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कस्ते॒ मद॑ इन्द्र॒ रन्त्यो॑ भू॒द्दुरो॒ गिरो॑ अ॒भ्यु१॒॑ग्रो वि धा॑व । कद्वाहो॑ अ॒र्वागुप॑ मा मनी॒षा आ त्वा॑ शक्यामुप॒मं राधो॒ अन्नै॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kas te mada indra rantyo bhūd duro giro abhy ugro vi dhāva | kad vāho arvāg upa mā manīṣā ā tvā śakyām upamaṁ rādho annaiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः । ते॒ । मदः॑ । इ॒न्द्र॒ । रन्त्यः॑ । भू॒त् । दुरः॑ । गिरः॑ । अ॒भि । उ॒ग्रः । वि । धा॒व॒ । कत् । वाहः॑ । अ॒र्वाक् । उप॑ । मा॒ । म॒नी॒षा । आ । त्वा॒ । श॒क्या॒म् । उ॒प॒ऽमम् । राधः॑ । अन्नैः॑ ॥ १०.२९.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:29» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (ते) तेरे लिये (कः-मदः-रन्त्यः-भूत्) कौनसा स्तुतिसमूह-मन्त्रभाग रमण करने योग्य है, जो भी हो (दुरः-अभि धाव) उसे द्वार बनाकर प्राप्त हो (गिरः-वि० “धाव”) हमारे प्रार्थनावचनों के प्रति विशिष्टरूप से प्राप्त हो, उन्हें स्वीकार कर (मनीषा कद्-वाहः-अर्वाक्-मा-उप) स्तुति के द्वारा कब हमारे वहनीय-प्रापणीय तू मुझे-मेरी ओर प्राप्त होगा (अन्नैः) उपासना-रसों द्वारा (उपमं त्वा राधः) समीप वर्तमान तुझ आराधनीय परमात्मा को (आ शक्याम्) प्राप्त कर सकूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - उपासक को परमात्मा की ऐसे मन्त्रों द्वारा स्तुतियाँ करनी चाहिये, जिससे कि वह परमात्मा उन्हें स्वीकार करे और अपने अन्दर किये उपासनाभावों से वह प्राप्त हो सके ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

अन्न व धन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (ते मदः) = आपकी प्राप्ति का मद (कः) = अनिर्वचनीय आनन्द का देनेवाला है और (रन्त्यः) = रमणीय (भूत्) = है । आपको प्राप्त करनेवाला व्यक्ति एक अवर्णनीय सुख का अनुभव करता है और उसे सारा संसार सुन्दर ही सुन्दर प्रतीत होता है । [२] (अभ्युग्रः) = आप अतिशयेन तेजस्वी हो । (दुर:) = मेरे इन्द्रिय द्वारों को तथा (गिरः) = वाणियों को (विधाव) = विशेषरूप से शुद्ध कर दीजिये। प्रभु की तेजस्विता मेरी सब मलिनताओं को नष्ट करनेवाली होती है । [३] हे प्रभो ! (कद्) = कब आपकी कृपा होगी और मेरा (वाह:) = यह इधर- उधर मुझे भटकानेवाला मन [ वरु= To carry away] (अर्वाक्) = अन्तर्मुख होगा। कब यह मेरा मन बाह्य विषयों से निवृत्त होकर अन्दर ही स्थित होनेवाला होगा ? (कद्) = कब (मा) = मुझे (मनीषा) = बुद्धि (उप) = आपके समीप पहुँचानेवाली होगी ? [४] हे प्रभो! आप 'इन्द्रिय शुद्धि, मन की अन्तर्मुखी वृत्ति तथा मनीषा की प्राप्ति' के द्वारा मुझे इस योग्य बनाइये कि (उपमम्) = अन्तिकतम - अत्यन्त समीप हृदय में ही निवास करनेवाले (त्वा) = आपको (आ-शक्याम्) = प्राप्त होने में समर्थ होऊँ और साथ ही (अन्नैः) = अन्नों के साथ (राधः) = संसार के कार्यों के साधक धन को भी प्राप्त कर सकूँ। जीवनयात्रा में प्रभु प्राप्ति हमें मार्गभ्रष्ट नहीं होने देती तो यह 'अन्न व धन' हमें आगे बढ़ने के योग्य बनाते हैं। यह ठीक है कि उतना ही धन वाञ्छनीय है, जितना कि 'राध: 'कार्यसिद्धि के लिये आवश्यक है । कार्यसिद्धि से अधिक धन सदा हानिकर हो जाता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु प्राप्ति के लिये यत्नशील हों । प्रभु हमारी इन्द्रियों को शुद्ध करें, मन को अन्तर्मुख करें तथा बुद्धि को प्राप्त करायें। हम अन्न व धन को तो प्राप्त करें ही, साथ ही हमारा लक्ष्य प्रभु प्राप्ति हो ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन् ! (ते) तुभ्यम् (कः मदः रन्त्यः-भूत्) कः स्तुतिसमूहः स्तुतिमन्त्रभागो रमणयोग्यो भवति योऽपि स्यात् (दुरः अभि धाव) तं द्वारमभिलक्ष्य प्राप्तो भव “दुरः” बहुवचनं व्यत्ययेन (गिरः वि० “धाव”) अस्माकं प्रार्थनावाचः प्रति विशिष्टतया प्राप्तो भव ताः स्वीकुरु (मनीषा कद्-वाहः-अर्वाक्-मा-उप) स्तुत्या “मनीषा मनीषया स्तुत्या” [निरु० २।२५] कदाऽस्माकं वहनीयः प्रापणीयस्त्वं मामभिमुखमुप गमिष्यसि (अन्नेः) सोमैरुपासनारसैः “अन्नं वै सोमः” [श० ३।९।१।८] (उपमं त्वा राधः) समीपं वर्त्तमानं त्वां राधनीयं परमात्मानम् (आ शक्याम्) प्राप्तुं शक्नुयाम्-इत्याशासे ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - What is the most exhilarating song of prayer and presentation dear to you? O lustrous lord of force and power, come to us by the doors of yajna in response to our songs of invocation. Harbinger of power and peace, when shall I see you face to face? When will my prayer be fruitful? When shall I be able to regale you with homage and adoration, most eminent master and ruler?