वांछित मन्त्र चुनें

इन्द्र॒ सोम॑मि॒मं पि॑ब॒ मधु॑मन्तं च॒मू सु॒तम् । अ॒स्मे र॒यिं नि धा॑रय॒ वि वो॒ मदे॑ सह॒स्रिणं॑ पुरूवसो॒ विव॑क्षसे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indra somam imam piba madhumantaṁ camū sutam | asme rayiṁ ni dhāraya vi vo made sahasriṇam purūvaso vivakṣase ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑ । सोम॑म् । इ॒मम् । पि॒ब॒ । मधु॑ऽमन्तम् । च॒मू इति॑ । सु॒तम् । अ॒स्मे इति॑ । र॒यिम् । नि । धा॒र॒य॒ । वि । वः॒ । मदे॑ । स॒ह॒स्रिण॑म् । पु॒रु॒व॒सो॒ इति॑ पुरुऽवसो । विव॑क्षसे ॥ १०.२४.१

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:24» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:1


0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

इस सूक्त में राजधर्मों और राष्ट्रसंचालन का उपदेश है।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे राजन् ! (इमं मधुमन्तं चमूसुतं सोमं पिब) इस मधुर रसवाले सुस्वादु सभा सेना के मध्य सम्पन्न राज्य-ऐश्वर्य को भोग-सेवन कर (अस्मे सहस्रिणं रयिं निधारय) हम प्रजाजनों के लिये सहस्रगुणित बहुत हितकर धन पालन पोषण को नियतकर-स्थिरकर (पुरूवसो) हे बहुत धनसम्पन्न राजन् ! (मदे) हर्षानेवाले धन के निमित्त (वः-वि) तेरी विशेष प्रशंसा करते हैं (विवक्षसे) तू महान् है ॥१॥
भावार्थभाषाः - सभा और सेना में सम्पन्न राज्य ऐश्वर्य को राजा उत्तमरूप से भोगे। प्रजाओं के लिये सहस्रगुणित अर्थात् जितना राज्य शुल्क ग्रहण करे, उससे बहुत गुणें धन से प्रजा का पालन पोषण करे। प्रजा भी अपने हर्ष आनन्द के प्राप्त करने के निमित्त राजा की प्रशंसा किया करे, क्योंकि राजा एक महान् गुणवाला होता है ॥१॥
0 बार पढ़ा गया

हरिशरण सिद्धान्तालंकार

मधुमन्तं चमूसुतम्

पदार्थान्वयभाषाः - [१] प्रभु अपने मित्र जीव को प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि (इन्द्र) = हे जितेन्द्रिय पुरुष ! (इमं सोमं पिब) = इस सोम को तू शरीर में ही पीने का प्रयत्न कर । आहार से रस रुधिरादि क्रम से उत्पन्न हुआ हुआ यह (सोम) = वीर्य तेरे शरीर में ही व्याप्त हो जाए। (मधुमन्तम्) = यह अत्यन्त माधुर्य वाला है। शरीर में नीरोगता को, मन में निर्देषता को तथा बुद्धि में तीव्रता को जन्म देकर यह हमारे जीवनों को अतिशयेन मधुर बना देता है। (चमूसुतम्) = [चम्वोः द्यावापृथिव्योः = मस्तिष्क व शरीर ] यह सोम चमुओं, द्यावापृथिवियों, मस्तिष्क व शरीर के निमित्त ही पैदा किया गया है। शरीर को यह सब रोगों से बचाता है, और मस्तिष्क की तीव्रता को सिद्ध करता है । [२] प्रभु कहते हैं (व:) = तुम्हारे (विमदे) = विशिष्ट आनन्द के निमित्त (अस्मे) = हमारे (सहस्रिणम्) = हजारों की संख्या वाले अथवा प्रसन्नता को जन्म देनेवाले [स+हस्] (रयिम्) = धन को (निधारय) = निश्चय से धारण कर अथवा नम्रता से धारण कर । तुझे यह धन तो प्राप्त हो, परन्तु यह धन तुझे गर्वित न कर दे । [३] (पुरूवसो) = हे पालन व पूरण के लिये वसु - धन को प्राप्त करनेवाले जीव ! तू (विवक्षसे) = विशिष्ट उन्नति के लिये हो [ वक्ष To grow ] धन को प्राप्त करके तू धन का विनियोग इस प्रकार से कर कि यह धन जहाँ तेरे शरीर का पालन करे, उसे रोगाक्रान्त न होने दे, वहाँ तेरे मन का यह पूरण करनेवाला हो, तेरे मन में किसी प्रकार की ईर्ष्या-द्वेष आदि की अवाञ्छनीय भावनाएँ न उत्पन्न हो जाएँ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ - हम वीर्य को शरीर में ही व्याप्त करें, यह हमारे जीवन को मधुर बनायेगा । हम धन को भी धारण करें, जो हमारे शरीर के पालन व पूरण का साधन बने ।
0 बार पढ़ा गया

ब्रह्ममुनि

अस्मिन् सूक्ते राजधर्मा राष्ट्रसञ्चालनञ्चोपदिश्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे राजन् ! (इमं मधुमत्तमं चमूसुतं सोमं पिब) एतं मधुररसवन्तं सुस्वादुं द्यावापृथिव्योरिव “चम्वौ द्यावापृथिवीनाम” [निघ० ३।३०] सभासेनयोर्मध्ये सम्पन्नं राज्यैश्वर्यं भुञ्जीथाः सेवस्व (अस्मे सहस्रिणं रयिं नि धारय) अस्मभ्यं प्रजाजनेभ्यः सहस्रगुणितं बहुहितकरं धनं पोषणं पालनं नियोजय (पुरूवसो) हे बहुधनवन् राजन् ! (मदे) हर्षकरधननिमित्तम् (वः-वि) त्वां विशिष्टं प्रशंसामः (विवक्षसे) त्वं महान्-असि “विवक्षसे महन्नाम” [निघ० ३।३] ॥१॥
0 बार पढ़ा गया

डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Indra, lord of infinite wealth, power, honour and excellence, accept and bless this soma homage of love and faith, honey sweet, distilled and offered in the ladle of yajna, protect and promote this joyous world of honey sweets extending from earth to the skies, bear and bring us wealth of the world as you in your own divine joy carry the thousandfold burden of this world. You are great, lord of glory.