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अधि॑ पुत्रोपमश्रवो॒ नपा॑न्मित्रातिथेरिहि । पि॒तुष्टे॑ अस्मि वन्दि॒ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhi putropamaśravo napān mitrātither ihi | pituṣ ṭe asmi vanditā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अधि॑ । पु॒त्र॒ । उ॒प॒म॒ऽश्र॒वः॒ । नपा॑त् । मि॒त्र॒ऽअ॒ति॒थेः॒ । इ॒हि॒ । पि॒तुः । ते॒ । अ॒स्मि॒ । व॒न्दि॒ता ॥ १०.३३.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:33» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:8» वर्ग:2» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रातिथेः-नपात्) स्नेही अथिति अर्थात् तुझ से स्नेह करनेवाले उपासक के हे न गिरानेवाले किन्तु उत्कर्ष की ओर ले जानेवाले (उपमश्रवः) हे उच्चश्रवणीय ज्ञानवाले परमात्मन् ! (ते पितुः-वन्दिता पुत्र-अस्मि-अधि) तुझ पिता के समान का स्तुतिकर्ता मैं पुत्र हूँ, अतः मेरे अन्दर (इहि) विराजमान होवो ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अनुरागी उपासक का उत्कर्ष की ओर ले जानेवाला और वेदज्ञान-श्रवण का करानेवाला है। पुत्र की भाँति उसका मान करना चाहिए ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

'रक्षक' उपमश्रवा

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (पुत्र) = अपने जीवन को 'पुनाति त्रायते' पवित्र व रक्षित करनेवाले ! (उपमश्रवः) = समीपता से उपासना के द्वारा ज्ञान को मापनेवाले, अर्थात् प्रभु के उपासन से अन्तर्ज्ञान को प्राप्त करनेवाले, अतएव (मित्रातिथेः नपात्) = उस सनातन मित्र व अतिथि प्रभु के अपने हृदय से च्युत न होने देनेवाले ! (अधीहि) = तू अध्ययन करनेवाला बन । 'ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करना' यह तेरा लक्ष्य हो । 'वह प्रभु ही सनातन मित्र है' ऐसा तूने समझना । वही अतिथि है, सदा प्राप्त होनेवाला है, कष्ट के समय वही सहायकरूपेण प्राप्त होता है। इस ब्रह्म को तू जानने की कामनावाला हो । [२] इस प्रकार प्रभु के मार्ग पर चलनेवाला तू सदा सबका रक्षक होता है। गत मन्त्र के अनुसार मधुर ही वचन बोलता है। इस (ते पितुः) = तुझ रक्षक का मैं (वन्दिता अस्मि) = तारीफ करनेवाला हूँ, प्रशंसक हूँ। प्रभु की प्रशंसा का वस्तुतः वही पात्र बनता है जो सर्वत्र प्रभु-दर्शन करता हुआ सबका रक्षक बनने के लिये यत्नशील होता है। यही प्रभु का सच्चा पुत्र होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु के निर्देश के अनुसार हम सर्वत्र प्रभु - सत्ता को अनुभव करें और सबके रक्षण करनेवाले बनें।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रातिथेः नपात्) स्नेहिनोऽतिथेस्तव शरणं प्राप्तत्योपासकस्य हे न पातयितः ! अपितूत्कर्षयितः ! (उपमश्रवः) उपरिश्रवणीय वेदज्ञानवन् !  परमात्मन् ! (ते पितुः-वन्दिता पुत्र-अस्मि-अधि) अहं पितृभूतस्य तव स्तोता पुत्रोऽस्मि पुत्र इति सोर्लुक् “सुपां सुलुक्” [अष्टा०७।१।३९] तस्मान्मयि (इहि) विराजस्व ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O ruler, exemplary kind, exceptionally generous, honourable son and scion of the line of the ruler, friend of friends and strangers alike, I honour and adore your father and your family line. Pray come and bless.