वही उत्तम है कि जो प्रभु-स्तवन से युक्त हो । [घ] (त्रिचक्रम्) = जो रथ त्रिचक्र है, ज्ञान, कर्म व उपासना ही इस रथ के तीन चक्र हैं। अथवा 'इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि' रूप तीन चक्रोंवाला यह रथ है । [ङ] (सवना गनिग्मतम्) = जो रथ तीनों सवनों तक चलनेवाला है। प्रातः सवन २४ वर्ष तक है, माध्यन्दिन सवन अगले ४४ वर्षों का है और तृतीय सवन अन्तिम ४८ वर्षों का है। इस प्रकार यह रथ ११६ वर्षों तक चलनेवाला हो। [च] (परिज्मानम्) = उस रथ को हम पुकारते हैं जो कि 'परितोगन्तारम्', अपने दैनिक कर्त्तव्यों को उत्तमता से निभानेवाला है । [छ] (विथ्यम्) = [विदथः यज्ञ नाम नि० ३ । १७, विदथानि वेदनानि नि० ६ । ७] यह रथ यज्ञों में उत्तम हो। हम जीवन में यज्ञों को करनेवाले हों। अथवा हम जीवन के लिये आवश्यक धनों को कमानेवाले हों। [२] 'ऐसे रथ को हम प्राप्त कैसे होंगे ?' इसका उत्तर 'सुवृक्तिभिः' शब्द से दिया गया है । सुष्ठु दोषवर्जन से हम ऐसे रथ को प्राप्त करेंगे। दोषों को दूर करते जाना ही अपने जीवन को उत्तम बनाने का मार्ग है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हमारा यह शरीररूप रथ दोषवर्जन के द्वारा उत्तम बने ।