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आ वा॑मगन्त्सुम॒तिर्वा॑जिनीवसू॒ न्य॑श्विना हृ॒त्सु कामा॑ अयंसत । अभू॑तं गो॒पा मि॑थु॒ना शु॑भस्पती प्रि॒या अ॑र्य॒म्णो दुर्याँ॑ अशीमहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vām agan sumatir vājinīvasū ny aśvinā hṛtsu kāmā ayaṁsata | abhūtaṁ gopā mithunā śubhas patī priyā aryamṇo duryām̐ aśīmahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । वा॒म् । अ॒ग॒न् । सु॒ऽम॒तिः । वा॒जि॒नी॒व॒सू॒ इति॑ वाजिनीऽवसू । नि । अ॒श्वि॒ना॒ । हृ॒त्ऽसु । कामाः॑ । अ॒यं॒स॒त॒ । अभू॑तम् । गो॒पा । मि॒थु॒ना । शु॒भः॒ । प॒ती॒ इति॑ । प्रि॒याः । अ॒र्य॒म्णः । दुर्या॑न् । अ॒शी॒म॒हि॒ ॥ १०.४०.१२

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:40» मन्त्र:12 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजिनीवसू) हे विज्ञानक्रिया को प्रसारित करनेवाले (गोपा) रक्षक (मिथुना) परस्पर सङ्गत-सहयोगी (अश्विना) सुशिक्षित वृद्ध स्त्री-पुरुषो ! (शुभस्पती-अभूतम्) तुम दोनों सुख के स्वामी हो (वाम्) तुम दोनों की (सुमतिः-आगन्) सुशिक्षा भली-भाँति हमें प्राप्त हो (हृत्सुकामाः-अयंसत) उससे हमारे हृदयों में कामनाएँ नियन्त्रित रहें-उच्छृङ्खल न हों (प्रियाः) हम प्यारी वधुएँ (अर्यम्णः) स्वामी-पति के (दुर्यान्-अशीमहि) घरों को चाहती हैं ॥१२॥
भावार्थभाषाः - गृहपत्नियों के अन्दर पुरातन सुशिक्षित स्त्री-पुरुषों के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए। वे उनसे गृहविज्ञान की शिक्षा प्राप्त करें, जिससे कि अपनी गार्हस्थ्य-कामनाएँ नियन्त्रित रहें ॥१२॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

काम-नियमन -न कामातुर न कृपण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र के अनुसार पति-पत्नी घर को बनाकर अश्विनी देवों से प्रार्थना करते हैं कि हे (वाजिनीवसू) = अन्नरूप धनवाले अश्विना प्राणापानो ! (वाम्) = आप दोनों की (सुमतिः) = कल्याणीमति (आ अगन्) = हमें सर्वथा प्राप्त हो । प्राणापान को अन्न-धनवाले इसलिए कहा है कि इन्हीं से अन्न का पाचन होता है। वैश्वानर अग्नि [ =जाठराग्नि] प्राणापान से युक्त होकर सब अन्नों का पाचन करती है। अन्न का ठीक पाचन होकर इस सात्त्विक अन्न से सात्त्विक ही बुद्धि भी प्राप्त होती है। [२] हे [अश्विना =] प्राणापानो! आपकी कृपा से (कामाः) = वासनाएँ (हृत्सु) = हृदयों में (नि अयंसत) = पूर्णरूपेण नियमित हों। कामवासना का नियमन ही गृहस्थ का सर्वमहान् कर्त्तव्य है । इसके नियमित होने पर सन्तान भी उत्तम होते हैं और पति-पत्नी की शक्ति भी स्थिर रहती है। इससे नीरोगता व दीर्घजीवन सिद्ध होते हैं । [३] हे प्राणापानो! आप (गोपा अभूतम्) = हमारी इन्द्रियों का रक्षण करनेवाले होइये। आप (मिथुना) = द्वन्द्व रूप में (शुभस्पती) = सब शुभों के पति हो । प्राणापान की साधना के होने पर जहाँ इन्द्रियों के दोष दग्ध होते हैं, वहाँ शरीर में सब शुभों का रक्षण होता है । [४] इस मन्त्र की समाप्ति पर पत्नी बननेवाली युवति कामना करती है कि (प्रिया:) = पति की प्रिय होती हुई हम प्रियरूपवाली होती हुई हम (अर्यम्णः) = [अदीन् यच्छति] कामादि को वश करनेवाले, नियमित वासनावाले तथा [अर्यमेति तमाहुर्यो ददाति ], अकृपण पति के (दुर्यान्) = घरों को (अशीमहि) = हम प्राप्त करें। हमें ऐसा पति प्राप्त हो जो न तो कामातुर हो और नांही कृपण ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - गृहस्थ का मूल मन्त्र यही है कि वासना का नियन्त्रण हो पति न कामातुर हो, नांही कृपण ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजिनीवसू) हे विज्ञानक्रियाया वासयितारौ “यौ विज्ञानक्रियां वासयतस्तौ” [ऋ० ५।७८।३ दयानन्दः] (गोपा) रक्षकौ (मिथुना) परस्परं सङ्गन्तारौ ! (अश्विना) सुशिक्षितौ स्थविरौ स्त्रीपुरुषौ ! (शुभस्पती-अभूतम्) सुखस्य स्वामिनौ स्थः (वाम्) युवयोः (सुमतिः-आगन्) शुभमतिः सुशिक्षा समन्तात् प्राप्नोति (हृत्सुकामाः-अयंसत) तथा-अस्माकं हृदयेषु कामा नियम्यन्ताम्) उच्छृङ्खला न भवन्तु (प्रियाः) वयं प्रिया वध्वः (अर्यम्णः) स्वामिनः पत्युः (दुर्यान्-अशीमहि) गृहान् “दुर्या गृहनाम” [निघं० ३।४] वाञ्छामः ॥१२॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Ashvins, twin powers of domestic complementarity of love and wisdom, masters of the science and art of wedlock and home life, may the benefit of your enlightenment come to us, may there be the joy of life with wisdom and emotional control in our hearts. That way, be our protectors as leading lights in our pursuit of happiness and well being. Bless us that we may love, desire and find a home with loving, enlightened, generous and caring husbands.