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यो वा॒चा विवा॑चो मृ॒ध्रवा॑चः पु॒रू स॒हस्राशि॑वा ज॒घान॑ । तत्त॒दिद॑स्य॒ पौंस्यं॑ गृणीमसि पि॒तेव॒ यस्तवि॑षीं वावृ॒धे शव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vācā vivāco mṛdhravācaḥ purū sahasrāśivā jaghāna | tat-tad id asya pauṁsyaṁ gṛṇīmasi piteva yas taviṣīṁ vāvṛdhe śavaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः । वा॒चा । विऽवा॑चः । मृ॒ध्रऽवा॑चः । पु॒रु । स॒हस्रा॑ । असि॑वा । ज॒घान॑ । तत्ऽत॑त् । इत् । अ॒स्य॒ । पौंस्य॑म् । गृ॒णी॒म॒सि॒ । पि॒ताऽइ॑व । यः । तवि॑षीम् । व॒वृ॒धे । शवः॑ ॥ १०.२३.५

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:23» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:5 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो शासक (वाचा) वज्र द्वारा (विवाचः मृध्रवाचः) विविध वाणीवाले तथा हिंसक वाणीवाले (अशिवाः) अकल्याणचिन्तक शत्रु हैं, उसके (पुरुसहस्रा) बहुत सहस्र जनों या गणों को (जघान) नष्ट करता है-मारता है (अस्य तत् तत्-इत् पौंस्यम्) इसके उस-उस विषयवाले सब पौरुष-बल की (गृणीमसि) हम प्रशंसा करते हैं (यः) जो (पिता-इव तविषीं शवः-ववृधे) पिता की भाँति हमारे बल एवं धन को बढ़ाता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - राजा अपने शासन वज्र से विविध वाणीवाले और हिंसक वाणीवाले अहितचिन्तक जनों या शत्रुओं का हनन करे तथा पिता की भाँति प्रजा के बल और धन को बढ़ाता रहे, वह प्रजा द्वारा प्रशंसा के योग्य होता है ॥५॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

कर्मवीर न कि वाग्वीर

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यः) = जो प्रभु (वाचा) = इस वेदवाणी के द्वारा (विवाचः) = विरुद्ध वाणी वाले अथवा बड़ा बोलनेवाले तथा (मृध्रवाचः) = हिंसायुक्त वाणी वाले, अर्थात् कटुभाषी (पुरू सहस्रा) = अनेक हजारों (अशिवा) = अकल्याणकर शत्रुओं को (जघान) = नष्ट करता है । वेदवाणी में उपदेश देकर प्रभु मनुष्य को 'बहुत बोलने से तथा कड़वा बोलने से रोकते हैं। वस्तुतः इस प्रकार बहुत व कड़वा बोलनेवाले व्यक्ति संसार में कर्मवीर नहीं हुआ करते । [२] कर्मवीर बनने के लिये हम (अस्य) = इस वेदोपदेश देनेवाले प्रभु के (तत् तत्) = उस-उस (पौंस्यम्) = वीरतायुक्त कर्म का (इत्) = निश्चय से (गृणीमसि) = स्तवन करते हैं। प्रभु के इन वीरतायुक्त कर्मों का स्तवन हमें भी वीरतापूर्ण कर्मों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देता है । [३] जब हम इस प्रकार वीर बनकर के कर्म करने का संकल्प करते हैं तो वे प्रभु उस (पिता इव) = पिता की तरह होते हैं (यः) = जो कि (तविषीं) = [अपने पुत्रों के] बल को तथा बल के द्वारा (शवः) = क्रियाशीलता को (वावृधे) = बढ़ाते हैं । प्रभु कृपा से हमारी शक्ति में वृद्धि होती है और हम क्रियाशील बनते हैं।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हम असंगत बहुत प्रलापों को तथा हिंसयुक्त वाणियों को छोड़कर वीरतापूर्ण कर्मों में प्रवृत्त हों ।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) यः खल्विन्द्रः शासकः (वाचा) वज्रेण “व्रज्र एव वाक्” [ऐ० २।२१] (विवाचः मृध्रवाचः) विरुद्धा वाग्येषां ते तथा मृध्रा हिंसिका वाग्येषां ते “मृध्रा हिंस्रा वाग्येषां ते” [ऋ० ७।६।३ दयानन्दः] अशिवाः अकल्याणचिन्तकाः शत्रवः सन्तीति तेषाम् (पुरुरू सहस्रा) पुरूणि बहूनि सहस्राणि “पुरु बहुनाम” [निघ० ३।१] आकारादेश उभयत्र छान्दसः (जघान) हन्ति (अस्य तत्-तत्-इत् पौंस्यम्) अस्य तत्तद्विषयकं सर्वं हि पौरुषम् (गृणीमसि) प्रशंसामः (यः) यः खलु (पिता-इव तविषीं शवः-ववृधे) यथा पिता तद्वदस्माकं बलम् “तविषी बलनाम” [निघ० २।९] धनम् “शवः धननाम” [निघ० २।१०] वर्धते ॥५॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - Who with one united forceful voice silences and eliminates many many hundreds of contradictory and confrontationist voices of manly violence, sabotage and destruction, that power and voice of this mighty Indra we admire and celebrate, the ruler who, like a parent power, promotes and elevates our strength, lustre and glory.