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पु॒रा॒णा वां॑ वी॒र्या॒३॒॑ प्र ब्र॑वा॒ जनेऽथो॑ हासथुर्भि॒षजा॑ मयो॒भुवा॑ । ता वां॒ नु नव्या॒वव॑से करामहे॒ऽयं ना॑सत्या॒ श्रद॒रिर्यथा॒ दध॑त् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

purāṇā vāṁ vīryā pra bravā jane tho hāsathur bhiṣajā mayobhuvā | tā vāṁ nu navyāv avase karāmahe yaṁ nāsatyā śrad arir yathā dadhat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पु॒रा॒णा । वा॒म् । वी॒र्या॑ । प्र । ब्र॒व॒ । जने॑ । अथो॒ इति॑ । ह॒ । आ॒स॒थुः॒ । भि॒षजा॑ । म॒यः॒ऽभुवा॑ । ता । वा॒म् । नु । नव्यौ॑ । अव॑से । क॒रा॒म॒हे॒ । अ॒यम् । ना॒स॒त्या॒ । श्रत् । अ॒रिः । यथा॑ । दध॑त् ॥ १०.३९.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:39» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या भिषजा) हे सत्यज्ञानवाले ओषधिचकित्सक और शल्यचिकित्सक ! तथा आग्नेय सोम्य पदार्थो ! रोगनिवारक ! (वाम्) तुम दोनों के (पुराणा वीर्या जने प्र ब्रव) पुरातन कृत्यों को जनसमुदाय में घोषित करते हैं (अथ-उ) और (मयोभुवा ह-आसथुः) कल्याण के भावित करनेवाले अवश्य होओ (ता वां नव्या नु-अवसे करामहे) तुम दोनों की रक्षार्थ प्रशंसा करते हैं (अयम्-अरिः-श्रत्-दधत्) यह तुम्हें प्राप्त करनेवाला, उपयोग करनेवाला जन तुम्हारे प्रति श्रद्धा करता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - ओषधिचिकित्सक और शल्यचिकित्सक तथा आग्नेय सोम्य पदार्थ रोगी को अच्छा करने में समर्थ हों। वे इस कार्य में प्रशंसा के योग्य होते हैं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

श्रत् (=सत्य) का धारण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (नासत्या) = नासिका में रहनेवाले अथवा असत्य से रहित प्राणापानों! (अयम्) = यह मैं (वाम्) = आप दोनों के (पुराणा) = सनातन वीर्या शक्तियों को (जने) = लोगों में (प्रब्रवा) = खूब ही कहता हूँ । (अथो) = और (ह) = निश्चय से आप दोनों मयोभुवा कल्याण का भावन करनेवाले (भिषजा) = वैद्य (असथुः) = हो । इन प्राणापानों की साधना से सब रोग दूर होते हैं और कल्याण की प्राप्ति होती है । [२] (ता वाम्) = उन आप दोनों को अवसे रक्षण के लिये (नव्या) = स्तुति के योग्य (करामहे) = करते हैं। हम प्राणापानों का स्तवन करते हैं और वे प्राणापान हमारा रक्षण करते हैं । [३] हे प्राणापानो ! आप ऐसी ही कृपा करो (यथा) = जिससे (अयं अरिः) = यह आपका उपासक (श्रत् दधत्) = सत्य का धारण करनेवाला हो। इस उपासक का शरीर रोगों से रहित होकर नीरोग हो, इसका मन द्वेषादि से रहित होकर प्रेमपूर्ण हो, इसकी बुद्धि तीव्र व सात्त्विक हो । शरीर में रोग ही असत्य है, मन में द्वेष असत्य है और बुद्धि में मन्दता असत्य है। ये रोग द्वेष व मन्दता प्राणसाधना से दूर होती है और इन प्राणों का उपासक सत्य [ श्रत्] को धारण करनेवाला होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणापान कल्याण करनेवाले वैद्य हैं। इनका उपासक 'नीरोगता निर्मलता व बुद्धि की तीव्रता' रूप सत्य को धारण करता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या भिषजा) हे नासत्यौ सत्यज्ञानवन्तौ-ओषधि-शल्यचिकित्सकौ तद्वज्ज्योतिष्प्रधानरसप्रधानाग्नेयसोम्यपदार्थौ रोगनिवारकौ ! (वाम्) युवयोः (पुराणा वीर्या जने प्रब्रव) पुरातनानि कृत्यानि जनसमुदाये प्रब्रवीमि (अथ-उ)  अथ च (मयोभुवा-ह-आसथुः) कल्याणस्य भावयितारौ हावश्यं भवथः (ता वां नव्यौ नु-अवसे करामहे) तौ युवां स्वरक्षायै स्तुत्यौ कुर्मः (अयम्-अरिः-श्रत्-दधत्) अयं प्रापक उपयोगकर्त्ता जनः श्रद्धां कुर्यात् ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O physician and surgeon dedicated to truth and goodness of life, your old and ancient deeds I proclaim and praise among people. Be you both harbingers of good health, peace and joy. We celebrate you both as adorable for the sake of health and protection so that this dynamic community may have faith and trust in you.