वांछित मन्त्र चुनें

क॒था त॑ ए॒तद॒हमा चि॑केतं॒ गृत्स॑स्य॒ पाक॑स्त॒वसो॑ मनी॒षाम् । त्वं नो॑ वि॒द्वाँ ऋ॑तु॒था वि वो॑चो॒ यमर्धं॑ ते मघवन्क्षे॒म्या धूः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kathā ta etad aham ā ciketaṁ gṛtsasya pākas tavaso manīṣām | tvaṁ no vidvām̐ ṛtuthā vi voco yam ardhaṁ te maghavan kṣemyā dhūḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒था । ते॒ । ए॒तत् । अ॒हम् । आ । चि॒के॒त॒म् । गृत्स॑स्य । पाकः॑ । त॒वसः॑ । म॒नी॒षाम् । त्वम् । नः॒ । वि॒द्वान् । ऋ॒तु॒ऽथा । वि । वो॒चः॒ । यम् । अर्ध॑म् । ते॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । क्षे॒म्या । धूः ॥ १०.२८.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:28» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:20» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:5


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते गृत्सस्य तवसः-मनीषाम्) तुझ मेधावी बलवान् आत्मा या राजमन्त्री की बुद्धि को (अहं पाकः कथा-एतत्-आ चिकेतम्) मैं तेरे द्वारा पोषणीय प्राण या राज्यमन्त्री इस को कैसे जान सकूँ (त्वं विद्वान् नः-ऋतुथा वोचः) हे आत्मा या राजन् ! तू  मुझे समय-समय पर कह-सुझा (मघवन्) स्वामिन् ! (ते यम्-अर्धं क्षेम्या धूः) तेरे जो अंश-आत्मशक्ति या राजशक्ति धारणीया है, उसे भी हमारे लिए जना-समझा ॥५॥
भावार्थभाषाः - आत्मा द्वारा प्राण पोषणीय है। समय-समय पर अपनी ज्ञानचेतना से वह उस प्राण की रक्षा करता है, अपनी चेतनाशक्ति से चेताता है तथा राजा के द्वारा राजमन्त्री रक्षणीय है। वह समय-समय पर उसे आदेश देता रहे और जो उसकी शासनशक्ति है, उससे भी अवगत रहे ॥५॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रभु का मैं 'पाक' हूँ प्र और उसका 'पाक'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र में प्रभु सम्पर्क से होनेवाले अद्भुत परिणाम का उल्लेख था । प्रस्तुत मन्त्र में जीव कहता है कि हे इन्द्र ! (ते) = आपके (एतत्) = इस अद्भुत बल को (अहम्) = मैं (कथम्) = कैसे (आचिकेतम्) = जान पाऊँ, मैं कैसे इसे अपने जीवन में अनुभव कर पाऊँ ? क्रियात्मक बात तो यही है कि मैं आपकी उस शक्ति को अपने जीवन में देखनेवाला बनूँ। [२] (गृत्सस्य) = मेधावी, गुरु, गुरुओं के भी गुरु, (तवसः) = शक्ति के दृष्टिकोण से अत्यन्त बढ़े हुए आपका मैं (पाकः) = बच्चा ही तो हूँ । आपके द्वारा ही मैं (परिपक्तव्य) = प्रज्ञावाला हूँ । आपने ही मेरा परिपाक करना है। [३] हमारे परिपाक के लिये ही (त्वम्) = आप (विद्वान्) = हमारी शक्ति व स्थिति को जानते हुए (ऋतुथा) = समयानुसार (नः) = हमें (मनीषाम्) = बुद्धि को, बुद्धिगम्य ज्ञान को (विवोचः) = विशेषरूप से कहते हैं। इस ज्ञान के द्वारा ही तो आपने हमारा परिपाक करना है। [४] आप तो ज्ञान देते हैं, परन्तु हम उस ज्ञान को पूरी तरह से ग्रहण नहीं कर पाते, परन्तु हे (मघवन्) = सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के स्वामिन् प्रभो ! हम (ते) = आपके (यं अर्धम्) = जिस आधे भी ज्ञान को ग्रहण करते हैं, वह ही हमारे लिये (क्षेम्या) = अत्यन्त कल्याणकर (धू:) = wealth = सम्पत्ति होता है। इस ज्ञान का थोड़ा भी अंश हमारा कल्याण करता है । जितना भी अधिक इसे हम अपनाएँगे, उतना ही यह हमारे लिये अधिकाधिक कल्याणकर होगा ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम प्रभु के पाक-सन्तान हैं । प्रभु हमें ज्ञान देते हैं । उस ज्ञान को हम जितना अपनाएँगे उतने ही कल्याण को भी प्राप्त करेंगे।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (ते गृत्सस्य तवसः-मनीषाम्) मेधाविनो बलवतस्तव-आत्मनः-राज्ञो वा मनीषां प्रज्ञां “मनीषया……प्रज्ञया” [निरु० २।२५] (अहं पाकः कथा एतत्-आचिकेतम्) अहं पक्तव्यस्त्वया पोष्यः प्राणो राज्यमन्त्री वा-एतत् कथं समन्ताद् विजानीयाम् (त्वं विद्वान् नः-ऋतुथा वोचः) त्वं हे आत्मन् ! राजन् ! वा मां समये समये कथय ज्ञापय-ज्ञापयसि (मघवन्) हे सर्वस्वामिन् ! (ते यम्-अर्धं क्षेम्या धूः) तवांशमात्मशक्तिं राजशक्तिं वा क्षेमे भवा क्षेमकरी धूर्धारणीयाऽस्ति सा धारणीया तामपि वोचः कथय ॥५॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O lord of wealth and power, all knowing all watching ruler of the world, Indra, how would I, a simple man, understand and know this mysterious ground power and policy of yours, wise and versatile master of the mighty order. O lord, you alone know, you alone can enlighten us about the admirable basis and direction of your policy of peace and progress of humanity according to the time and season.