वांछित मन्त्र चुनें

मधु॑मन्मे प॒राय॑णं॒ मधु॑म॒त्पुन॒राय॑नम् । ता नो॑ देवा दे॒वत॑या यु॒वं मधु॑मतस्कृतम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

madhuman me parāyaṇam madhumat punar āyanam | tā no devā devatayā yuvam madhumatas kṛtam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मधु॑ऽमत् । मे॒ । प॒रा॒ऽअय॑णम् । मधु॑ऽमत् । पुनः॑ । आऽअय॑नम् । ता । नः॒ । दे॒वा॒ । दे॒वत॑या । यु॒वम् । मधु॑ऽमतः । कृ॒त॒म् ॥ १०.२४.६

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:24» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:6 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:6


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मे परायणं मधुमत्) हे राजसभेश और सेनापति तुम्हारे द्वारा चालित और रक्षित राष्ट्र में मुझ राष्ट्रपति का बहिर्गमन मधुमय हो-जहाँ मैं जाऊँ, वहाँ के प्रजाजनों के लिये भी कल्याणमय हो (ता देवा युवम् देवतया नः-मधुमतः कृतम्) वे तुम विद्वान् अपनी विद्वत्ता के द्वारा हमको मधुयुक्त-आनन्दयुक्त करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - कुशल राजसभेश तथा सेनेश के द्वारा सञ्चालित तथा रक्षित राष्ट्र में वर्त्तमान राष्ट्रपति का अन्य राष्ट्र में जाना मधुमय अर्थात् कल्याणकारी हो, वहाँ की प्रजाओं के लिये भी तथा अपने राष्ट्र में फिर आगमन भी कल्याणकारी हो, ऐसे सभेश और सेनेश स्वराष्ट्रवासियों को कल्याण से युक्त करें ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मोक्ष - प्रवण पुरु का जीवन

पदार्थान्वयभाषाः - [१] गत मन्त्र के अनुसार जो पुरुष प्राणसाधना से सब इन्द्रियों को सशक्त बनाकर मोक्ष मार्ग की ओर चलता है उस पुरुष के जीवन में माधुर्य होता है। इसकी कामना यह होती है कि (मे) = मेरा (परायणं) = बाहर जाना (मधुमत्) = माधुर्य को लिये हुए हो । (मे) = मेरा (पुनः) = फिर (आयनम्) = आना- लौटना (मधुमत्) = मिठास वाला हो। मेरा आना-जाना, इसी प्रकार उठना-बैठना, बोलना - चालना सभी कुछ मधुर ही हो। मेरी सब क्रियाएँ मिठास को लिये हुए हों। [२] हे (देवा) = दिव्यगुणों वाले प्राणापानो! (ता युवम्) = वे आप दोनों (नः) = हमें (देवतया) = उस देवता के हेतु से, अर्थात् प्रभु प्राप्ति के उद्देश्य से (मधुमतः) = माधुर्य वाला कृतम् कर दीजिये । प्रभु को वही प्राप्त करता है जो कि अपने में माधुर्य को भरता है । यह माधुर्य प्राणसाधना से ही प्राप्त होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - प्राणसाधना से जीवन मधुर बनता है। मधुर जीवन ही हमें प्रभु को प्राप्त कराता है । सूक्त का प्रारम्भ इन शब्दों से हुआ है कि हम सोम का रक्षण करें, यह हमारे जीवन को मधुर बनायेगा । [१] हम यज्ञों, उक्थों व हव्यों से प्रभु का आराधन करें, प्रभु हमें वार्य धन प्राप्त करायेंगे, [२] हम द्वेष व पाप से ऊपर उठकर प्रभुरक्षण के पात्र बनें, [३] प्राणसाधना से हमें 'शक्ति, प्रज्ञा व कर्म-पवित्रता' प्राप्त होगी, [४] प्राणापान की गति से ही इन्द्रियाँ सशक्त बनती हैं, [५] इस प्राणसाधना से ही जीवन मधुर बनता है, [६] अब प्रभु कृपा से हमारा मन भद्र मार्ग का ही आक्रमण करता है।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मे परायणं मधुमत्) हे सभासेनेशौ ! युवाभ्यां चालिते रक्षिते राष्ट्रे मम राष्ट्रपतेः परायणं बहिर्गमनं मधुमद् भवतु यत्र गच्छामि तत्रस्थजनेभ्यः कल्याणमयं बहिगर्मनं भवतु (पुनः-आयनम्-मधुमत्) तत्र कार्यं विधाय स्वराष्ट्रे पुनरागमनं मधुमद् भवतु स्वप्रजाभ्यः कल्याणमयं भवतु (ता देवा युवम् देवतया नः-मधुमतः कृतम्) तौ विद्वांसौ युवां स्वविद्वत्तया-योग्यतयाऽस्मान् मधुयुक्तान्-आनन्दयुक्तान् कुरुतम् ॥६॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Ashvins, complementary divinities of nature and humanity, let the way beyond be honey sweet for me. Let the way back on return be honey sweet for me. O divines, with your blessings, pray both of you make our life here, hereafter and here again full of honey sweets and joy.