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विश्वे॑ दे॒वा अ॑कृपन्त समी॒च्योर्नि॒ष्पत॑न्त्योः । नास॑त्यावब्रुवन्दे॒वाः पुन॒रा व॑हता॒दिति॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśve devā akṛpanta samīcyor niṣpatantyoḥ | nāsatyāv abruvan devāḥ punar ā vahatād iti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विश्वे॑ । दे॒वाः । अ॒कृ॒प॒न्त॒ । स॒म्ऽई॒च्योः । निः॒ऽपत॑न्त्योः । नास॑त्यौ । अ॒ब्रु॒व॒न् । दे॒वाः । पुनः॑ । आ । व॒ह॒ता॒त् । इति॑ ॥ १०.२४.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:24» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (निष्पतन्त्योः समीच्योः) राष्ट्रैश्वर्य के लिये निरन्तर प्रगति करते हुए भलीभाँति सहयोग में वर्तमान हुए उन सभापति तुम दोनों के कर्म को (विश्वे देवाः-अकृपन्त) समस्त विद्वान् ऋषिजन सामर्थ्य देते हैं (नासत्यौ देवाः-अब्रुवन्) हे सत्याचरणवाले सभापति और सेनापति ! विद्वान् जन घोषित करते हैं कि (पुनः-आवहतात्-इति) पुनः-पुनः राष्ट्र को वहन करो अर्थात् पुनः-पुनः राष्ट्र को वहन करो अर्थात् पुनः-पुनः स्वकीयपद ग्रहण करके कार्य करो ॥५॥
भावार्थभाषाः - राष्ट्रैश्वर्य के लिये निरन्तर प्रगति करते हुए परस्पर सहयोग में वर्तमान हुए सभापति और सेनापतियों के कर्म को समस्त विद्वान् बल देवें और अनुमति देवें कि वे राष्ट्र का वहन करें-चलावें ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

देवों का शक्ति-सम्पन्न होना

पदार्थान्वयभाषाः - [१] जब 'अश्विनौ' अर्थात् प्राणापान अन्दर आते हैं और बाहर जाते हैं तो (समीच्यो:) = [सम्+अञ्च्] इन प्राणापानों के शरीर से संगत होने पर तथा (निष्पतनयोः) = बाहर जाने पर अर्थात् इन प्राणापान के विधारण व प्रच्छर्दन से (विश्वेदेवाः) = चक्षु आदि इन्द्रियों के रूप में स्थित सब देव (अकृपन्त) =[कृपू सामर्थ्ये] शक्तिशाली बनते हैं। प्राणसाधना से सब इन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है। इसी में 'सुख' है । सब इन्द्रियों के स्वस्थ होने से जीवन का कार्यक्रम सुन्दरता से चलता है । [२] अब (देवा:) = ये देव (नासत्यौ) = इन प्राणापानों से (अब्रुवन्) = कहते हैं कि आप (पुनः) = फिर (आवहतात् इति) = हमें सब प्रकार से हमारे घर में प्राप्त करानेवाले होइये । अर्थात् आप की कृपा से हम फिर अपने मूल गृह 'ब्रह्मलोक' में पहुँच सकें। यह जीवन सुन्दरता से बीतेगा, तभी तो हम मोक्ष के भी अधिकारी समझे जाएँगे ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्राणापान के शरीर में आने-जाने की क्रिया से सब इन्द्रियाँ शक्तिशाली बनती हैं । और ये प्राणापान ही अन्ततः हमें मोक्ष प्राप्त कराते हैं।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (निष्पतन्त्योः समीच्योः) राष्ट्रैश्वर्याय निरन्तरं प्रगतिं कुर्वाणयोः सम्यक् सहयोगे वर्त्तमानयोः कर्म  (विश्वे देवाः-अकृपन्त) सर्वे विद्वांस ऋषयो बलं प्रयच्छन्ति-समर्थयन्ति (नासत्यौ देवाः अब्रुवन्) हे सत्याचरणवन्तौ सभासेनेशौ ! विद्वांसो घोषयन्ति यत् (पुनः आवहतात्-इति) पुनः पुनः राष्ट्रं वह, इति प्रत्येकदृष्ट्या खल्वेकवचनम्, पुनः पुनस्तत्पदं गृहीत्वा कार्यं कुरु ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - All divinities of nature and humanity shower love and kindness on the complementary powers working together in unison without relent or remiss on their commitment, and as the work goes on, O divinities ever true and never false or failing, the powers of the world exclaim: Go on, go on, that way success lies.