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तव॒ त्ये सो॑म॒ शक्ति॑भि॒र्निका॑मासो॒ व्यृ॑ण्विरे । गृत्स॑स्य॒ धीरा॑स्त॒वसो॒ वि वो॒ मदे॑ व्र॒जं गोम॑न्तम॒श्विनं॒ विव॑क्षसे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tava tye soma śaktibhir nikāmāso vy ṛṇvire | gṛtsasya dhīrās tavaso vi vo made vrajaṁ gomantam aśvinaṁ vivakṣase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तव॑ । त्ये । सो॒म॒ । शक्ति॑ऽभिः । निऽका॑मासः॑ । वि । ऋ॒ण्वि॒रे॒ । गृत्स॑स्य । धीराः॑ । त॒वसः॑ । वि । वः॒ । मदे॑ । व्र॒जम् । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्विन॑म् । विव॑क्षसे ॥ १०.२५.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:25» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (गृत्सस्य तपसः-तव) श्रोताओं द्वारा वाञ्छित तुझ बलवान् के (त्ये निकामासः-धीराः) वे नियम से या नित्य तुझे चाहनेवाले ध्यानी उपासक (शक्तिभिः-ऋण्विरे) साधनाकर्मों-योगाभ्यासों के द्वारा तुझे प्राप्त होते हैं (गोमन्तम्-अश्विनं व्रजम्) प्रशस्त इन्द्रियोंवाले और प्रशस्त मनवाले शरीररूप स्थान को प्राप्त होते हैं (वः-मदे वि) तेरे हर्षप्रद स्वरूप के निमित्त विशेष स्तुति करते हैं (विवक्षसे) तू महान् है ॥५॥
भावार्थभाषाः - वाञ्छनीय परमात्मा का नियम से नित्य योगाभ्यास आदि द्वारा ध्यान करनेवाले उपासक जन शोभन इन्द्रियवाले और प्रशस्त मनवाले शरीर की प्राप्त होते हैं। तभी वे परमात्मा का हर्षप्रद स्वरूप अनुभव करते हैं ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

बाड़ा, गौवें तथा घोड़े

पदार्थान्वयभाषाः - [१] हे (सोम) = शान्त परमात्मन् ! (त्ये) = वे (निकामासः) = सांसारिक कामनाओं से ऊपर उठे हुए (धीराः) = धीर - ज्ञानी - पुरुष (गृत्सस्य) = मेधावी - सम्पूर्ण बुद्धि के स्रोत (तवसः) = शक्ति के दृष्टिकोण से महान्-प्रवृद्ध (तव) = आपकी (शक्तिभिः) = शक्तियों से (वः) = आपकी प्राप्ति के (विमदे) = विशिष्ट आनन्द में (गोमन्तम्) = उत्तम ज्ञानेन्द्रियोंवाले तथा (अश्विनम्) = उत्तम कर्मेन्द्रियों वाले (व्रजम्) = शरीररूपी बाड़े को (वि ऋणिवरे) = विशिष्टरूप से प्राप्त होते हैं और इस प्रकार विवक्षसे विशिष्ट उन्नति के लिये होते हैं । [२] प्रभु को प्राप्त वे ही होते हैं जो निकामासः - कामनाशून्य होते हैं । सांसारिक वस्तुओं की कामना से ऊपर उठकर ही प्रभु की प्राप्ति होती है। प्रभु मेधावी [गृत्स] व महान् [तवस्] हैं। प्रभु को प्राप्त करनेवाला भी मेधावी व महान् बनता है। यह धीर पुरुष प्रभु प्राप्ति के विशिष्ट आनन्द को अनुभव करता है । [३] प्रभु को प्राप्त करनेवाला, प्रभु की शक्ति से शक्ति-सम्पन्न होकर इस शरीररूप बाड़े में उत्तम ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय रूप गौवों व घोड़ोंवाला होता है। इसका शरीर व्रज है, ज्ञानेन्द्रियाँ गौवें हैं और कर्मेन्द्रियाँ घोड़े हैं । [४] इस प्रकार अपने शरीररूप बाड़े को उत्तम बनाकर, इस उत्तम इन्द्रियरूप गौवों व घोड़ों से यह निरन्तर उन्नतिपथ पर आगे बढ़ता है । यह सब प्रभु कृपा से होता है, प्रभु की शक्ति से शक्ति सम्पन्न होकर ही ऐसा होने का सम्भव होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम काम से ऊपर उठकर प्रभु को प्राप्त करें। प्रभु कृपा से हमारा शरीर एक उत्तम बाड़े की तरह हो। इसमें ज्ञानेन्द्रियाँ उत्तम गौवें हों तथा कर्मेन्द्रियाँ उत्तम घोड़े हों ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (गृत्सस्य तपसः तव) स्तोतृभिरभिकाङ्क्षितस्य “गृत्सः अभिकाङ्क्षितः” [ऋ० २।१९।८ दयानन्दः] बलवतस्तव (त्ये निकामासः-धीराः) ते नियमेन नित्यं वा त्वां कामयमाना धीमन्तो ध्यानिन उपासकाः “धीरसीत्याह यद्धि मनसा ध्यायति [तै० सं० ६।१।७।४] (शक्तिभिः-ऋण्विरे) साधनाकर्मभिर्योगाभ्यासैः” ‘शक्तिः कर्मनाम” [निघं० २।१] त्वां प्राप्नुवन्ति (गोमन्तम्-अश्विनं व्रजम्) प्रशस्तेन्द्रियवन्तं प्रशस्तमनस्विनं शरीररूपं स्थानं च प्राप्नुवन्ति (वः-मदे वि) तव हर्षप्रदस्वरूपनिमित्ते विशिष्टं स्तुवन्तीति शेषः (विवक्षसे) त्वं महानसि ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Those devotees with a balanced mind, lovers of divinity, inspired with devotion to the loved and potent Soma, with all their power of concentration in meditation reach the state of joy in your presence, O Soma, wherein they find a settled haven with enlightened mind and senses and a vibrant will here itself. O lord you are really great for all.