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इ॒यं वा॑मह्वे शृणु॒तं मे॑ अश्विना पु॒त्राये॑व पि॒तरा॒ मह्यं॑ शिक्षतम् । अना॑पि॒रज्ञा॑ असजा॒त्याम॑तिः पु॒रा तस्या॑ अ॒भिश॑स्ते॒रव॑ स्पृतम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iyaṁ vām ahve śṛṇutam me aśvinā putrāyeva pitarā mahyaṁ śikṣatam | anāpir ajñā asajātyāmatiḥ purā tasyā abhiśaster ava spṛtam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒यम् । वा॒म् । अह्वे । शृ॒णु॒तम् । मे॒ । अ॒श्वि॒ना॒ । पु॒त्राय॑ऽइव । पि॒तरा॑ । मह्य॑म् । शि॒क्ष॒त॒म् । अना॑पिः । अज्ञाः॑ । अ॒स॒जा॒त्या । अम॑तिः । पु॒रा । तस्याः॑ । अ॒भिऽश॑स्तेः । अव॑ । स्पृ॒त॒म् ॥ १०.३९.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:39» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:16» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:6


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अध्यापक और उपदेशक ! (वाम्) तुम दोनों को (इयम्-अह्वे) यह मैं शिक्षण उपदेश को चाहती हुई कुमारी-ब्रह्मचारिणी आमन्त्रित करती हूँ (मे शृणुतम्) मेरी प्रार्थना को सुनो-स्वीकार करो (पुत्राय-इव पितरा मह्यं शिक्षतम्) सन्तान के लिए माता-पिता के समान मेरे लिए प्रार्थनीय ज्ञान को या वस्तु को दो (अनापिः-अज्ञाः-अमतिः-असजात्या) मैं गृहस्थ आश्रम को न प्राप्त हुई विषयज्ञानरहित, आत्मवाली-आत्मज्ञानवाली स्वाभिमानिनी, लज्जायुक्त (तस्याः-पुरा-अभिशस्तेः-अवस्पृतम्) उस मेरी मृत्यु से पहले अपनी शरण में मुझे ग्रहण करो-सुरक्षित करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - अध्यापक और उपदेशकों से कुमारी कन्याएँ भी शिक्षा ग्रहण करें। विशेषतः अमर जीवन बनानेवाली-जीवन्मुक्त होनेवाली कन्याएँ अध्यात्मज्ञान का उपदेश लें ॥६॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्राण - महत्त्व [प्राण ही सर्वस्व हैं]

पदार्थान्वयभाषाः - [१] इन मन्त्रों की ऋषिका 'घोषा' कहती है कि (इयम्) = यह मैं (वाम्) = आप दोनों को (अह्वे) = पुकारती हूँ । (मे शृणुतम्) = मेरी प्रार्थना को आप सुनिये। हे (अश्विना) = प्राणापानो! (मह्यम्) = मेरे लिये उसी प्रकार (शिक्षतम्) = [ धनं दत्तम् सा० ] स्वास्थ्य आदि के धन को दीजिये (इव) = जैसे कि (पुत्राय) = पुत्र के लिये (पितरा) = माता-पिता धन देने की कामना करते हैं । [२] हे प्राणापानो! आपके बिना तो मैं (अनापिः) = बन्धु - शून्य हूँ । वस्तुतः हे प्राणापानो! आप ही मेरे बन्धु हो । (अज्ञा) = आप के अभाव में मैं ज्ञानशून्य हूँ । प्राणसाधना से ही ज्ञान की भी वृद्धि होती है । असजात्या- आपके अभाव में मेरा कोई सजात्य नहीं है। जीते के ही सब रिश्तेदार हैं, प्राणों के साथ ही बिरादरी है। प्राण गये, सब गये । (अमतिः) = आपके अभाव में मेरी मनन शक्ति भी तो समाप्त हो जाती है । प्राणसाधना से ही मति का प्रकर्ष प्राप्त होता है । [३] हे प्राणापानो! (तस्या:) = उस 'अनापित्व, अज्ञत्व, असजात्यत्व व अमतित्व' रूपी (अभिशस्ते :) = हानि [hurt, injury ] से (पुरा) = पूर्व ही आप (अवस्पृतम्) = मुझे सब रोग आदि कष्टों से पार करो । रोगों से ऊपर उठकर, प्राण-सम्पन्न जीवन को बिताते हुए मैं मित्रों को भी प्राप्त करूँगी, मेरा ज्ञान उत्कृष्ट होगा, कितने ही मेरे सजात्य होंगे और मेरी मति भी खूब ठीक ही होगी ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणों के साथ ही मित्र हैं, ज्ञान है, रिश्तेदार हैं और मननशील मन है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे अध्यापकोपदेशकौ ! (वाम्) युवाम् (इयम्-अह्वे) एषाऽहं शिक्षणोपदेशौ कामयमाना कुमारी खल्वाह्वयामि (मे शृणुतम्) मम प्राथनां शृणुतं स्वीकुरुतम् (पुत्राय-इव पितरा मह्यं शिक्षतम्) सन्तानाय पितरौ मातापितराविव मह्यं प्रार्थनानुरूपं प्रार्थनीयं ज्ञानं वस्तु वा दत्तम् (अनापिः-अज्ञाः अमतिः असजात्या) अहं खल्वस्मि-अनाप्तगृहस्था विषयज्ञानरहिता पुनः-अमतिरात्ममयी मतिर्यस्या स्वाभिमानवती सलज्जा “अमतिरमामतिरात्ममयी” [निरु० ६।१२] (तस्याः पुरा अभिशस्तेः-अवस्पृतम्) तस्याः खलु मम-अभिशंसनात् अनिष्टापत्तेर्मृत्योः पूर्वमेव शरणे गृहीतं रक्षतम् ॥६॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - I, this supplicant girl, request you, Ashvins, pray listen to me, and as father speaks to the child, so please instruct me on matters of health. I am alone and unrelated, ignorant, without kith and kin and immature. Pray protect me with knowledge before the onslaught of the effects of that ignorance.