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द्वेष्टि॑ श्व॒श्रूरप॑ जा॒या रु॑णद्धि॒ न ना॑थि॒तो वि॑न्दते मर्डि॒तार॑म् । अश्व॑स्येव॒ जर॑तो॒ वस्न्य॑स्य॒ नाहं वि॑न्दामि कित॒वस्य॒ भोग॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dveṣṭi śvaśrūr apa jāyā ruṇaddhi na nāthito vindate marḍitāram | aśvasyeva jarato vasnyasya nāhaṁ vindāmi kitavasya bhogam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्वेष्टि॑ । श्व॒श्रूः । अप॑ । जा॒या । रु॒ण॒द्धि॒ । न । ना॒थि॒तः । वि॒न्द॒ते॒ । म॒र्डि॒तार॑म् । अश्व॑स्यऽइव । जर॑तः । वस्न्य॑स्य । न । अ॒हम् । वि॒न्दा॒मि॒ । कि॒त॒वस्य॑ । भोग॑म् ॥ १०.३४.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:34» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (श्वश्रूः द्वेष्टि) कितव-जुआ खेलनेवाले की सास द्वेष करती है-आदर नहीं करती है (जाया-अपरुणद्धि) पत्नी उसे नहीं चाहती-अलग हो जाती है (नाथितः-मर्डितारं न विन्दते) जुए के दोष से पीड़ित हुआ सुख देनेवाले को प्राप्त नहीं करता है-कोई उसकी सहायता नहीं करता है (वस्न्यस्य-अश्वस्य-जरतः-इव) मूल्यवान्-बहुमूल्य जराजीर्ण उचित-भोगरहित घोड़े के समान (भोगं न विन्दामि) भोग प्राप्त नहीं करता हूँ (कितवस्य) कौन जुआ खेलनेवाले के लिये भोगपदार्थ दे ॥३॥
भावार्थभाषाः - जुआ खेलनेवाले के प्रति उसकी सास घृणा करती है। पत्नी उसे नहीं चाहती है। कोई सुख देनेवाला उसे नहीं मिलता। उचित भोगों से वञ्चित रहता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

घर में निरादर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] जुवारी अनुभव करता है कि (श्वश्रूः) = सास (द्वेष्टि) = द्वेष करती है, सास को मेरे से किसी प्रकार की प्रीति नहीं रही (जाया) = पत्नी भी (अपरुणद्धि) = मुझे अपने से दूर ही रोकती है, मुझे अपने समीप नहीं आने देती। (नाथितः) = याचना करता हुआ यह कितव [जुवारी] (मर्डितारम्) = धन की सहायता से सुख देनेवाले को (न विन्दते) = नहीं प्राप्त करता है, अर्थात् अब कोई ऐसा मित्र भी नहीं जिससे कि मैं याचना करूँ और वह मेरी कुछ मदद कर दे। [२] मेरी स्थिति तो ऐसी हो गई है कि (इव) = जैसे (जरतः) = बूढ़े कार्य के लिये अनुपयुक्त (वस्न्यस्य) = मूल्यार्ह - मूल्य के योग्य, अर्थात् बेच देने योग्य अश्वस्य घोड़े की हो। ऐसे घोड़े को जैसे चारा व दाना भी उपेक्षितरूप से दिया जाता है, इसी प्रकार (अहम्) = मैं (कितवस्य भोगम्) = जुवारी के धन को, भोग्य पदार्थ को (न विन्दामि) = नहीं प्राप्त करता हूँ, अर्थात् मुझे घर में खान-पान भी ठीक रूप में नहीं प्राप्त होता ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- पराजित जुवारी को घर में किसी से भी प्रेम व आदर प्राप्त नहीं होता, इसके खान-पान का भी कोई ध्यान नहीं करता ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (श्वश्रूः द्वेष्टि) कितवस्य श्वश्रूस्तं द्वेष्टि नाद्रियते (जाया-अपरुणद्धि) जाया तं कितवं न वाञ्छति ततोऽपगता भवति (नाथितः-मर्डितारं न विन्दते) तद्वोषेण पीडितः सन् सुखयितारं न प्राप्नोति न लभते न कश्चित् साहाय्यं ददाति (वस्न्यस्य-अश्वस्य जरतः-इव) मूल्यार्हस्य बहुमूल्यस्य जरागतस्याश्वस्येव स्थितोऽहं यथा जरागतो बहुमूल्यवान् भोगपदार्थमुचितं न लभते तद्वत् स्थितोऽहं कुतश्चिदपि (भोगं न विन्दामि) भोगं न लभे यतः (कितवस्य) कः कितवस्य भोगं दद्यात् ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Normally speaking, the wife of a gambler feels indifferent and alienated from him, the mother-in-law hates him, the wretched man finds no friends’ sympathy, there is none to comfort him. Like an old, exhausted, broken horse, though he might have been valuable otherwise, no one bids for him. I set no value upon the gambler. Who would?