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य॒दा वज्रं॒ हिर॑ण्य॒मिदथा॒ रथं॒ हरी॒ यम॑स्य॒ वह॑तो॒ वि सू॒रिभि॑: । आ ति॑ष्ठति म॒घवा॒ सन॑श्रुत॒ इन्द्रो॒ वाज॑स्य दी॒र्घश्र॑वस॒स्पति॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadā vajraṁ hiraṇyam id athā rathaṁ harī yam asya vahato vi sūribhiḥ | ā tiṣṭhati maghavā sanaśruta indro vājasya dīrghaśravasas patiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य॒दा । वज्र॑म् । हिर॑ण्यम् । इत् । अथ॑ । रथ॑म् । हरी॒ इति॑ । यम् । अ॒स्य॒ । वह॑तः । वि । सू॒रिऽभिः॑ । आ । ति॒ष्ठ॒ति॒ । म॒घऽवा॑ । सन॑ऽश्रुतः । इन्द्रः॑ । वाज॑स्य । दी॒र्घऽश्र॑वसः । पतिः॑ ॥ १०.२३.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:23» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:7» वर्ग:9» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) जिस समय (इन्द्र) राजा-शासक (सूरिभिः) विद्वानों के द्वारा (वज्रं हिरण्यं यं रथम्-इत्) ओजोरूप सर्वहितरमणीय तथा स्वरमणीय जिस राष्ट्र-शासन पद पर (वि-आ तिष्ठति) विराजता है और स्वाधीन चलाता है, तब (अस्य हरी वहतः) इसके सभासेना विभाग राष्ट्र का वहन करते हैं। (मघवा) राजसूय यज्ञवाला-राजसूय को प्राप्त हुआ राजा (सनश्रुतः) परम्परा से प्रसिद्ध हुए (दीर्घश्रवसः) दीर्घकाल तक कीर्ति देनेवाले (वाजस्य) भोग ऐश्वर्य का पति स्वामी हो जाता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों द्वारा राजा या शासक ओजस्वी सर्वहित-रमणीय तथा स्वरमणीय तथा राष्ट्र का वहन करते हैं, एवं परम्परा से प्रसिद्ध दीर्घकालीन कीर्तिवाले भोग-ऐश्वर्य का स्वामी राजा बनता है ॥३॥
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हरिशरण सिद्धान्तालंकार

हिरण्य वज्र

पदार्थान्वयभाषाः - [१] (यदा) = जब (वज्रम्) = हमारी क्रियाशीलता (हिरण्यम्) = स्वर्णीय होती है, हितरमणीय होती है, अथवा जब हमारी सब क्रियाएँ स्वर्णीय मध्य से [Golden means] होती हैं, अर्थात् हम सोने- जागने व खाने-पीने आदि सब क्रियाओं में मध्य मार्ग का अवलम्बन करते हैं, (अथा इत्) = तब ही (रथम्) = हमारे शरीर रूप रथ को (हरी) = ये इन्द्रियाश्व (यमस्य) = उस नियन्ता प्रभु की ओर (वहतः) = ले चलते हैं। [२] उस समय (मघवा) = ऐश्वर्यों व यज्ञों वाला होकर (सनश्रुतः) = सनातन वेदज्ञानवाला होता हुआ (वि सूरिभिः) = विशिष्ट ज्ञानियों के साथ (आतिष्ठति) = सर्वथा स्थित होता है। प्रभु प्रवण व्यक्ति के ये लक्षण हैं- [क] ऐश्वर्य का यज्ञों में विनियोग [मघवा], [ख] ज्ञान [सनश्रुतः], [ग] सत्संग रुचि । [३] यही व्यक्ति (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय व ऐश्वर्य सम्पन्न होता है, (वाजस्य) = बल का तथा (दीर्घश्रवसः) = तामस व राजस वासनाओं के विदारक ज्ञान का (पतिः) = स्वामी होता है ।
भावार्थभाषाः - भावार्थ- प्रभु-भक्त हितरमणीय क्रियाओं वाला होता है, बल व ज्ञान का पति होता है।
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) यस्मिन् काले (इन्द्रः) राजा-शासकः (सूरिभिः) विद्वद्भिः सह (वज्रं हिरण्यं यं रथम्-इत्) ओजोरूपं सर्वहितरमणीयं स्वरमणीयं राष्ट्रं-राष्ट्रशासनस्थानं खलु (वि-आ तिष्ठति) विराजते स्वाधीने चालयति च तदा (अस्य हरी वहतः) सभासेनाविभागौ राष्ट्रं वहतः (मघवा) राजसूययज्ञवान् राजा “यज्ञेन मघवान्” [तै० सं० ४।४।८।१] (सनश्रुतः दीर्घश्रवसः-वाजस्य पतिः) परम्परातः प्रसिद्धस्य दीर्घकालकीर्त्तिप्रदस्य भौगेश्वर्यस्य पतिर्भवति ॥३॥
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डॉ. तुलसी राम

पदार्थान्वयभाषाः - When Indra, glorious lord ruler of the world rides his golden chariot of state which complementary forces draw on the course with the energy of solar rays in nature and the light and loyalty of leading citizens in society, then he is celebrated as universal master of the common wealth and the ruler and protector of lasting power, prosperity and honour of the world.