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ता म॑न्दसा॒ना मनु॑षो दुरो॒ण आ ध॒त्तं र॒यिं स॒हवी॑रं वच॒स्यवे॑ । कृ॒तं ती॒र्थं सु॑प्रपा॒णं शु॑भस्पती स्था॒णुं प॑थे॒ष्ठामप॑ दुर्म॒तिं ह॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā mandasānā manuṣo duroṇa ā dhattaṁ rayiṁ sahavīraṁ vacasyave | kṛtaṁ tīrthaṁ suprapāṇaṁ śubhas patī sthāṇum patheṣṭhām apa durmatiṁ hatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ता । म॒न्द॒सा॒ना । मनु॑षः । दु॒रो॒णे । आ । ध॒त्तम् । र॒यिम् । स॒हऽवी॑रम् । व॒च॒स्यवे॑ । कृ॒तम् । ती॒र्थम् । सु॒ऽप्र॒पा॒नम् । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । स्था॒णुम् । प॒थे॒ऽस्थाम् । अप॑ । दुः॒ऽम॒तिम् । ह॒त॒म् ॥ १०.४०.१३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:40» मन्त्र:13 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ता मन्दसाना शुभस्पती) हे वे तुम हर्ष देनेवाले, कल्याण के स्वामी कल्याणप्रद ! (मनुषः-दुरोणे) मनुष्य के घर में (वचस्यवे) अपने लिए उपदेश के इच्छुक जन के लिए (सहवीरं रयिम्-आ धत्तम्) पुत्रसहित धनकोष सम्पादन करो (सुप्रपाणं तीर्थं कृतम्) तथा सुन्दर सुख का पान करानेवाले पापतारक गृहस्थाश्रम को बनाओ (पथेष्ठां दुर्मतिं स्थाणुम्-अपहतम्) गृहाश्रम के मार्ग में प्राप्त दुर्वासना और जड़ता को दूर करो ॥१३॥
भावार्थभाषाः - सुशिक्षित वृद्ध स्त्री-पुरुष नवगृहस्थों को सुख पहुँचानेवाले उसके घर में उपदेश के इच्छुक जन के लिए सन्तति धन की प्राप्ति जिस प्रकार हो सके और गृहस्थाश्रम पापरहित सुख पहुँचानेवाला बन सके, ऐसे उपाय करें और गृहस्थ के मार्ग में आनेवाली दुर्वासना और जड़ता को नष्ट करने का यत्न करें ॥१३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

घर तीर्थ बन जाए

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ता) = वे (मन्दसाना) = हर्ष को पैदा करते हुए प्राणापानो! (मनुषः) = विचारपूर्वक कर्म करनेवाले के (सहवीरम्) = वीर पुत्रों से युक्त (रयिम्) = धन को (आधत्तम्) = सर्वथा धारण करो। मैं आपकी कृपा से धन को प्राप्त करूँ और उत्तम सन्तान को प्राप्त करूँ। [२] (शुभस्पती) = सब शुभों के रक्षण करनेवाले आप मेरे घर को (तीर्थं कृतम्) = तीर्थ बना दो। यह हमें 'तारयति' = तैरानेवाला हो, नकि डुबानेवाला हम पति-पत्नी एक दूसरे का हाथ पकड़कर पर्वतीय जलधाराओं की तरह सब अप्रिय वासनाओं को पारकर जाएँ। (सुप्रपाणं कृतम्) = इस घर को आप उत्तम प्रकृष्ट प्याऊ बना दो। हम जल व दुग्ध आदि उत्तम पेयों का ही यहाँ प्रयोग करें। (३) आप इस घर में (स्थाणुम्) = परमात्मा को, जो सदा स्थिर है, सर्वव्यापकता के नाते जिसके हिलने का सम्भव नहीं, उस परमात्मा को इस घर में करो। इस घर में प्रातः सायं प्रभु का ध्यान अवश्य हो । (पथेष्ठाम्) = ये प्रभु ही हमें मार्ग पर स्थित करनेवाले हैं। प्रभु स्मरण हमें मार्गभ्रष्ट नहीं होने देता । हे प्राणापानो ! आप (दुर्मतिम्) = दुर्मति को (अपहतम्) = हमारे से सदा दूर रखो। हम दुर्मति का शिकार न हों। प्राणसाधना से बुद्धि के दोष भी दूर होते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हमारा घर पवित्र, अपेय पदार्थों से रहित और प्रभु स्मरणवाला हो। हमें वीर सन्तान व धन प्राप्त हो ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ता मन्दसाना शुभस्पती) हे तौ मोदयमानौ “मदि स्तुतिमोद ……” [भ्वादिः] ‘ततः असानच् प्रत्ययः-औणादिकः’ कल्याणस्य पती कल्याणप्रदौ (मनुषः दुरोणे) मनुष्यस्य गृहे “दुरोण गृहनाम” [निघ० ३।४] (वचस्यवे) आत्मनो वचः-उपदेशवचनमिच्छवे “वचस्युवम्-आत्मनो वचनमिच्छन्तम्” [ऋ० २।१६।७ दयानन्दः] (सहवीरं रयिम्-आधत्तम्) पुत्रसहितं धनपोषं सम्पादयतम् “रयिं देहि पोषं देहि” [काठ० १।७] (सुप्रपाणं तीर्थं कृतम्) सुन्दरसुखप्रपैव पापतारकं गृहस्थाश्रमं कुरुतम् (पथेष्ठां दुर्मतिं स्थाणुम्-अपहतम्) गृहस्थमार्गे प्राप्तां दुर्वासनां जडतां च दूरी कुरुतम् ॥१३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Ashvins, joyous spirits of love and wisdom, prosperity and generosity, to the celebrant of life and divinity, to the house of humanity, bear and bring wealth, honour and excellence with brave progeny worthy of the celebrant. O givers, protectors and promoters of the good and well being of life, establish a happy home life overflowing with food, drink and freedom of holiness. Pray cast away infirmity, rigidity, hatred and negative disposition that may obstruct our path of progress in life.