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त्वं नो॑ वृत्रहन्त॒मेन्द्र॑स्येन्दो शि॒वः सखा॑ । यत्सीं॒ हव॑न्ते समि॒थे वि वो॒ मदे॒ युध्य॑मानास्तो॒कसा॑तौ॒ विव॑क्षसे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ no vṛtrahantamendrasyendo śivaḥ sakhā | yat sīṁ havante samithe vi vo made yudhyamānās tokasātau vivakṣase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । नः॒ । वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ । इन्द्र॑स्य । इ॒न्दो॒ इति॑ । शि॒वः । सखा॑ । यत् । सी॒म् । हव॑न्ते । स॒म्ऽइ॒थे । वि । वः॒ । मदे॑ । युध्य॑मानाः । तो॒कऽसा॑तौ । विव॑क्षसे ॥ १०.२५.९

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:25» मन्त्र:9 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्तम-इन्दो) हे अत्यन्त पापविनाशक ! आनन्दरसपूर्ण परमात्मन् ! (त्वम्-इन्द्रस्य शिवः सखा) तू आत्मा का कल्याण-साधक मित्र है। (तोकसातौ समिथे) संतानों के प्राप्तिरूप संग्राम में-गृहस्थ आश्रम में (युध्यमानाः) संघर्ष करते हुए (हवन्ते) अर्चित करते हैं। (वः-मदे वि) तेरी हर्षनिमित्त विशिष्टरूप से हम स्तुति करते हैं। (विवक्षसे) तू महान् है ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपासक के पापों को नष्ट करनेवाला और आनन्दरस से पूर्ण करनेवाला कल्याणकारी मित्र है। गृहस्थ आश्रम में संतानों की प्राप्ति के लिये वह स्तुति करने योग्य है ॥९॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

वह 'शिव-सखा'

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (वृत्रहन्तम) = हमारे ज्ञान पर आवरणरूप इस काम को सर्वाधिक नष्ट करनेवाले (इन्दो) = शक्तिशालिन् व ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमारे (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (शिवः सखा) = कल्याणकर व 'शो तनूकरणे' प्रज्ञान को क्षीण करनेवाले मित्र हैं। हमारे में से जो भी इन्द्रियों को जीतने का अभ्यास करता है, हे प्रभो ! आप उसके मित्र होते हैं, आप इसके लिए वृत्र का विनाश करनेवाले होते हैं। इस वृत्र का विनाश करके ही तो आप उसके अज्ञान को क्षीण करते हैं। अज्ञान को दूर करनेवाले 'शिव सखा' आप ही हैं। संसार में भी वही सच्चा मित्र है जो सद्बुद्धि दे, नेक सलाह दे । हाँ में हाँ मिलानेवाले तो सच्चे मित्र नहीं होते । [२] 'आप ही शिव सखा हैं' यही कारण है कि (यत्) = जो (तोकसातौ) = [तु-वृद्धि, पूर्ति, हिंसा] शत्रुओं की हिंसा के द्वारा वृद्धि व पूर्ति की प्राप्ति के निमित्त (समिथे) = संग्राम में, काम-क्रोधादि शत्रुओं के साथ चलनेवाले अध्यात्म संग्राम में (युध्यमाना:) = कामादि शत्रुओं से युद्ध करते हुए पुरुष (सीम्) = सर्वतः (हवन्ते) = आपको ही पुकारते हैं। वस्तुतः आपने ही तो विजय करनी है, व्यक्तियों के लिए इस विजय का सम्भव नहीं । [३] आप इस विजय को करवाइये ही, जिससे (वः) = आपकी प्राप्ति के (विमदे) = विशिष्ट आनन्द में विवक्षसे हम विशिष्ट उन्नति के लिये हों। बिना विजय के उन्नति नहीं और बिना आपकी कृपा के विजय नहीं ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्रभु ही हमारे शिव सखा हैं, ये ही हमें युद्ध में विजय प्राप्त कराते हैं ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृत्रहन्तम-इन्दो) हे अत्यन्त-पापनाशक-आनन्दरसपूर्णं परमात्मन् ! (त्वम्-इन्द्रस्य शिवः सखा) त्वमात्मनः कल्याणसाधकः सखाऽसि (तोकसातौ समिथे) प्रजानां सन्ततीनां प्राप्तिरूपे संग्रामे गृहस्थाश्रमे (युध्यमानाः) संघर्षं कुर्वाणाः (यत् सीं हवन्ते) त्वामामन्त्रयन्तेऽर्चन्ति (वः-मदे वि) त्वां हर्षनिमित्तं विशिष्टतया स्तुमः (विवक्षसे) त्वं महानसि ॥९॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - O Soma, greatest dispeller of darkness and want and deprivation, our gracious friend as well as gracious friend of Indra, the ruler, people all round, struggling in their battle of life for the advancement of their future generations, call upon you for help, protection and success since, then, you are waxing great and glorious in your joy for the good of all.