वांछित मन्त्र चुनें

अप॑श्यं॒ ग्रामं॒ वह॑मानमा॒राद॑च॒क्रया॑ स्व॒धया॒ वर्त॑मानम् । सिष॑क्त्य॒र्यः प्र यु॒गा जना॑नां स॒द्यः शि॒श्ना प्र॑मिना॒नो नवी॑यान् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apaśyaṁ grāmaṁ vahamānam ārād acakrayā svadhayā vartamānam | siṣakty aryaḥ pra yugā janānāṁ sadyaḥ śiśnā pramināno navīyān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑श्यम् । ग्रामम् । वह॑मानम् । आ॒रात् । अ॒च॒क्रया॑ । स्व॒धया॑ । वर्त॑मानम् । सिस॑क्ति । अ॒र्यः । प्र । यु॒गा । जना॑नाम् । स॒द्यः । शि॒श्ना । प्र॒ऽमि॒ना॒नः । नवी॑यान् ॥ १०.२७.१९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:27» मन्त्र:19 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:19


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अचक्रया स्वधया वर्त्तमानम्) चक्ररहित एकदेशी गतिरहित अर्थात् सर्वत्र गतिवाली स्वधारणा व्यापक प्रवृत्ति से वर्त्तमान (ग्रामं वहमानम्-आरात्-अपश्यम्) जड़ जङ्गम समूह को-संसार को वहन करते हुए परमात्मा को दूर से भी या समीप से ही आन्तरिक दृष्टि से जानता हूँ (नवीयान् सद्यः शिश्ना प्रमिनानः) प्रथम से ही पूर्ण शक्तिमान् होता हुआ, उत्पन्न होनेवाले प्राणियों की गुप्त इन्द्रियों को तुरन्त प्राप्त कराता हुआ-प्रकट करता हुआ (जनानां युगा-अर्यः-प्र सिसक्ति) जायमान उत्पन्न होनेवाले प्राणियों के युगलों स्त्री-पुरुषों को भली-भाँति नियुक्त करता है-नियत करता है ॥१९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपनी विभु गति से जड़-जङ्गम-प्राणीसमूहरूप संसार को चलाता है और वह प्रथम से ही उत्पन्न होनेवाले प्राणियों के गुप्त इन्द्रियों को प्रकट करता हुआ स्त्री-पुरुषरूप युगलों को नियत करता है। जिससे कि प्राणी-संसार चले-चलता रहे ॥१९॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

सद्गृहस्थ का धारक प्रभु

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (ग्रामं वहमानम्) = प्राणि समूह को धारण करनेवाले व उन्नतिपथ पर आगे ले चलनेवाले प्रभु को (आरात्) = अपने समीप ही, अपने अन्दर ही (अपश्यम्) = देखता हूँ। वे प्रभु अपनी इस वहन क्रिया में (अचक्रया) = बिना किसी चक्रवाली (स्वधया) = अपनी धारण शक्ति से ही (वर्तमानम्) = प्रवृत्त हैं। प्रभु को किन्हीं सवारियों की आवश्यकता हो, सो बात नहीं है । [२] वह उत्पन्न जगत् का (अर्य:) = स्वामी प्रभु (जनानाम्) = लोगों के (युगा) = युगों को, अर्थात् पति-पत्नी रूप द्वन्द्व को (प्रसिषक्ति) = प्रकर्षेण प्राप्त होता है। जो भी लोग गृहस्थ के भार को पूर्ण कर्त्तव्यभावना के साथ उठाते हैं उन्हें प्रभु का साहाय्य सदा प्राप्त होता है। 'दुःखमित्येव यत्कर्मकायक्लेशभयात्त्यजेत्' इन शब्दों के अनुसार जो व्यक्ति 'कौन इतना बोझ उठायेगा' इस विचार से घबराकर गृहस्थ होने से भागते हैं, वे प्रभु के प्रिय नहीं होते । [३] वे प्रभु (शिश्ना) = भोग प्रधान जीवनवाले अथवा औरों की हिंसा करनेवाले लोगों को (सद्यः) = शीघ्र ही (प्रमिनान:) = हिंसित करते हैं। प्रभु की रक्षा के पात्र वे ही होते हैं जो भोग प्रधान जीवनवाले नहीं तथा जो औरों की हिंसा करनेवाले नहीं। [४] ये प्रभु (नवीयान्) = अतिशयेन स्तुति के योग्य हैं [नु स्तुतौ]। इनका स्तवन हमें जीवन मार्ग का प्रदर्शन कराता है।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ही सारे ब्रह्माण्ड को धारण कर रहे हैं। वे सद्गृहस्थों को प्राप्त होते हैं और विलासी पुरुषों की हिंसा करते हैं। इस प्रभु का स्तवन हमारे सामने एक लक्ष्य-दृष्टि पैदा करता है और हम ब्रह्म जैसा बनने का प्रयत्न करते हैं।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अचक्रया स्वधया वर्त्तमानम्) चक्ररहितया खल्वेकदेशिगतिरहितया सर्वत्र गतिमत्या स्वधारणया विभुप्रवृत्त्या वर्त्तमानम् (ग्रामं वहमानम्-आरात्-अपश्यम्) जडजङ्गमग्रामं चराचरसमूहं संसारं वहन्तं परमात्मानमहमाराद् दूराद् यद्वा समीपात् “आराद् दूरसमीपयोः” [अव्ययार्थनिबन्धनम्] पश्यामि अन्तर्दृष्ट्या जानामि (नवीयान् सद्यः शिश्ना प्रमिनानः) प्रथमतः पूर्णशक्तिमान् सन् जायमानानां शिश्नानि गुप्तेन्द्रियाणि सद्यः प्रमिनानः प्रगमयन्-प्रकटयन् “मिनाति गतिकर्मा” [निघं० २।४] (जनानां युगा-अर्यः प्रसिषक्ति) जायमानानां युगानि युग्मानि प्रकर्षेण समवयति संयुक्तानि करोति ॥१९॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - From far off by observation of nature and from near by meditation, I have perceived and realised the divine power and presence bearing the multitudinous humanity and other forms of life by its own essential might, moving without wheels, that is, moving and yet not moving, being omnipresent, eternal, yet even new in manifestation, who, sole lord of life, creates the male and female pairs of humans from eternity.