पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रभु के नाम तीनों लिङ्गों में होते हैं। सो 'किम्' शब्द भी तीनों ही लिङ्गों में प्रभु का प्रतिपादक है। इसकी मूलभावना 'आनन्दमयता' की है। वे (किम्) = आनन्दमय प्रभु (स्विद्) = निश्चय से (वनम्) = उपासनीय हैं 'तद्धि तद्वनं नाम, तद्वनमित्युपासितात्यम्' । उपासनीय होने से प्रभु का नाम ही 'वनम्' हो गया है 'वन संभक्तौ'। (उ) = और (स) = वे (कः) = आनन्दमय प्रभु (वृक्षः) = [ वृश्चति इति ] हमारे (भव) = बन्धनों को काटनेवाले हैं। 'उपासना' कारण है, 'भव-बन्धनों का काटना उसका कार्य है । इसी से उपासना का पहले तथा बन्धनच्छेद का उल्लेख पीछे हुआ है। [२] ये प्रभु वे हैं (यतः) = जिनसे (द्यावापृथिवी) = ये द्युलोक व पृथिवीलोक, द्युलोक से लेकर पृथिवीलोक तक सब लोक-लोकान्तर (निष्टतक्षुः) = बनाये गये हैं। ये दोनों लोक (संतस्थाने) = सम्यक्तया अपनी मर्यादा में स्थित हैं, ये डाँवाडोल हो जानेवाले व अमर्याद गतिवाले होकर नष्ट-भ्रष्ट करनेवाले नहीं हैं (अजरे) = कभी जीर्ण नहीं होते। 'पृथ्वी की उपजाऊँ शक्ति कम होती जा रही हो' ऐसी बात नहीं अथवा 'वायुमण्डल में अम्लजन की मात्रा कम होती जा रही हो' ऐसी बात भी नहीं । 'सूर्य क्षीण होता जा रहा हो' ऐसा कुछ नहीं है । सब चाक्रिक व्यवस्थाओं के कारण 'जो है' वह उतना ही बना रहता है। ये सब लोक जीर्ण होनेवाले नहीं। मनुष्य निर्मित चीजे जीर्ण होती हैं, प्रभु की सृष्टि अजीर्ण है। ये द्युलोक व पृथ्वीलोक (इत ऊती) = इस लोक से हमारा रक्षण करनेवाले हैं। यदि हम इनका ठीक प्रयोग करते हैं तो हमारा भौतिक संसार ठीक बना रहता है, शरीर स्वस्थ रहता है । [३] इस प्रकार स्वस्थ शरीरवाले बनकर ये ज्ञानी पुरुष (अहानि) = जीवन के प्रत्येक दिन (पूर्वीः उषसः) = उषाकाल के पूर्वभागों में [early in the morning] जरन्त उस 'वन व वृक्ष' नामक प्रभु का स्तवन करते हैं। इस प्रभु ने ही तो उन द्युलोक व पृथिवीलोक को बनाया है जिनके कारण हमारी ऐहिक उन्नति बड़ी सुन्दरता से हो पाती है। इस प्रभु के स्तवन से अध्यात्म उन्नति होती है और हमारे बन्धनों का उच्छेद होता है। प्रकृति ऐहिक उन्नति में सहायक होती है तो प्रभु पारलौकिक व अध्यात्म उन्नति का कारण बनते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रकृति के ठीक प्रयोग से हम इधर से अपना रक्षण करें और प्रभु-स्तवन से उधर के कल्याण को साधें । प्रभु का बनाया हुआ यह संसार हमें भौतिक स्वास्थ्य देगा और प्रभु स्मरण अध्यात्म-स्वास्थ्य का कारण बनेगा ।