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मं॒सी॒महि॑ त्वा व॒यम॒स्माकं॑ देव पूषन् । म॒ती॒नां च॒ साध॑नं॒ विप्रा॑णां चाध॒वम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

maṁsīmahi tvā vayam asmākaṁ deva pūṣan | matīnāṁ ca sādhanaṁ viprāṇāṁ cādhavam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मं॒सी॒महि॑ । त्वा॒ । व॒यम् । अ॒स्माक॑म् । दे॒व॒ । पू॒ष॒न् । म॒ती॒नाम् । च॒ । साध॑नम् । विप्रा॑णाम् । च । आ॒ऽध॒वम् ॥ १०.२६.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:26» मन्त्र:4 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:13» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषन् देव) हे पोषणकर्त्ता परमात्मदेव ! (अस्माकं मतीनां च) हम तेरे अस्तित्व को माननेवालों के (साधनम्) ज्ञान एवं सुखसम्पन्न करानेवाले (विप्राणां च) और स्तुतियों के द्वारा तुझे प्रसन्न करनेवालों के (आधवम्) भली-भाँति आगे ले जानेवाले अथवा पाप कर्म से शोधनेवाले तुझको (मंसीमहि) मानते हैं-पूजते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - उसके अस्तित्व माननेवाले, उस उत्पन्न पथ पर ले जानेवाले पापशासक परमात्मा को उपासक जन स्तुतियों द्वारा प्रसन्न करते हैं-अनुकूल बनाते हैं ॥४॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

प्रकाश व पोषण

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (देव) = हमारे जीवन को प्रकाशित करनेवाले, ज्ञान की ज्योति से दीप्त करनेवाले तथा (पूषन्) = हमारे अंग-प्रत्यंग को शक्ति सेचन से पुष्ट करनेवाले प्रभो ! (वयम्) = हम (अस्माकं मतीनां साधनम्) = हमारी बुद्धियों के सिद्ध करनेवाले, देव के रूप में ज्ञान के द्वारा हमारी मतियों को प्रकाशमय करनेवाले (च) = और (विप्राणाम्) = इन मेधावी पुरुषों के (आधवम्) = सब प्रकार से कम्पित करके मलों के दूर करनेवाले, विप्रों के जीवन को निर्मल बनानेवाले (त्वा) = आपको (मंसीमहि) = हम स्तुत करते हैं । [२] हम प्रभु का स्तवन करते हैं, वे प्रभु हमारे मस्तिष्क को प्रकाशमय व शरीर को पुष्ट करनेवाले हैं। 'देव' होते हुए हमें द्योतित करते हैं और 'पूषन्' के रूप में हमारा पोषण करते हैं। प्रकाश की प्राप्ति के लिये ही हमें उत्तम बुद्धि देते हैं और शक्ति को प्राप्त कराके सब बुराइयों से बचाते हैं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - वे देव हमें ज्ञान की ज्योति देते हैं और वे पूषा हमारे अंगों को पुष्ट करते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषन् देव) हे पोषयितर्देव परमात्मन् ! (अस्माकं मतीनां च) अस्मद्विधानां तव अस्तित्वं मन्यमानानां मेधाविनाम् “मतयो मेधाविनाम” [निघं० ३।१५] (साधनम्) साधयितारम्, तथा (विप्राणां च) स्तुतिभिस्त्वां प्रीणयितॄणां च (आधवम्) समन्तादग्रे गमयितारं त्वाम् (मंसीमहि) अर्चामः स्तुवीमहि “मन्यते-अर्चतिकर्मा” [निघं० ३।१४] ॥४॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - We know and adore you, divine Pusha, sustainer of life, giver of success to our intelligentsia, pioneer guide and purifier of our vibrant sages.