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स वे॑द सुष्टुती॒नामिन्दु॒र्न पू॒षा वृषा॑ । अ॒भि प्सुर॑: प्रुषायति व्र॒जं न॒ आ प्रु॑षायति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa veda suṣṭutīnām indur na pūṣā vṛṣā | abhi psuraḥ pruṣāyati vrajaṁ na ā pruṣāyati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । वे॒द॒ । सु॒ऽस्तु॒ती॒नाम् । इन्दुः॑ । न । पू॒षा । वृषा॑ । अ॒भि । प्सुरः॑ । प्रु॒षा॒य॒ति॒ । व्र॒जम् । नः॒ । आ । प्रु॒षा॒य॒ति॒ ॥ १०.२६.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:26» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पोषणकर्त्ता परमात्मा (इन्दुः-न वृषा) चन्द्रमा की भाँति आनन्दवर्षक (सः-सुष्टुतीनां वेद) वह हमारी शोभन स्तुतियों को जानता है, तदनुसार अनुग्रह करता है (प्सुरः-अभि प्रुषायति) साक्षात् हुआ अपने आनन्दरस से हम उपासकों को सींचता है-तृप्त करता है (नः-वज्रम्-आ प्रुषायति) हमारे इन्द्रियस्थान को अपने आनन्दरस से भरपूर करता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - पोषणकर्त्ता परमात्मा स्तुतियों द्वारा चन्द्रमा की भाँति अपने आनन्द रस से उपासकों को तृप्त करता है और प्रत्येक इन्द्रियस्थान में भी अपने आनन्द की अनुभूति कराता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

शक्ति सेचन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (स) = वह प्रभु (सुष्टुतीनाम्) = हमारे से की जानेवाली उत्तम स्तुतियों को वेद जानता है । 'हम वस्तुतः हृदय से उस प्रभु का स्तवन कर रहे हैं या नहीं' इस बात को प्रभु सम्यक् समझते हैं। हम बनावटी स्तुतियों से प्रभु को धोखा नहीं दे सकते । [२] (इन्दुः न) = सोम की तरह वह प्रभु (पूषा) = हमारा पोषण करनेवाले हैं और (वृषा) = हमारे पर सुखों की वृष्टि करनेवाले हैं। जैसे शरीर में सुरक्षित (सोम) = वीर्य हमारी सब शक्तियों का पोषण करता है और हमारे जीवन को सुखी बनाता है उसी प्रकार वे प्रभु हमारे लिये 'पूषा और वृषा' होते हैं । [३] वे प्रभु (प्सुरः) = [प्सु = रूप रा - दाने] हमारा पोषण करके हमें उत्तम रूप को देनेवाले हैं। प्रभु कृपा से हमारा स्वाथ्य ठीक होता है और यह स्वास्थ्य हमारे सौन्दर्य का वर्धन करता है। ये 'प्सुर' प्रभु अभिप्रुषायति हमारा लक्ष्य करके सब शक्तियों का सेचन करते हैं । वे (नः) = हमारे (व्रजम्) = इस शरीररूप बाड़े को (आप्रुषायति) = सब ओर से सिक्त कर डालते हैं। हमारा अंग-प्रत्यंग शक्ति से सिक्त होकर, पुष्ट होकर हमें आगे बढ़ने के योग्य बनाता हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- वे प्रभु पूषा हैं, वे सचमुच हमारे सम्पूर्ण अंगों को शक्ति से सिक्त करके हमें पुष्ट करते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पूषा) पोषयिता परमात्मा (इन्दुः न वृषा) चन्द्र इवानन्दवर्षकः (सः सुष्टुतीनां वेद) स खल्वस्माकं शोभनस्तुतीर्वेद जानाति तदनुरूपमनुग्रहं करोति “द्वितीयास्थाने षष्ठी व्यत्ययेन” (प्सुरः अभि प्रुषायति) साक्षाद्भूतः सन् स्वानन्दरसेनास्मानुपासकान् सिञ्चति (नः व्रजम् आप्रुषायति) अस्माकमिन्द्रियव्रजं स्वानन्दरसेन प्रवाहयति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Pusha, like Soma, the moon, giver of showers, knows of our prayers and adorations. Assuming and pervading all forms of life, he showers his favours of grace on us, he also showers his kindness and favours on our foods, pastures and cows as well.