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यो वो॑ वृ॒ताभ्यो॒ अकृ॑णोदु लो॒कं यो वो॑ म॒ह्या अ॒भिश॑स्ते॒रमु॑ञ्चत् । तस्मा॒ इन्द्रा॑य॒ मधु॑मन्तमू॒र्मिं दे॑व॒माद॑नं॒ प्र हि॑णोतनापः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vo vṛtābhyo akṛṇod u lokaṁ yo vo mahyā abhiśaster amuñcat | tasmā indrāya madhumantam ūrmiṁ devamādanam pra hiṇotanāpaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । वः॒ । वृ॒ताभ्यः॑ । अकृ॑णोत् । ऊँ॒ इति॑ । लो॒कम् । यः । वः॒ । म॒ह्याः । अ॒भिऽश॑स्तेः । अमु॑ञ्चत् । तस्मै॑ । इन्द्रा॑य । मधु॑ऽमन्तम् । ऊ॒र्मिम् । दे॒व॒ऽमाद॑नम् । प्र । हि॒णो॒त॒न॒ । आ॒पः ॥ १०.३०.७

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:30» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो राजा (वः-वृताभ्यः-लोकम्-अकृणोत्-उ) तुम वरण की हुई-प्रजाभाव से स्वीकार की हुई प्रजाओं के लिये सुखप्रद स्थान सम्पन्न करता है (यः) और जो (वः) तुम्हें (मह्याः-अभिशस्तेः-अमुञ्चत्) शत्रु द्वारा प्रेरित महती हिंसा से छुड़ाता है-बचाता है (तस्मै-इन्द्राय) उस राजा के लिए (आपः-मधुमन्तं देवमादनम्-ऊर्मिं प्र हिणोतन) हे प्रजाओं-प्रजाजनों ! तुम इन्द्रियप्रसादक मधु उन्नत अर्थात् उत्तम उपहार को समर्पित करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - राजा जैसे प्रजाओं को कृपा और रक्षा से स्वीकार करता है-अपनाता है तथा विरोधी के प्रहारों से बचाता है, वैसे ही प्रजा को भी राजा के लिये भाँति-भाँति की उत्तम वस्तुएँ भेंट देनी चाहिये ॥७॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मधुमान् ऊर्मि

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (आपः) = रेतः कणो ! (यः) = जो भी युवक (वृताभ्यः) = वरण किये गये, स्वीकार किये गये (वः) = आपके लिये (लोकम्) = शरीर में स्थान को (अकृणोत्)= बनाता है, अर्थात् जो आपको शरीर में ही सुरक्षित करता है और (यः) = जो (वः) = आपको (मह्या:) = इस पृथिवी के (अभिशस्ते) = हिंसन से, अर्थात् पार्थिव भोगों में आसक्ति के कारण विनाश से (अमुञ्चत्) = मुक्त करता है, पार्थिव भोगों में फँसकर कभी तुम रेतः कणों का नाश नहीं होने देता । [२] (तस्मा) = [ तस्मै] उस (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मधुमन्तम्) = अत्यन्त माधुर्यवाली (ऊर्मिम्) = तरंग को (प्रहिणोत) = प्रकर्षेण प्राप्त कराओ, अर्थात् इसके जीवन को उत्साह सम्पन्न करो, परन्तु इस उत्साह से उसका जीवन माधुर्यमय हो । इसमें स्फूर्ति हो, स्फूर्ति के साथ मधुरता हो। यह माधुर्य व स्फूर्ति से युक्त होकर सब कार्यों को करनेवाला हो। यह ऊर्मि (देवामादनम्) = देवों को हर्षित करनेवाली हो, अर्थात् इसके इस मधुर उत्साह को देखकर इसके माता, पिता, आचार्य आदि सब देव प्रसन्न हों। (अनात) = इसकी यह मधुमान् ऊर्मि उस देवाधिदेव परमात्मा को भी प्रसन्न करनेवाली हो, इसके कारण यह प्रभु का भी प्रिय बने ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- जो रेतः कणों का रक्षण करता है वह रक्षित रेतः कणों के कारण मधुर व उत्साह सम्पन्न जीवनवाला होता है, इससे मधुर उत्साह सम्पन्न जीवन से यह सब देवों को प्रीणित करनेवाला होता है ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) इन्द्रः-राजा (वः वृताभ्यः लोकम्-अकृणोत् उ) युष्मभ्यं वृताभ्यः प्रजात्वेन स्वीकृताभ्यः खलु सुखलोकं सुखप्रदस्थानं करोति (यः) यश्च राजा (वः) युष्मान् (मह्याः-अभिशस्तेः-अमुञ्चत्) महत्याः परेण शत्रुणा प्रयुक्ताया हिंस्रायाः-मुञ्चति-वारयति (तस्मै-इन्द्राय) तस्मै राज्ञे (आपः-मधुमन्तं देवमादनम्-ऊर्मिम् प्रहिणोतन) हे प्रजाः-प्रजाजनाः ! यूयं मधुरम्-इन्द्रियप्रसादकरमुन्नतमुपहारं प्रेरयत-उपहरत ॥७॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O people of the social order of the world, committed to honesty and loyalty, the ruler who opens the doors of freedom against inhibition and creates a beautiful world for you, for that Indra, mighty ruler, create honey sweet fragrances of exhilarating environment and offer him divinely joyous foods and drinks of self-fulfilment.