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यु॒वं ह॑ भु॒ज्युं यु॒वम॑श्विना॒ वशं॑ यु॒वं शि॒ञ्जार॑मु॒शना॒मुपा॑रथुः । यु॒वो ररा॑वा॒ परि॑ स॒ख्यमा॑सते यु॒वोर॒हमव॑सा सु॒म्नमा च॑के ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvaṁ ha bhujyuṁ yuvam aśvinā vaśaṁ yuvaṁ śiñjāram uśanām upārathuḥ | yuvo rarāvā pari sakhyam āsate yuvor aham avasā sumnam ā cake ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒वम् । ह॒ । भु॒ज्युम् । यु॒वम् । अ॒श्वि॒ना॒ । वश॑म् । यु॒वम् । शि॒ञ्जार॑म् । उ॒शना॑म् । उप॑ । आ॒र॒थुः॒ । यु॒वः । ररा॑वा । परि॑ । स॒ख्यम् । आ॒स॒ते॒ । यु॒वोः । अ॒हम् । अव॑सा । सु॒म्नम् । आ । च॒के॒ ॥ १०.४०.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:40» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:19» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना युवम्) हे शिक्षित स्त्री-पुरुषों ! तुम (ह भुज्युम्) अवश्य भोगप्रद पालक राजा को (युवं वशम्) तुम दोनों निजवश में वर्तमान नौकर को (युवं शिञ्जारम्) तुम दोनों शान्तवक्ता ब्राह्मण को (उशनाम्) धनधान्य की कामना करनेवाले वैश्य को (उप आरथुः) प्राप्त करते हो (ररावा युवयोः सख्यं परि-आसते) दान करनेवाला तुम दोनों की मित्रता को प्राप्त होता है या आश्रय करता है (अहं युवयोः-अवसा सुम्नम्-आ चके) मैं गृहस्थ तुम दोनों के रक्षण करनेवाले प्रवचन से सुख को चाहता हूँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - शिक्षित स्त्री-पुरुषों को यथासाधन चारों वर्णों को सहयोग देना और उनके सहयोग से सुख की कामना करनी चाहिए ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

भुज्यु -वश- शिञ्जार- उशमा - ररावा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (युवम्) = आप दोनों (ह) = निश्चय से (भुज्युम्) = [भुज् - यु] पालन के लिये भोजन करनेवाले को (उपारथुः) = प्राप्त होते हो। दूसरे शब्दों में शरीर-रक्षण के लिये ही भोजन करनेवाला 'प्राणयात्रिक मात्र' पुरुष प्राणापान की शक्ति को प्राप्त करता है। [२] (युवम्) = आप दोनों (वशम्) = अपनी इन्द्रियों को वश में करनेवाले को प्राप्त होते हो । जितेन्द्रिय पुरुष ही प्राणापान की शक्ति का वर्धन करनेवाला होता है । [३] (युवम्) = आप दोनों (शिञ्जारम्) = भूषणों के शब्द की तरह मधुर शब्दों में प्रभु-उपासन करनेवाले को प्राप्त होते हो । प्रभु उपासना जितेन्द्रिय बनने में सहायक होती हैं, और जितेन्द्रिय पुरुष ही प्राणयात्रा के लिये ही, न कि स्वाद के लिये, भोजन करनेवाला होता है। [४] (उशनाम्) = [नि० ६ । १३] सर्वहित की कामना करनेवाले को आप प्राप्त होते हो । द्वेषादि से प्राणापान की शक्ति की क्षीणता होती है। द्वेष से ऊपर उठकर हृदय में सब के भद्र का चिन्तन करने से प्राणापान की शक्ति का वर्धन होता है। सर्वहित की भावना 'शिञ्जार' = प्रभु-भक्त में ही उत्पन्न होती है । [५] (ररावा) = खूब देनेवाला, त्याग की वृत्तिवाला पुरुष, (युवोः) = आप दोनों के (सख्यम्) = मित्रता को परि आसते सर्वथा प्राप्त करता है। स्वार्थ की भावना भी प्राणशक्ति का क्षय करती है। सो (अहम्) = मैं (युवोः अवसा) = आप दोनों के रक्षण से (सुम्नम्) = सुख की (आचके) = कामना करता हूँ । प्राणापान का रक्षण मिलने पर ही मनुष्य का जीवन सुखी होता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणापान की शक्ति 'भुज्यु - वश - शिञ्जार- उशना व ररावा' को प्राप्त होती है । 'भुज्यु' बनने के लिये, 'वश' होने की आवश्यकता है। 'वश' बनने के लिये 'शिञ्जार' बनना सहायक होता है। 'शिञ्जार' अवश्य 'उशना' बनता है और वह 'ररावा' होता है । एवं 'शिञ्जार' केन्द्रीभूत शब्द है। एक ओर वह हमें 'भुज्यु व वश' बनाता है, तो दूसरी ओर हम उससे 'उशना व ररावा' बनते हैं। एवं प्रभु-स्तवन का महत्त्व सुव्यक्त है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना युवम्) हे शिक्षितस्त्रीपुरुषौ !  युवाम् (ह) अवश्यम् (भुज्युम्) भोगप्रदं पालकं राजानम् (युवं वशम्) युवां वशे वर्तमानं भृत्यं पालनीयं शूद्रम् (युवं शिञ्जारम्) युवां शान्तवक्तारं ब्राह्मणम् “शिञ्जे शब्दं करोति” [निरु० ९।१८] (उशनाम्) धनधान्यं कामयमानं वैश्यम् “उशना कामयमाना” [ऋ० १।१५१।१० दयानन्दः] (उपारथुः) उपगच्छथः-प्राप्नुथः (ररावा युवयोः सख्यं परि-आसते) दानकर्त्ता युवयोः पितृत्वमाश्रयति (अहं युवयोः-अवसा सुम्नम्-आचके) अहं गृहस्थो युवयोः रक्षणकारकेण प्रवचनेन सुखं वाञ्छामि ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, protect the protector and sustainer of the people’s standard of living, protect the dependent and supporter, protect him who appreciates and adores, and protect the poet of love and beauty. Your generous admirer loves to be friends with you, and I too pray for your protection and gift of well being. Pray help all these people to complete their journey of life to self- fulfilment.